Published on 18 May,
2013
अनिल नरेन्द्र
एक समय था जब पत्रकारिता एक नेक, इज्जतदार व्यवसाय
था जिसका मिशन जनता की भलाई था। जब हमारे स्वर्गीय दादा जी महाशय कृष्ण ने लाहौर में
दैनिक प्रताप शुरू किया था तब एक मिशन था कि अंग्रेजों को भारत से निकालना। उन्होंने
अपने इस मिशन पर कभी समझौता नहीं किया। कई बार जेल गए, कई बार जमानतें रद्द हुईं पर
वह अपने मिशन से कभी नहीं हटे। इसी तरह पूज्य पिताश्री स्वर्गीय के. नरेन्द्र ने जब
दैनिक वीर अर्जुन शुरू किया तो उनका मिशन था उनके पिता के आदर्शों को आगे बढ़ाना। उन्होंने
भी कभी किसी भी प्रलोभन के सामने सिर नहीं झुकाया और न ही हाथ फैलाया। मैं भी इन्हीं
के आदर्शों पर चलने का प्रयास कर रहा हूं पर पिछले कुछ दिनों से दुख से कहना पड़ता
है कि मीडिया में कुछ समूह व व्यक्ति ऐसे आ गए हैं जिनका उद्देश्य सिर्प धन कमाना है।
तभी तो हम पा रहे हैं कि कुछ लोग मंत्री बनाने के लिए लॉबिंग करके पैसा बटोरते हैं
तो कुछ लोग अपने काले कारनामों को दबाने के लिए अखबार या टीवी चैनल शुरू करते हैं।
हालांकि डीलिंग आज मीडिया में आम बात हो गई है। अपने सम्पर्कों के जोर पर सौदे करवाते
हैं। कोई चिट फंड खोलकर जनता को लूटता है। ताजा उदाहरण जेवीजी ग्रुप के एमडी विजय कुमार
शर्मा का है। इस बार उन पर वियान इंफ्रास्ट्रक्चर तथा पीएसजी डेवलपर्स एण्ड इंजीनियरिंग
लिमिटेड नामक कम्पनियों में निवेश पर मोटे ब्याज का झांका देकर कई सौ करोड़ रुपए हड़पने
का आरोप है। 90 के दशक में जेवीजी की 17 कम्पनियों ने लाखों लोगों से एक हजार करोड़
से अधिक रुपए ठगे थे। राजधानी के अलग-अलग थानों में दर्ज ठगी के मामलों में पुलिस को
उनकी तलाश थी। क्राइम ब्रांच के अतिरिक्त पुलिस आयुक्त रविन्द्र यादव ने बताया कि विजय
शर्मा लम्बे समय तक पुलिस की आंखों में धूल झोंकता रहा। पुलिस के सामने आरोपी ने खुलासा
किया कि गिरफ्तारी से बचने के लिए उसने लम्बे समय से हवाई और रेलयात्रा नहीं की थी।
पूरे देश में वह अपनी कार से घूमता था। पुलिस से बचने के लिए दिल्ली, यूपी, झारखंड,
उत्तराखंड, राजस्थान और महाराष्ट्र के होटलों में रहा। विजय ने खुलासा कि उसने
1989 में पहली जेवीजी कम्पनी लांच करने के बाद कई कम्पनियां खोलीं। विजय ने निवेशकों
को अपनी कम्पनी में रुपए लगाने के बदले करीब 30 फीसदी के मुनाफे का झांसा दिया था।
लाखों लोगों ने उसकी कम्पनी में निवेश किया था। करीब 17 कम्पनियां खोलने के बाद वर्ष
1997 में सेबी और आरबीआई की सख्ती के बाद विजय कम्पनी बन्द कर भाग गया था। 1998 में
आर्थिक अपराध शाखा ने विजय को गिरफ्तार कर लिया। 16 माह जेल में बिताने के बाद वह छूटा।
2005-06 में अलग नाम से दूसरी कम्पनी खोलकर लोगों से करीब 500 करोड़ रुपए ठगे। इसके
बाद विजय दोबारा पुलिस के हत्थे चढ़ा। जेल से छूटने के बाद विजय ने 2010 में कोर्ट
की तारीखों पर भी जाना बन्द कर दिया। विजय शर्मा पर एक लाख रुपए का इनाम था। आरोपी
के पास से एक मर्सडीज कार और .32 बोर की लाइसेंसी पिस्टल बरामद हुई।
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