Published on 31 May,
2013
अनिल नरेन्द्र
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह एक
नाजुक पर महत्वपूर्ण मौके पर जापान गए हैं। जापान का भारत के लिए कई मायनों में महत्व
बढ़ रहा है। भारत-जापान सहयोग के कई महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट भारत में दोनों देशों के
बढ़ते सहयोग का सबूत हैं। चाहे हम बात करें दिल्ली की चमचमाती मेट्रो रेल सेवा की चाहे
बात करें सड़कों पर दनदनाती मारुति गाड़ियों की और देश के इंफ्रास्ट्रक्चर जरूरतों
की हर क्षेत्र में जापान ने हमेशा भारत का सहयोग किया है। यात्रा के 20 दिन पहले इतना
तो लगने लगा था कि यह कोई सामान्य दौरा नहीं होने जा रहा है। लद्दाख में भारत-चीन तनाव
के दौरान चीनी प्रधानमंत्री ली केकियांग की भारत यात्रा से ठीक पहले मनमोहन सिंह ने
अपने जापान दौरे की अवधि एक से बढ़ाकर दो दिन करने की बात कही थी। उस वक्त राजनयिक
शिष्टाचारवश भारत ने अमेरिका, जापान और आस्ट्रेलिया के साथ सम्भावित चौतरफा नौसैनिक
युद्धाभ्यास से खुद को बाहर रखने की घोषणा जरूर की थी, लेकिन अभी समुद्र और जमीन दोनों
जगहों से उड़ान भर सकने वाला एफिबियन एयरक्राफ्ट खरीदने का समझौता जापान से करके पहली
बार दोनों देशों के सामरिक रश्तों की गुंजाइश भी उन्होंने बना दी है। पिछले 15 वर्षों
से यानी पोखरण-2 के बाद से परमाणु अप्रसार के मुद्दे को लेकर जापान के साथ रिश्तों
में गर्मजोशी थोड़ी कम जरूर हुई थी, लेकिन नए जापानी प्रधानमंत्री शिंजो अबे अपने देश
की स्थापित धारणा के विपरीत जाते हुए भारत को परमाणु ईंधन सप्लाई करने तक का मन बना
रहे हैं। एटामिक बिजली के क्षेत्र में जापान दुनिया का जाना-माना खिलाड़ी है। मनमोहन
सिंह की यात्रा के एक हफ्ते पहले जापान ने ऐसी भूमिका तैयार करते हुए घोषणा की थी कि
वह भारत के साथ एटोमिक सहयोग को आगे बढ़ाने
के लिए प्रतिबद्ध है। हालांकि वह यह कहने से भी नहीं चूका कि फुकुशिमा परमाणु दुर्घटना
के बावजूद भारत का उसकी परमाणु तकनीक पर विश्वास जाहिर कर दोनों देशों के सहयोग को
और ऊंचाई देने वाली है। जापान के साथ वर्तमान रिश्ते को प्रगाढ़ बनाने में चीन की अप्रसन्नता
सामने आने लगी है। चीन जिस प्रकार हमारे इलाकों पर अपना दावा ठोंक कर रिश्तों को तल्ख
बनाने में जुटा है, कमोबेश वही हालात उसने जापान के साथ भी बना रखे हैं। पूर्वी चीन
सागर में जापान के महत्वपूर्ण द्वीपों पर चीन की कुदृष्टि दोनों देशों के बीच खतरनाक
ढंग से तनाव बढ़ा रही है। दोनों के रिश्ते कितने बिगड़ चुके हैं इसका अंदाजा जापानी
उपप्रधानमंत्री तारो एशो के उस बयान से लगाया जा सकता है जो हाल में उन्होंने भारत
यात्रा के दौरान दिया था। चीन पर खुला हमला बोलते हुए एशो ने कहा था कि डेढ़ हजार वर्षों
के इतिहास में जापान और भारत के साथ चीन का रवैया कभी दोस्ताना नहीं रहा। भारत और जापान
के बीच बढ़ती नजदीकियों से बौखलाए चीन के एक सरकारी अखबार ने मंगलवार को कहा कि नई
दिल्ली की बुद्धिमानी बीजिंग के साथ अपने विवादों को घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय उकसावे
से प्रभावित हुए बिना शांतिपूर्ण ढंग से निपटाने में है। अखबार ने कहा कि चीन-भारत
संबंधों में कई मतभेद और विरोधाभास हैं। कुछ देश इन मतभेदों को फूट बढ़ाने के अवसर
के रूप में देखते हैं। अखबार ने जापानी पीएम शिंजो अबे के उस आह्वान का भी जिक्र किया
जिसमें उन्होंने जापान-भारत, आस्ट्रेलिया और अमेरिका का संयुक्त मोर्चा बनाए जाने पर
जोर दिया है। कुल मिलाकर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की जापान यात्रा दोनों देशों को
और करीब लाने में सफल रही, इस यात्रा से आपसी सहयोग के नए अवसर व रास्ते खुलेंगे।
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