Wednesday, 8 May 2013

अपने कुकृत्यों को छिपाने के लिए यह सरकार किसी भी हद तक जा सकती है




 Published on 8 May, 2013 
 अनिल नरेन्द्र 
 जिस ढंग से सीबीआई ने रेलमंत्री पवन कुमार बंसल के भांजे को गिरफ्तार किया और उनके द्वारा किए गए घोटाले का पर्दाफाश किया है उससे यह संकेत मिलता है कि सीबीआई धीरे-धीरे सरकारी चंगुल से निकल रही है या यूं कहें कि सीबीआई निदेशक रंजीत सिन्हा सुप्रीम कोर्ट के सख्त रवैए से घबरा गए हैं और अदालत ने जो उन्हें कोल गेट घोटाले में डांट लगाई उसका असर होने लगा है या फिर उन्हें यह सता रहा है कि कहीं अगली तारीख में सुप्रीम कोर्ट उनको कठघरे में न खड़ा कर दे और सीधी कार्रवाई कर ले? कारण जो भी हो रेलमंत्री के भांजे का पर्दाफाश करके सीबीआई ने यह दिखाने की कोशिश जरूर की है कि वह अब सरकार के इशारों पर नहीं चलती और निष्पक्ष जांच करेगी। कोयला घोटाले पर उच्चतम न्यायालय में एक अहम हलफनामा दाखिल करने से एक दिन पहले सीबीआई निदेशक रंजीत सिन्हा ने जोर देकर कहा कि इस मामले में एजेंसी की जांच निष्पक्ष एवं स्पष्ट रही है और किसी भी आरोपी या संदिग्ध को बख्शा नहीं जाएगा। अब सरकार को इस बात की चिन्ता खाए जा रही है कि अगर सीबीआई अपनी पर उतर आई तो कई दबे मामले उठ सकते हैं। सोमवार को सीबीआई निदेशक रंजीत सिन्हा ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल शपथ पत्र में माना है कि कोयला घोटाले की जांच रिपोर्ट में कानून मंत्री, अटार्नी जनरल, कोयला मंत्रालय व पीएमओ के अधिकारियों के कहने पर बदलाव किए गए थे। नौ पन्नों के हलफनामे में सिन्हा ने कहा कि रिपोर्ट के मसौदे में कानून मंत्री अश्वनी कुमार, अटार्नी  जनरल जीई वाहनवती और प्रधानमंत्री कार्यालय व कोयला मंत्रालय के सुझावों पर बदलाव किए गए। अश्वनी कुमार और वाहनवती ने तमाम आरोपों से इंकार करते हुए कहा था कि रिपोर्ट के मसौदे में बदलाव के लिए उनकी ओर से कोई सुझाव नहीं दिया गया था। वाहनवती ने तो यहां तक दावा किया था कि उन्होंने प्रगति रिपोर्ट का मसौदा देखा तक नहीं। सिन्हा ने इन दावों को झुठलाते हुए माना कि जांच की प्रगति रिपोर्ट को लेकर तीन बैठकें हुईं। शपथ पत्र में सीबीआई प्रमुख ने यह भी कहा कि यदि अनजाने में उनसे कोई गलती हुई है तो उसके लिए वह बिना शर्त माफी मांगते हैं। जांच ईमानदार अफसर कर रहे हैं जो पूरी निष्पक्षता के साथ कोर्ट के निदेशानुसार चलती रहेगी। सीबीआई निदेशक रंजीत सिन्हा के हलफनामे के बाद सरकार की अपनी सफाई में कुछ नहीं रह गया है, लेकिन यह तय है कि वह अब भी ऐसा ही करेगी। वह अपने एक्शनों को हर सम्भव तरीके से जस्टीफाई करने का प्रयास करेगी। इससे उसे जग हंसाई के अलावा और कुछ हासिल होने वाला नहीं है। किसी भी सरकार के लिए इससे अधिक लज्जाजनक और क्या हो सकता है कि सीबीआई सुप्रीम कोर्ट के समक्ष हलफनामा दाखिल कर उसकी पोल खोले? इस रिपोर्ट को बदलवाने में जिस तरह अटार्नी जनरल और एडिशनल सॉलिसिटर जनरल ने भी बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया उससे तो यही साबित होता है कि सरकार ने हर हाल में सच्चाई को छिपाने के लिए कमर कस ली थी। यह बेहद शर्मनाक और विधि के शासन