Published on 12 May,
2013
अनिल नरेन्द्र
कर्नाटक विधानसभा चुनावों में भले ही गुजरात के मुख्यमंत्री
नरेन्द्र मोदी का सीधे तौर पर कोई लेना-देना न हो पर जैसी उम्मीद थी कि अगर कर्नाटक
में भाजपा हारी तो कांग्रेस इस हार का ठीकरा नरेन्द्र मोदी पर फोड़ने की कोशिश करेगी
वही हुआ। भारतीय जनता पार्टी के वहां चुनाव हारते ही पूरी कांग्रेस एक साथ, एक स्वर
में मोदी पर पिल पड़ी है। कोई मंत्री कह रहा है कि मोदी का जहाज कर्नाटक में डूब गया
तो कोई उन्हें डूबता सितारा कह रहा है और कोई कह रहा है कि गुजरात के बाहर मोदी जीरो
हैं। जीत की खुशी में कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह तो यहां तक कह गए कि गुजरात के
बाहर उन्हें कोई जानता तक नहीं है। कांग्रेस ने कर्नाटक में अपनी जीत का सेहरा युवराज
राहुल गांधी सिर बांधा है। असल में लगता यह है कि कांग्रेस ने पहले ही तय कर लिया था
कि मोदी पर इस तरह हमला करना है जिससे यह संदेश जाए कि कर्नाटक में भाजपा की हार के
साथ ही मोदी के हौसले को भी पस्त करने का प्रयास किया जाए ताकि आने वाले समय में मोदी
उत्साह के साथ प्रचार में न आ सकें। उन्हें मैदान में आने से पहले ही मनोवैज्ञानिक
रूप में चित्त कर दिया जाए। दरअसल कांग्रेस को यदि भाजपा के किसी नेता से भय है तो
वह नरेन्द्र मोदी हैं। वह जानती है कि यदि मोदी नाम का सिक्का चल गया तो फिर कांग्रेस
की कब्र खुद सकती है, इसलिए जिस तरह भी सम्भव हो मोदी को हतोत्साहित करते रहो और राहुल
गांधी का प्रचार भी इस तरह करो कि वह मोदी के सामने ज्यादा ताकतवर दिखें। इसलिए कर्नाटक
विधानसभा चुनाव नतीजों का श्रेय कांग्रेस राहुल गांधी को दे रही है। प्रधानमंत्री ने
भी जीत का सेहरा राहुल के सिर बांधा है। संसदीय कार्य मंत्री कमलनाथ ने कहा कि इस हार
के साथ भाजपा का असली चेहरा सामने आ गया। पार्टी के स्टार प्रचारक नरेन्द्र मोदी की
भी पोल खुल गई है। कर्नाटक में मैच खत्म हो गया है और भाजपा पारी से हार गई। वहीं प्रधानमंत्री
कार्यालय में राज्यमंत्री वी. नारायण स्वामी ने कहा कि भाजपा कर्नाटक में नरेन्द्र
मोदी को लाई लेकिन मोदी डूब गए और भाजपा वहीं समाप्त हो गई। केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्बल
ने कहा कि मोदी खुद ही बनाई हुई संस्था हैं, वह हमेशा खुद को हीरो कहते हैं और कर्नाटक
की जनता ने उन्हें जीरो साबित कर दिया है। केंद्रीय मंत्री सलमान खुर्शीद ने कहा कि
मोदी की हवा बनाई जा रही थी आखिर मोदी की हवा कहां चली गई? कर्नाटक की हकीकत तो यह
है कि विधानसभा चुनाव में न राहुल गांधी जीते और न ही नरेन्द्र मोदी हारे। गुजरात में
तीसरी बार जीत दर्ज कराने के बाद यह पहला मौका था जब प्रदेश के बाहर मोदी को कर्नाटक
में अपना जलवा दिखाने का मौका मिला। मोदी ने 37 सीटों पर प्रचार किया मगर इनमें से
आधी से भी कम सीटों पर पार्टी को कामयाबी मिली। वहीं राहुल ने विधानसभा क्षेत्रों का
दौरा किया लेकिन इनमें से भी कई सीटों पर कांग्रेस हारी। भाजपा के पूर्व मंत्री सदानन्द
गौड़ा पहले दावा कर रहे थे कि पार्टी को लगभग
65 सीटें और कांग्रेस को करीब 80 सीटें मिल सकती हैं। लेकिन बाद में वो भी मान गए कि
भाजपा की हालत बुरी है। उन्होंने माना कि येदियुरप्पा और श्रीरामुलु के जाने से पार्टी
को नुकसान हुआ। पार्टी को यह उम्मीद थी कि उसके लोकप्रिय नेता नरेन्द्र मोदी शायद कर्नाटक
में कोई चमत्कार व करिश्मा दिखा सकें और बाजी पलट दें। लेकिन स्थिति इतनी खराब हो चुकी
थी कि मोदी का करिश्मा भी भाजपा को नहीं बचा सका। पहले ही इतना नुकसान हो चुका था कि
मोदी के भाषण भी उसकी भरपाई नहीं कर पाए। कर्नाटक
में मिली करारी हार के बाद भाजपा संसदीय बोर्ड ने परिणामों का विश्लेषण करते हुए निष्कर्ष
निकाला कि सरकार की नॉन परफार्मेंस येदियुरप्पा की बगावत, शुरुआती अस्थिरता और अंत
तक जारी गुटबाजी ने प्रदेश में पार्टी की लुटिया डुबाई। परिणाम बताते हैं कि भाजपा
की सरकार को भ्रष्टाचार से ज्यादा खराब गवर्नेंस, कुशासन, विकासविहीन कार्यकाल हार
का कारण बना। सरकार पिछले पांच वर्षों में शासन के नाम पर लोगों की अपेक्षा अनुसार
खरा उतरने में नाकाम रही। यही कारण है कि खासकर शहरों में भाजपा की करारी हार हुई।
दरअसल मुद्दा न मोदी था और न ही राहुल गांधी। भ्रष्टाचार और गवर्नेंस के मुद्दों में
यह फर्प है कि भ्रष्टाचार का असर थोड़ा देर से और अपेक्षाकृत अपरोक्ष तरीके से दिखता
है लेकिन गवर्नेंस का आम लोगों पर सीधा और तुरन्त असर होता है। ऐसे में गवर्नेंस अधिक
जरूरी मुद्दा बन जाता है। हालांकि आगे चलकर देखेंगे कि यह दोनों मुद्दे एक ही सिक्के
के पहलू हो जाएंगे।
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