Tuesday, 16 October 2012

लगातार गिरता कांग्रेस का सियासी ग्रॉफ


 Published on 16 October, 2012
 अनिल नरेन्द्र
 आमतौर पर उपचुनाव परिणामों का इतना असर नहीं पड़ता पर जो परिस्थितियां आजकल मौजूद हैं उनमें हाल में हुए उपचुनाव का महत्व बढ़ जाता है। देश में कांग्रेस के खिलाफ तेज हवा चल रही है। महंगाई, भ्रष्टाचार और रिटेल में एफडीआई के खिलाफ बने माहौल के बीच हुई दो लोकसभा उपचुनाव में मतदाताओं ने कांग्रेस के प्रति अपने नजरिये को काफी हद तक स्पष्ट कर दिया। उत्तराखंड की टिहरी सीट से मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा के बेटे साकेत चुनाव हार गए। यह सीट बीजेपी के खाते में गई। उधर पश्चिम बंगाल के जंगीपुर से राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के बेटे सिर्प 2536 वोटों से जीते हैं। यह वही सीट है जहां से प्रणब दा एक लाख से ज्यादा वोटों से जीते थे। यह भी ममता की गनीमत समझिए कि उन्होंने अपना उम्मीदवार खड़ा नहीं किया नहीं तो अभिजीत मुखर्जी हार जाते। आर्थिक सुधारों पर लिए गए फैसलों के बाद पहली बार हुए चुनाव में इन उपचुनावों के परिणामों से पता चलता है कि जनता इस सरकार से कितना दुखी है। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा दावा करते थे कि महंगाई कोई मुद्दा नहीं लेकिन बेटे की हार ने साबित कर दिया कि महंगाई का जख्म जनता में कितना गहरा है। ठीक एक साल पहले 17 अक्तूबर 2011 को हिसार उपचुनाव के नतीजे से कांग्रेस पार्टी की जो हार का सिलसिला शुरू हुआ तब से थमने का नाम नहीं ले रहा। हरियाणा में हिसार में मिली हार के बाद मुंबई में बीएमसी चुनाव, पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को बुरी हार मिली। दिल्ली नगर निगम में भी कांग्रेस को हार का मुंह देखना पड़ा। आंध्र में 18 में से 15 विधानसभा सीटें कांग्रेस के बागी रहे जगन मोहन के खाते में गईं। जनता में इतनी नाराजगी है कि दिल्ली जैसी जगह में मुख्यमंत्री शीला दीक्षित की सभा में चप्पल व अंडे फेंके जा रहे हैं। संप्रग सरकार नए-नए विवादों में घिरती जा रही है। कल ही बाबू लाल मरांडी की झारखंड विकास मोर्चा ने आधिकारिक रूप से केंद्र की यूपीए सरकार से समर्थन वापस ले लिया है वहीं कानून मंत्री सलमान खुर्शीद पर भ्रष्टाचार के मामले ने रविवार को निहायत उग्र रूप ले लिया। पिछले एक महीने से शायद ही कोई ऐसा दिन रहा हो जब कांग्रेस के लिए कोई नया सिरदर्द नहीं पैदा हुआ हो। रॉबर्ट वाड्रा के चलते पार्टी का शीर्ष नेतृत्व पहली बार सीधे निशाने पर आ गया।  इससे पहले सोनिया गांधी और उनके परिवार पर सीधे हमले नहीं होते थे पर रॉबर्ट वाड्रा ने यह सब बदल दिया है। अब तो खुद कांग्रेसी पार्टी नेतृत्व पर खुले हमले कर रहे हैं। एक वरिष्ठ कांग्रेस नेता का कहना था कि जनता की याददाश्त बहुत कमजोर होती है, वह जल्दी स्कैंडल भूल जाएगी पर यहां तो एक के बाद एक इतने स्कैंडल आ रहे हैं कि जनता क्या भूलेगी? यदि हालात ऐसे ही बने रहे और कांग्रेस का ग्रॉफ इतनी स्पीड से ही गिरता रहा तो शायद केंद्र की मनमोहन सिंह सरकार भाजपा द्वारा दिए गए अल्टीमेटम से पहले ही गिर जाए। कांग्रेस नेतृत्व को समझ नहीं आ रहा कि वह करे तो क्या करे?

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