Published on 15 May,
2013
अनिल नरेन्द्र
पाकिस्तान की सियासत का पूरा चक्र हो
गया है। इतिहास एक तरह से दोहरा रहा है। 12 अक्तूबर 1999 को कारगिल युद्ध के बाद तत्कालीन
पाक राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ ने सत्तासीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को बर्खास्त करके
उन्हें पहले जेल में डाल दिया और बाद में नवाज को पाकिस्तान छोड़ने पर मजबूर कर दिया
था। अब 2013 मई में पूरा चक्र घूम गया है, नवाज शरीफ प्रधानमंत्री बन गए हैं और परवेज
मुशर्रफ अपने फार्म हाउस में गिरफ्तार हैं। सम्भव है कि नवाज शरीफ भी मुशर्रफ को अब
फिर सेफ पैसेज दें और मुशर्रफ फिर पाकिस्तान छोड़ें। याद रहे कि नवाज शरीफ पर श्रीलंका
से आ रहे मुशर्रफ के विमान का अपहरण करने और आतंकवाद फैलाने का आरोप लगाकर गिरफ्तार
किया गया था। बाद में उन्हें परिवार के 40 सदस्यों के साथ सउदी अरब निर्वासित कर दिया
गया था। अर्श से फर्श पर आने और मौत की सजा से बचने के बाद नवाज शरीफ तीसरी बार पाकिस्तान
की सत्ता सम्भाल रहे हैं। 1976 में तत्कालीन प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो द्वारा
शरीफ परिवार के स्टील के कारोबार का राष्ट्रीयकरण किए जाने की घटना ने उन्हें राजनीति
में आने पर मजबूर किया। वह पाकिस्तान मुस्लिम लीग के सदस्य बने, फिर पंजाब प्रांत के
मुख्यमंत्री। इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। हालांकि बीते एक दशक में उनकी
जिन्दगी में जबरदस्त उतार-चढ़ाव आए लेकिन फिर पीएम बनकर उन्होंने दिखा दिया कि जेल
निर्वासन, अलग-थलग पड़ना सिर्प सत्ता का खेल है। राजनीति में किसी को खत्म हुआ नहीं
मानना चाहिए। पाकिस्तान और भारत दोनों मुल्कों में भारत-पाक संबंध बेहतर होने की उम्मीद
है। नवाज शरीफ ने घोषणा पत्र में वादा किया है कि लाहौर घोषणा पत्र के अनुसार भारत
के साथ कश्मीर, सियाचिन और जल संबंधी सारे विवाद सुलझाएंगे। जीत के बाद नवाज ने कहा
कि भारत से अच्छे रिश्ते पहली प्राथमिकता होगी। उन्होंने न केवल प्रधानमंत्री मनमोहन
सिंह को फोन ही किया बल्कि शपथ ग्रहण समारोह
में शामिल होने का न्यौता भी दिया है। उन्होंने वादा किया कि कारगिल की सच्चाई को भी
सामने लाएंगे। एक इंटरव्यू में मुंबई हमले में पाक सेना की साजिश मानते हुए कहा था
कि हमारे यहां कुछ लोग हैं जो नहीं चाहते कि भारत से रिश्तों में सुधार आए। पाक सेना
और आईएसआई हमेशा से भारत से रिश्तों के खिलाफ रही है। नवाज शरीफ का इन दोनों से हमेशा
टकराव रहा है। वैसे भारत को इतना उत्साहित भी नहीं होना चाहिए। पाकिस्तान के अंदरूनी
हालात इतने खराब हैं कि हमें नवाज शरीफ से किसी भी करिश्मे की उम्मीद नहीं करनी चाहिए।
हालांकि नवाज शरीफ का सत्ता में होना इमरान खान से ज्यादा बेहतर है। विशेषज्ञों के
मुताबिक नवाज शरीफ की प्राथमिकता में मुल्क के अंदरूनी हालात, अफगानिस्तान और फौज से
जुड़े मुद्दों को सुलझाना होगा। फौज से उन्हें चुनौती मिल सकती है। सेना के साथ पहले
भी उनकी अनबन रही है। अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच खुली सीमाओं के कारण तालिबान
का प्रभाव बढ़ा है। भारत के साथ नवाज शरीफ ने संबंध बेहतर बनाने की कोशिश की है लेकिन
मौजूदा हालात में पहले के मुकाबले में फर्प है। पाकिस्तान की प्राथमिकता में भारत फिलहाल
थोड़ा नजर आ रहा है। खस्ता अर्थव्यवस्था और भ्रष्टाचार से त्रस्त पाकिस्तानी अवाम को
उनसे बहुत उम्मीदें हैं और उन्हें इन पर विशेष ध्यान देना होगा। अमेरिका के साथ पाक
के संबंध बिगड़े हुए हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने पाकिस्तान की नई सरकार
के साथ अच्छे संबंधों की तमन्ना जताई है। ओबामा ने रविवार को एक बयान जारी करके कहा
कि पाकिस्तान में चुनावों के बाद आने वाली सरकार के साथ मेरा प्रशासन पाकिस्तानी जनता
को स्थिर, सुरक्षित और खुशहाल भविष्य देने के समर्थन में बराबर साझेदारी जारी रखेगा।
हालांकि इसके बावजूद अमेरिका में यह अटकलें भी लगने लगी हैं कि क्या पाकिस्तान आतंकवाद
के खिलाफ जंग में अमेरिका का साथ जारी रखेगा या नहीं? नवाज शरीफ ने चुनावी अभियान के
दौरान अमेरिका की चरमपंथ के खिलाफ जारी लड़ाई से पाकिस्तान को अलग करने की बात कही
थी। नवाज शरीफ तालिबान के प्रति नरम रुख भी अख्तियार करते हैं। इसके अलावा नवाज शरीफ
पाकिस्तान में अमेरिकी ड्रोन हमलों के बारे में भी सख्त रवैया रखते हैं। उनका कहना
है कि अमेरिकी ड्रोन हमले पाकिस्तान की सप्रभुता का उल्लंघन हैं। अमेरिका में समाचार
माध्यमों जैसे टीवी चैनलों और समाचार पत्रों में भी पाकिस्तानी चुनावों की तारीफ करते
हुए इस बात की चिन्ता जाहिर की गई है कि आखिर अब अगली पाक सरकार किस हद तक अमेरिका
के साथ मिलकर चरमपंथियों के खिलाफ जंग में मददगार साबित होगी? नवाज के सामने बहुत-सी
चुनौतियां हैं, देखें, क्या होता है?
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