Published on 3 May,
2013
अनिल नरेन्द्र
आगामी 20 मई को ममता बनर्जी सरकार को दो साल पूरे हो
जाएंगे। इन दो सालों में इस सरकार को कंटीले रास्ते से गुजरना पड़ा है। इन दो सालों
में ममता सरकार को कुछ सफलताएं जरूर मिली जैसे जंगल महल और दार्जिलिंग में शांति कायम
करना पर विवादों से इस सरकार को कभी छुटकारा नहीं मिला। पिछले कुछ दिनों से शारदा समूह
के चिट फंड घोटाले की चर्चा जोरों पर है। एक पुरानी कहावत यह जरूर फिट बैठती है कि
गुड़ खाए ः गुलगुले से परहेज। शारदा चिट फंड घोटाले के सामने आने के बाद पश्चिम बंगाल
की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की अगुवाई वाली तृणमूल कांग्रेस पर यह कहावत सटीक बैठती
है। पिछले तीन सालों में खासकर सुदीप्तो सेन की अगुवाई वाले इस शारदा समूह के मीडिया
में कदम रखने के बाद तृणमूल कांग्रेस के सांसदों, नेताओं और मंत्रियों ने उसकी नजदीकी
के कारण गुड़ तो जमकर खाया, लेकिन अब हजारों करोड़ के चिट फंड घोटाले के सामने आने
के बाद सुदीप्तो और शारदा नामक गुलगुले से परहेज कर रहे हैं। पार्टी नेताओं की शारदा
समूह के नजदीकी के खुलासे के बाद इस घोटाले ने आगामी पंचायत चुनावों से पहले ममता बनर्जी
और उनकी पार्टी को सकते में जरूर डाल दिया है। शारदा समूह के घोटाले के सामने आने के
बाद अब तक एक एजेंट और दो निवेशकों ने आत्महत्या कर ली है। समूह की योजनाओं में निवेश
कर अपने जीवन की जमापूंजी से तो वह पहले ही हाथ धो चुके थे। हताशा में उन लोगों ने
आत्महत्या का रास्ता चुन लिया। बदले हालात में कल तक तृणमूल के जो नेता नियमित तौर
पर शारदा समूह के कार्यक्रमों में नजर आते थे वे अब अपना पल्ला झाड़ने लगे हैं। सबकी
सफाई लगभग एक जैसी है कि उनको समूह के इस चिट फंड के कारोबार के बारे में कोई जानकारी
नहीं थी। पत्रकार और फिल्म कलाकार से तृणमूल कांग्रेस के जरिए संसद तक पहुंचे लोग अब
बड़ी मासूमियत से कहते फिर रहे हैं कि उनको इस बारे में जरा-सी भी जानकारी नहीं थी।
पत्रकार कोटे से बने सांसद दो नेताओं की भूमिका पर तो तृणमूल कांग्रेस में सिर-फुटव्वल
मची है। पार्टी के वरिष्ठ नेता इनके खिलाफ कार्रवाई के पक्ष में हैं। लेकिन मुख्यमंत्री
ममता समेत दूसरे गुट की दलील है कि इनके खिलाफ किसी भी कार्रवाई से पंचायत चुनाव से
पहले राज्य में गलत संदेश जाएगा। शारदा ग्रुप चिट फंड घोटाले में सीबीआई जांच की मांग
करते हुए राज्य की प्रमुख विपक्षी दल माकपा ने रविवार को मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के
भतीजे पर अंगुली उठाई है। वाम दल का कहना है कि ममता के भतीजे अभिषेक बनर्जी इस तरह
की योजनाओं में शामिल हैं और ममता को इस संबंध में सफाई देनी चाहिए। माकपा सेंट्रल
कमेटी के सदस्य गौतम देव ने एक रैली के दौरान कहा कि ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक बनर्जी
जो कि तृणमूल कांग्रेस युवा के नेता भी हैं एक कम्पनी चलाते हैं, जिसका काम रीयल एस्टेट
और माइक्रो फाइनेंस से जुड़ा हुआ है। इस कम्पनी ने पिछले दो-तीन साल में बेहद मोटा
मुनाफा कमाया है। चिट फंड का सभ्य नाम माइक्रो फाइनेंस है। उन्होंने आरोप लगाया कि
शारदा ग्रुप के चेयरमैन सुदीप्तो सेन को अकसर तृणमूल नेताओं के साथ देखा गया है। उन्हीं
में से एक सांसद कृणाल घोष का नाम इस घोटाले में उठ रहा है। ममता ने बयान दिया था कि
उनके द्वारा बनाई गई पेन्टिंग को बेचकर पार्टी
का खर्चा चलाया जाता है। इस पर टिप्पणी करते हुए देव ने कहा कि ममता बनर्जी को इस कम्पनी
के बारे में जवाब देना पड़ेगा। इस कम्पनी के चेयरमैन और मुख्य प्रबंध निदेशक अभिषेक
बनर्जी हैं। हम जानना चाहते हैं कि उनके भतीजे चिट फंड चलाते हैं या नहीं? अब सिर्प
सीबीआई ही पूरे सच पर से पर्दा उठा सकती है। तृणमूल कांग्रेस के नेताओं-मंत्रियों से
नजदीकी संबंधों के कारण शारदा समूह को बाजार से रकम उगाहने में काफी मदद मिली। कम्पनी
के एजेंटों ने पैसा उगाहते समय इस बात का बाखूबी प्रचार किया कि तृणमूल के दो-दो सांसद
और कई मंत्री समूह के साथ हैं और इन्हें ममता बनर्जी सरकार का संरक्षण हासिल है। इससे
समूह पर निवेशकों का भरोसा बढ़ा। आम लोगों को लगा कि जिस समूह को सत्तारूढ़ पार्टी
का आशीर्वाद हासिल है वह भला उनकी मामूली रकम लेकर थोड़े भागेगी?
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