Published on 24 May,
2013
अनिल नरेन्द्र
उत्तर प्रदेश में अगर पूर्व बसपा
की सरकार मुश्किल में आ गई है तो मौजूदा अखिलेश यादव की सरकार की भी दुविधा बढ़ गई
है। मायावती सरकार के दौरान दलित स्मारकों के खर्चे की जांच कर रहे लोकायुक्त ने बीएसपी
कद्दावर नेता नसीमुद्दीन सिद्दीकी सहित 19 लोगों के खिलाफ एफआईआर लिखाने की सिफारिश
की है। उल्लेखनीय है कि मायावती ने 2007 से 2012 के अपने कार्यकाल में लखनऊ और नोएडा
में कई स्मारक बनवाए थे। इनके निर्माण के दौरान पैसे के दुरुपयोग का आरोप लगा। चुनावों
से पहले समाजवादी पार्टी ने दावा किया कि उनकी पार्टी सत्ता में आई तो मामले की जांच
होगी। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने स्मारकों के निर्माण के लिए पिंक स्टेडियम की सप्लाई
की धांधली के आरोपों की जांच लोकायुक्त से कराने के आदेश दिए थे। उत्तर प्रदेश के लोकायुक्त
एनके मेहरोत्रा ने स्मारकों के निर्माण में 14 अरब 88 करोड़ रुपए का घोटाला उजागर किया
है। दो पूर्व मंत्रियों के अलावा 199 को जिम्मेदार पाया है। दोनों पूर्व मंत्रियों
नसीमुद्दीन सिद्दीकी, बाबू सिंह कुशवाहा, निर्माण निगम के तत्कालीन एमडी सीपी सिंह,
भू-वैज्ञानिक एसए फारुकी और 15 इंजीनियरों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करवाकर विवेचना और
अन्य के खिलाफ विवेचना के बाद एफआईआर की संस्तुती की है। जांच का सबसे महत्वपूर्ण पहलू
यह है कि स्मारकों के लिए धन आवंटन से लेकर निगरानी तक के कार्य में लगे रहे किसी भी
आईएएस अधिकारी को दोषी नहीं पाया गया है। तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती को भी क्लीन
चिट दे दी गई है। अखिलेश सरकार अभी यह तय नहीं कर पाई है कि उसे लोकायुक्त की सिफारिश
मंजूर करनी चाहिए या फिर कानूनी राय लेने की आड़ में इसे ठंडे बस्ते में डालना चाहिए।
वह कार्रवाई करने से पहले इस खतरे की टोह लेना चाह रही है कि कहीं इससे बीएसपी के पक्ष
में कोई सहानुभूति तो पैदा नहीं हो सकती? खासतौर पर वह यह देखना चाहती है कि नसीमुद्दीन
सिद्दीकी को जेल भेजने पर मुस्लिम वोटर उसे किस तरह लेते हैं? दूसरे आरोपी कुशवाहा
की इतनी समस्या नहीं है, क्योंकि मायावती सरकार में खनन मंत्रालय का यह मंत्री इस समय
एनआरएचएम घोटाले के मामले में डासना जेल में बन्द है। उधर लोकायुक्त की रिपोर्ट आने
के बाद बीएसपी ने आक्रामक रुख दिखाया है और सड़क पर उतर आने व सरकार के खिलाफ संघर्ष
का ऐलान कर दिया है। अखिलेश सरकार के कोर ग्रुप को सोचने पर मजबूर होना पड़ा है। कोर
ग्रुप को लगता है कि अगर नसीमुद्दीन सिद्दीकी एण्ड कम्पनी के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराकर
गिरफ्तारी करा दी जाती है तो कहीं यह दांव उलटा न पड़ जाए। नसीमुद्दीन के खिलाफ कार्रवाई
से एसपी को मुसलमानों की नाराजगी का खतरा सताता रहता है। उसी खतरे को देखते हुए नसीमुद्दीन
के खिलाफ आमदनी से ज्यादा प्रॉपर्टी के मामले में जब लोकायुक्त ने सीबीआई से जांच कराने
की सिफारिश की थी तो उसे यूपी सरकार ने मंजूर नहीं किया था। बीएसपी के लिए मुश्किल
यह है कि भ्रष्टाचार के आरोप में कई नेता जेल में बन्द हैं। अगर ताजा कार्रवाई होती
है तो उसके दामन पर बदनामी का दाग कहीं और परेशानी का सबब न बन जाए।
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