Thursday, 16 May 2013

दिग्विजय सिंह की सुप्रीम कोर्ट को नसीहत ः सीमा में रहे




 Published on 16 May, 2013 
 अनिल नरेन्द्र 
 अपने बयानों के चलते अकसर विवादों में रहने वाले कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने इस बार देश की सर्वोच्च अदालत यानी सुप्रीम कोर्ट पर ही निशाना दाग दिया। सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियों के बाद एक तरफ तो सरकार के कानून मंत्री को इस्तीफा देना पड़ा दूसरी तरफ दिग्विजय सिंह ने सर्वोच्च न्यायालय को सीमा में रहने की ही नसीहत दे दी। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा सीबीआई को पिंजरे में बन्द तोता कहने पर आपत्ति जताते हुए दिग्विजय सिंह ने कहा कि इस तरह की टिप्पणियों से राष्ट्रीय संस्थाओं का महत्व घटता है। सोमवार को दिग्विजय ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई को पिंजरे का तोता बताया तो बेंगलुरु में केंद्रीय प्रशासनिक पीठ ने खुफिया ब्यूरो यानी आईबी को चूजा कह दिया। अब आम लोगों से मेरा यह सवाल है कि क्या ऐसा करके हम अपनी राष्ट्रीय संस्थाओं को छोटा नहीं कर रहे हैं? मैं आपका जवाब चाहता हूं। कोयला घोटाले के मामले का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि जनप्रतिनिधि जनता के प्रति जवाबदेह  होते हैं कोर्ट के प्रति नहीं। अगर कोर्ट को लगता है कि कोल गेट रिपोर्ट की आत्मा बदल दी गई थी तो उन्हें आदेश देना चाहिए था। टिप्पणियों के आधार पर किसी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता। सुप्रीम कोर्ट के बयान के खिलाफ दिग्विजय की टिप्पणी से कांग्रेस ने किनारा करना बेहतर समझा जैसा कि वह अकसर करती आई है। यह अच्छा हुआ कि कांग्रेस ने खुद को अपने महासचिव दिग्विजय सिंह के इस बयान से अलग कर लिया कि सीबीआई को पिंजरे में बन्द तोता बताना इस संस्था को हीन करार देने जैसा है। यह हास्यास्पद है कि कांग्रेस महासचिव को उस सीबीआई की साख की परवाह है जिसकी विश्वसनीयता तली पर आ गई है और जिसे हर कोई सरकार की कठपुतली मानता है। अगर सुप्रीम कोर्ट सीबीआई को पिंजरे में बन्द तोता नहीं कहता तो क्या जांच एजेंसी की नाक ऊंची हो जाती? क्या दिग्विजय को यह नहीं मालूम कि सीबीआई ने कोल घोटाले की जांच में छेड़छाड़ के मामले में पहले हलफनामे में लीपापोती करने की हर सम्भव कोशिश की थी। अगर सुप्रीम कोर्ट ने सतर्पता का परिचय नहीं दिया होता तो सीबीआई अपनी जांच रिपोर्ट में छेड़छाड़ किए जाने के बावजूद संतुष्ट ही बनी रहती। यह एक तथ्य है कि सीबीआई ने अपने दूसरे हलफनामे में भी शीर्ष अदालत के समक्ष यही दलील दी थी कि जांच रिपोर्ट के कुछ अंश हटाने के बाद भी उसकी विषयवस्तु में कोई बदलाव नहीं आया है। इसके विपरीत अदालत ने यह पाया कि इन अंशों को हटाने से जांच रिपोर्ट की मूल आत्मा ही बदल गई है। यहां हम यह बताना भी जरूरी समझते हैं कि सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी सीबीआई निदेशक रंजीत सिन्हा द्वारा दाखिल हलफनामे पर आई थी जिसमें कहा गया था कि पूर्व केंद्रीय कानून मंत्री अश्विनी कुमार, पीएमओ तथा कोयला मंत्रालय के कुछ अधिकारियों ने कोल ब्लॉक आवंटन की जांच रिपोर्ट में बदलाव किए थे। दिग्विजय सिंह ने कैट पर भी टिप्पणी की है। न्याय दिलाने वाली संस्थाओं की यह टिप्पणियां आम लोगों के बीच गम्भीरता से सुनी जाती हैं। ऐसे में दिग्विजय सिंह की तरफ से ऐसी टिप्पणियों का सामने आना जो किसी व्यक्ति या संस्था का उपहास करने लगें, किसी भी दृष्टि से सही नहीं माना जा सकता। हमारा लोकतंत्र व पूरी व्यवस्था कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका के आपसी तालमेल पर टिकी हुई है। लेकिन इस तरह की टिप्पणियां पूरे सिस्टम को ही हिला देती हैं और सिस्टम की बुनियाद पर चोट करती हैं। आलोचना उपहास और अपमान में बदल जाती है, इस बारीक रेखा को कांग्रेस पार्टी और खासकर उसके महासचिव दिग्विजय सिंह को समझना होगा। हमने अपने पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान में देखा है कि किस तरह कार्यपालिका और न्यायपालिका में टकराव ने देश को भी हिलाकर रख दिया है। निसंदेह यह पर्याप्त नहीं कि सुप्रीम कोर्ट की ओर से सीबीआई की तीखी आलोचना पर दिग्विजय सिंह ने जो प्रतिक्रिया दी उससे कांग्रेस ने पल्ला झाड़ लिया, क्योंकि उसके नेतृत्व वाली केंद्रीय सत्ता न तो लोकतांत्रिक संस्थाओं की गरिमा के प्रति सतर्प नजर आती है और न ही उनकी गरिमा के प्रति। भले ही सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर सीबीआई की स्वायत्तता की राह खोजने के लिए एक मंत्री समूह का गठन कर दिया गया हो, लेकिन इतने भर से इस जांच एजेंसी की स्वायत्तता के प्रति सुनिश्चित नहीं हुआ जा सकता।

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