Tuesday 21 May 2013

लियाकत शाह को जमानत मिलना जांच एजेंसियों के मुंह पर तमाचा



 Published on 21 May, 2013 
 अनिल नरेन्द्र 
हिजबुल मुजाहिद्दीन के संदिग्ध आतंकवादी लियाकत शाह को फिदायीन आतंकी बनाकर वाहवाही लूटने वाली दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल को जबरदस्त झटका लगा है। दिल्ली पुलिस ने उसके खिलाफ होली के मौके पर दिल्ली में बम विस्फोट की साजिश रचने का आरोप लगाया था। जिला न्यायाधीश आईएस मेहता ने लियाकत को जमानत प्रदान कर दी। राष्ट्रीय जांच एजेंसी की विशेष अदालत ने कहा कि एनआईए और दिल्ली पुलिस लियाकत के खिलाफ ऐसा कोई साक्ष्य नहीं जुटा सकी, जिसके आधार पर कहा जा सकता है कि वह दिल्ली में हमले की योजना बना रहा था। जज महोदय ने 20 हजार रुपए के निजी मुचलके तथा इतनी ही राशि की जमानत देने पर लियाकत को जमानत पर रिहा करने के आदेश दिए। हालांकि उसकी जमानत पर कई शर्तें लगाई गई हैं। उसे देश छोड़ने का आदेश नहीं दिया गया है। लियाकत द्वारा दी गई जानकारी के आधार पर जामा मस्जिद इलाके में एक गेस्ट हाउस से गत 21 मार्च को हथियार और गोला-बारुद बरामद किए जाने के दिल्ली पुलिस के दावे पर अदालत ने कहा कि यह काम आरोपी की अनुपस्थिति में किया गया था। इससे पहले एनआईए ने लियाकत की जमानत अर्जी का यह कहकर विरोध किया था कि अभी मामले की जांच जारी है, कॉल रिकार्ड की जांच, गवाहों से पूछताछ और मामले से जुड़ी कई अन्य कड़ियों की छानबीन की जा रही है। मगर कोर्ट ने इन दलीलों को नामंजूर कर दिया। वहीं जम्मू-कश्मीर पुलिस ने भी दावा किया था कि लियाकत आत्मसमर्पण करने यहां आ रहा था। इस संबंध में उसके परिजनों ने कुछ समय पहले आवेदन भी किया था। परिजनों का आरोप था कि दिल्ली पुलिस ने वाहवाही लूटने के लिए लियाकत को बलि का बकरा बनाया। 45 वर्षीय लियाकत को दिल्ली पुलिस के विशेष प्रकोष्ठ ने अपने परिवार के साथ गत 29 मार्च को गोरखपुर में भारत-नेपाल सीमा को पार करने के दौरान गिरफ्तार किया था। अदालत ने नौ पन्नों के अपने आदेश में गौर किया कि एनआईए ने खुद कहा था कि कथित साजिश में लियाकत का संबंध जोड़ने के लिए कोई ठोस सबूत नहीं हैं। इस बात को जोड़ने के लिए कोई सबूत नहीं कि कथित बरामदगी याचिकाकर्ता, आरोपों की निशानदेही पर की गई ताकि साक्ष्य अधिनियम की धारा 27 लागू की जा सके। अभियोजन पक्ष के अनुसार गेस्ट हाउस में वह कमरा कथित तौर पर पाकिस्तान में बैठे आका की ओर से संदेश आने पर प्रकाश में आया। क्या इसका मतलब यह निकाला जाए कि जो हथियार इत्यादि जामा मस्जिद में कथित रूप से बरामद हुए वह खुद पुलिस ने वहां प्लांट किए थे? जामा मस्जिद के गेस्ट हाउस में जिस संदिग्ध आतंकी की तस्वीर जारी की गई थी वह भी सवालों के घेरे में है। जहां ऐसे केसों से पुलिस व जांच एजेंसी की साख पर सवाल तो लगता ही हैं साथ-साथ अल्पसंख्यक संगठनों को यह कहने का मौका भी मिलता है कि जांच एजेंसियां खानापूर्ति करने के लिए किसी भी अल्पसंख्यक को उठाकर उसे जबरन कथित आतंकी बना देती है। दिल्ली पुलिस की विश्वसनीयता वैसे भी बहुत कम है, इस प्रकार के केसों से रही-सही कसर भी निकल जाएगी।

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