से किया जाने वाला खुला खिलवाड़ है। ऐसी सरकार सम्मान की पात्र नहीं हो सकती जो चोरी-छिपे किसी जांच रिपोर्ट में छेड़छाड़ करे। अब सवाल केवल यह नहीं है कि कानून मंत्री का क्या होगा बल्कि यह भी है कि प्रधानमंत्री कार्यालय का अफसर किसके इशारे पर जांच रिपोर्ट में हेरफेर कर रहा था? क्या पीएमओ बिना पीएम की मर्जी के इस तरह के काम करने-कराने का अधिकार रखते भी हैं? सीबीआई निदेशक के हलफनामे से केवल यही नहीं साबित होता कि सरकार सच का गला घोटने के लिए किस हद तक जा सकती है बल्कि यह भी स्पष्ट हो रहा है कि शासन के शीर्ष स्तर पर किस हद तक गिरावट आई है। अब यह कहने में कोई हिचक महसूस नहीं होती कि केंद्र की मौजूदा यूपीए सरकार घोटाले का पर्याय बन गई है। हैरत तो इस बात पर है कि  घोटालों के तार जैसे-जैसे शीर्ष पद पर काबिज व्यक्तियों, उनके कार्यालयों और उनके सगे-संबंधियों से जुड़ते नजर आ रहे हैं, वैसे-वैसे सरकार इन्हें लेकर बेपरवाह दिखने की कोशिश कर रही है। अभी रेल मंत्री पवन बंसल की भूमिका की छानबीन कायदे से शुरू भी नहीं हो पाई है कि रंजीत सिन्हा ने अपने हलफनामे से नया बम छोड़ दिया है। इन तथ्यों के सार्वजनिक होने के बाद एक बार फिर स्थापित हो गया है कि मौजूदा सरकार अपने कुकृत्यों को छिपाने के लिए कुछ भी करने को तैयार है। मंत्री और अफसरों को ऐसा दुस्साहस करने में तब भी संकोच नहीं हुआ जबकि कोयला घोटाले की जांच की निगरानी सुप्रीम कोर्ट कर रहा है। सोचने वाली बात तो यह भी है कि जिस देश में एक आम आदमी के पैर थाने तक जाने में कांपते हैं, वहीं शीर्ष पदों पर आसीन व्यक्तियों में इतनी हिम्मत आती कहां से है? इसका सीधा जवाब यह है कि बीते वर्षों में इनमें यह बात गहरी पैठ कर चुकी है कि हमारे काले कारनामे अव्वल तो सामने ही नहीं आएंगे और अगर आ भी गए तो क्या होगा, बहुत हुआ तो जांच सीबीआई कर लेगी, वह सीबीआई जिसकी रिपोर्ट कैसे जोड़ी-तोड़ी जाती है यह बात कोल गेट घोटाले की जांच रिपोर्ट में कांट-छांट से  सार्वजनिक हो चुकी है। यदि शीर्ष पद पर बैठे लोग अपनी काली करतूतों को छिपाने के लिए सुप्रीम कोर्ट की आंखों में भी धूल झोंकने की हद तक जा सकते हैं तो फिर वे हर किस्म का छल-कपट कर सकते हैं। भले ही रंजीत सिन्हा दावा कर रहे हों कि तमाम बदलावों के बावजूद कोयला घोटाले की जांच रिपोर्ट की विषय वस्तु में बदलाव नहीं हुआ, लेकिन इस पर आसानी से यकीन नहीं किया जा सकता। वैसे भी ऐसा हुआ है या नहीं, यह देखने का काम अब सुप्रीम कोर्ट का है। सुप्रीम कोर्ट को अब बहुत से मुद्दों पर फैसला करना होगा। क्या सरकार को जांच एजेंसी की रिपोर्ट बदलने का अधिकार है? क्या उच्च पदों पर  बैठे लोग सत्ता संचालन के नाम पर कुछ भी कर सकते हैं? कानून मंत्री, दोनों मंत्रालयों के अधिकारी, पीएमओ के अधिकारी, न्यायिक अफसर इन सब पर सुप्रीम कोर्ट क्या कोई सीधी टिप्पणी करेगा, कार्रवाई करेगा, देश देख रहा है। अगर इस सरकार को इस तरह की धांधलेबाजी से कोई रोक सकता है तो वह है जनता और सुप्रीम कोर्ट। जनता तो चुनाव आने पर जवाब देगी, फिलहाल तो मामला सुप्रीम कोर्ट को तय करना है।

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