Thursday 9 May 2013

सरकार रणनीतिक आक्रामकता व बेशर्मी से भले ही बचा ले पर कब तक?




 Published on 9 May, 2013 
 अनिल नरेन्द्र 
कांग्रेस के प्रवक्ता व सूचना एवं प्रसारण मंत्री मनीष तिवारी ने दो टूक कहा कि देश का संविधान कहता है कि जब तक व्यक्ति का दोष साबित न हो जाए तब तक उसे निर्दोष माना जाना चाहिए, इसलिए जांच रिपोर्ट आने तक कानून मंत्री अश्वनी कुमार और रेल मंत्री पवन कुमार बंसल अपने पद पर बने रहेंगे। कांग्रेस को यह कह कर कुछ दिनों की मौहलत मिल जाएगी पर दोनों मंत्रियों को देर-सबेर न केवल इस्तीफा ही देना पड़ेगा बल्कि कानूनी कार्रवाई से भी निपटना पड़ सकता  है। चूंकि कोयला घोटाले का मामला सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है हम अश्वनी कुमार के बारे में कोई और टिप्पणी नहीं कर सकते पर जहां तक रेल मंत्री पवन कुमार बंसल का सवाल है वह क्यों नहीं देंगे इस्तीफा? सम्भव है कि यूपीए सरकार को कर्नाटक में चुनावी सफलता ताकत दे पर यह सफलता पवन बंसल के बचाव का कवच नहीं हो सकती। रेलवे बोर्ड में मलाईदार पद हासिल करने के लिए भांजे को दी गई घूस को मंत्री महोदय कैसे झुठलाएंगे? रेलवे बोर्ड के मेम्बर महेश कुमार 1975 से रेलवे में हैं। उनके इस लम्बे अनुभव की तरह बेंगलुरु की रेल ठेकेदार कम्पनी के मंजूनाथ का भी बड़ा तजुर्बा है। इतने तजुर्बेकार लोग करोड़ों रुपए की रकम का दांव विजय सिंगला के नाम पर लगाने को तैयार कैसे हो गए? यह सवाल अहम इसलिए है कि सीबीआई के पास फोन टेपिंग के दौरान रेलमंत्री पवन कुमार बंसल का जिक्र सीधे-सीधे तो नहीं है पर इशारा साफ है। इस पर कौन यकीन करेगा कि विजय सिंगला रेल मंत्रालय में इतना प्रभाव रखते हैं कि अपने दमखम पर रेलवे बोर्ड में किसी की नियुक्ति केवल पैसे के बल पर करवा सकें? दरअसल विजय सिंगला सिर्प रेलमंत्री का भांजा ही नहीं बल्कि वह अपने मामाश्री के चुनावी क्षेत्र का राजनीतिक प्रबंधक  और चुनाव के दौरान प्रमुख कर्ताधर्ता भी होता है,  इसलिए विजय का अपने मामाश्री पर कितना प्रभाव रहा है यह किसी से छिपा नहीं है। बंसल के भांजे विजय सिंगला चंडीगढ़ में पर्दे के पीछे के सबसे प्रभावशाली व्यक्तियों में से एक गिने जाते थे। करोड़ों नहीं अरबों की जमीन जायदाद के मालिक विजय सिंगला को काम करने-कराने में माहिर के रूप में लोग जानते हैं। चंडीगढ़ को जानने वाले अफसरों और कारोबारी लोगों का कहना है कि विजय सिंगला पब्लिक में पवन बंसल के साथ सोची-समझी रणनीति के तहत दिखते नहीं थे। लेकिन उलझे से उलझे कामों में भी उनका असर दिख जाता था। कहीं रेलवे का कोई काम अटक जाए तो बन्दा विजय के पास जाए जैसी बात थी। श्री पवन बंसल और विजय सिंगला के कारोबारी रिश्ते के बारे में चल रही जांच से पता चल जाएगा पर विजय सिंगला किराए के मकान में अरबों के मालिक कैसे बन गए? एक वक्त पंचकूला में किराए के मकान में  रहने वाले विजय ने मामाश्री को खुद बुलाया। आज विजय सिंगला के पास चंडीगढ़ में चार एकड़ का मकान, साथ में बनता हुआ लम्बा-चौड़ा मॉल। इस मॉल के लिए 100 करोड़ से ज्यादा तो कन्वर्जन चार्ज दिया बताते हैं। चंडीगढ़ से सटे डेरा बस्सी में फैक्ट्री है। आस-पास और कई फैक्टरियां हैं। चंडीगढ़ से ही सटे जिकरपुर में एक नामी स्कूल का फ्रेंचाइज हैं। पंजाब के चंडीगढ़ में कारोबार, चंडीगढ़ और आस-पास कई जगह रियल एस्टेट के धंधे से लेकर दिल्ली तक के महंगे ठिकानों तक विजय के हाथ फैल गए। तथ्य यही बताते हैं कि भांजे की कम्पनियों में उनके परिवारजन ऊंचे पदों पर तो हैं ही, राजनीति में पवन बंसल की तरक्की के अनुरूप उनके भांजे का कारोबारी साम्राज्य भी फलता-फूलता रहा है। कभी एक रेल दुर्घटना पर लाल बहादुर शास्त्राr ने इस्तीफा दे दिया था। लेकिन अब घोटालों में अपने रिश्तेदारों की संलिप्तता भी मंत्रियों को पद छोड़ने के लिए नैतिक रूप से बाध्य नहीं करती। फिलहाल रणनीतिक आक्रामकता के जरिए सरकार अपने दागी मंत्रियों को भले ही बचा ले पर कितने दिन तक बचाएगी? देर-सबेर पवन बंसल को इस्तीफा तो देना ही पड़ेगा।

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