Sunday 12 May 2013

आखिर जाना ही पड़ा पवन बंसल और अश्विनी कुमार को




 Published on 12 May, 2013 
 अनिल नरेन्द्र 
 आखिरकार अपनी और साथ ही सरकार की तमाम छीछालेदर के बाद रेलमंत्री पवन कुमार बंसल और कानून मंत्री अश्विनी कुमार केंद्रीय मंत्री परिषद से विदा  हो गए। इन दोनों दागी मंत्रियों के इस्तीफे तब हुए जब खुद सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री के आवास पर जाकर उनसे इसके लिए कहा। रिश्वत लेकर प्रमोशन करने के मामले में फंसे रेलमंत्री पवन कुमार बंसल शुक्रवार रात प्रधानमंत्री आवास गए और वहां से निकलते ही अपने इस्तीफे की पुष्टि कर दी, लेकिन कोयला घोटाले की सीबीआई जांच रिपोर्ट में छेड़छाड़ करने के गम्भीर आरोप से घिरे कानून मंत्री अश्विनी कुमार पीएम के समक्ष अपने बचाव में दलीलें देते रहे। इसके चलते कुछ क्षणों के लिए यह भ्रम फैला कि शायद एक कुमार गए और दूसरे बच गए। अंतत अश्विनी कुमार इस्तीफे की भी पुष्टि हो गई। यह पहली बार है जब भ्रष्टाचार के अलग-अलग मामलों से घिरे दो केंद्रीय मंत्रियों को एक साथ इस्तीफे देने पड़े हैं। विपक्ष दोनों का इस्तीफा मांग रहा था और उसने इस वजह से पिछले दिनों संसद का बजट सत्र भी नहीं चलने दिया। इस बहिष्कार के चलते सोनिया गांधी का चहेता बिल खाद्य सुरक्षा बिल भी पेश नहीं हो सका। इन दोनों इस्तीफों के बाद कांग्रेस और सरकार दोनों ने राहत की सांस तो ली होगी पर इस कार्रवाई पर कुछ प्रश्न जरूर उठते हैं। संसद में तनातनी के बाद सोनिया गांधी ने पहले तो दादागीरी दिखाई, फिर गांधीगीरी दिखाते हुए सुषमा स्वराज को पटाने की कोशिश की। सोनिया चाहती थीं कि किसी तरह से संसद चले ताकि उनका ड्रीम बिल जिसे गेम चेंजर भी कांग्रेस कह रही थी पास हो जाए पर सुषमा ने स्पष्ट कर दिया कि पहले दोनों मंत्रियों और प्रधानमंत्री का इस्तीफा हो। अगर मंत्रियों का त्याग पत्र हो जाता है तो  पीएम के इस्तीफे पर भाजपा जोर नहीं देगी पर तब सरकार ने विपक्ष की बात नहीं मानी और नतीजतन सोनिया का खाद्य सुरक्षा और राहुल का ड्रीम बिल भूमि अधिग्रहण रह गए। सम्भव है कि कांग्रेस आलाकमान यह संकेत देना चाहता हो कि वह विपक्ष के दबाव में इस्तीफे नहीं ले रहा। जब पानी सिर से गुजर गया और तथ्यों की भरमार लग गई। कर्नाटक में कांग्रेस जीत गई तब जाकर यह इस्तीफे लिए  गए। कांग्रेस जब यूपीए की चौथी सालगिरह के मौके पर होने वाले आयोजन 22 मई को है उसके सामने जश्न के साथ-साथ आत्मचिन्तन के भी तमाम कारण मौजूद होंगे। आने वाले लोकसभा चुनावों को देखते हुए यूपीए के सामने तमाम चुनौतियां हैं। सबसे बड़ी चुनौती है कि उसके पास बस एक ही साल बचा है जिसमें उसे एक तरफ भ्रष्टाचार व महंगाई जैसे मुद्दों को लेकर धूमिल हुई छवि को सुधारना है, वहीं अपने अधूरे कामों को भी पूरा करना होगा। अगर बचे हुए एक साल में डिलीवर नहीं कर पाई तो आम चुनावों में मुकाबला और कड़ा हो जाएगा। यूपीए-1 में अपनी साफ-सुथरी छवि और ठीक-ठाक गवर्नेंस के बल पर जीती यूपीए के लिए विवादों और घोटालों के चलते दूसरा कार्यकाल किसी बुरे सपने से कम नहीं रहा। यूपीए-2 के पहले साल के भीतर ही यूपीए सरकार के विवाद सामने आ गए। यूपीए-2 में कई दिग्गजों के विकेट गिरे। पहला विकेट सुरेश कलमाड़ी का गिरा। उन्हें कॉमनवेल्थ गेम्स घोटाले की वजह से तिहाड़ जेल की हवा तो खानी ही पड़ी साथ ही कमेटी का भारी-भरकम ओहदा भी गंवाना पड़ा। दूसरी विकेट महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण की गिरी जो आदर्श घोटाले की वजह से कुर्सी से अलग हुए। फिर आया ए. राजा का नम्बर। 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले की वजह से टेलीकॉम मंत्रालय तो राजा को गंवाना ही पड़ा, साथ ही तिहाड़ जेल में भी जाना पड़ा। 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले से जुड़े कुछ लोगों के और दयानिधि मारन को पारिवारिक कम्पनियों के लेन-देन का खुलासा होने के बाद मंत्रिपरिषद से इस्तीफा देना पड़ा। हिमाचल प्रदेश में एक जमीन से जुड़े विवाद में अदालत के एक निर्णय की वजह से वीरभद्र सिंह को केंद्रीय मंत्री की कुर्सी छोड़नी पड़ी लेकिन इसके बावजूद वीरभद्र की अगुवाई में कांग्रेस ने हिमाचल विधानसभा चुनाव में जीत हासिल कर ली। जिसकी वजह से उन्हें मुख्यमंत्री पद मिल गया। कोयला घोटाले मामले में अपने भाई की कम्पनी के नाम की सिफारिश का लेटर पीएमओ को लिखने के आरोप में पर्यटन मंत्री सुबोध कांत सहाय को कुर्सी छोड़नी पड़ी और अब पवन बंसल और अश्विनी कुमार का नम्बर आ गया, इसलिए जहां इन दोनों मंत्रियों का इस्तीफा सही दिशा में सही कदम माना जाएगा वहीं कांग्रेस को अभी लम्बा रास्ता तय करना है, चुनौतियां बहुत हैं। पिछले दिनों मैंने इसी कॉलम में लिखा था कि इन दोनों के इस्तीफे टल सकते हैं पर अंतत इन्हें इस्तीफा देना ही पड़ेगा।



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