Tuesday, 21 May 2013

क्या मनमोहन सिंह की कुर्सी पर बने रहने की उल्टी गिनती शुरू हो चुकी है


 Published on 21 May, 2013 
 अनिल नरेन्द्र 
प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह हाल ही में जब गुवाहाटी में राज्यसभा की सदस्यता बरकरार रखने के लिए अपना नामांकन दाखिल कर रहे थे तो दिल्ली में उसी समय कांग्रेस यह घोषणा कर रही थी कि यदि अदालत अश्विनी कुमार की तरह किसी भी बड़े से बड़े पदाधिकारी (पीएम का नाम लिए बिना) पर ऐसी तल्ख टिप्पणी करेगी तो कांग्रेस उसे पद से हटाने में देर नहीं करेगी। आजकल के चुनावी माहौल में कांग्रेस के लिए अपनी साख और छवि दोनों बेहद अहम बन गई  है। कांग्रेस प्रवक्ता शकील अहमद ने मनमोहन सिंह का नाम लिए बिना कहा कि अदालत ने अश्विनी कुमार और सीबीआई पर कोई फैसला नहीं दिया था सिर्प टिप्पणी की थी। लेकिन कांग्रेस ने इस पर गम्भीरता दिखाई। अश्विनी कुमार को मंत्रिपद से हटा दिया गया ताकि जुलाई में होने वाली सुनवाई में उनके कारण कोई अनावश्यक विवाद न पैदा हो और सीबीआई को और स्वायत्तता देने के लिए तत्काल पी. चिदम्बरम के नेतृत्व में मंत्री समूह का गठन कर दिया गया। उनसे जब पूछा गया कि यदि तत्कालीन कोयला मंत्रालय देखने वाले प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के बारे में सुप्रीम कोर्ट कोई विपरीत टिप्पणी करती है तो क्या उनका हश्र भी अश्विनी कुमार जैसा होगा? कांग्रेस प्रवक्ता का जवाब था कि कोई भी बड़े से बड़ा मंत्री क्यों न हो पार्टी दोहरे मापदंड नहीं अपनाएगी। कांग्रेस की यह टिप्पणी उस समय आई है जब राजनीतिक गलियारों में कांग्रेस अध्यक्ष और मनमोहन सिंह के बीच आपसी दरार की खबरें तेजी से फैल रही हैं। सूत्रों का तो यह भी कहना है कि अब कांग्रेस नेतृत्व का भरोसा मनमोहन सिंह पर वैसा नहीं रहा जैसा कि पहले हुआ करता था। जो लाभ 2009 के लोकसभा चुनाव में उनकी साफ-सुथरी छवि का पार्टी को मिला था वह अब नहीं मिलेगा। कांग्रेस में एक वर्ग ऐसा भी है जो मनमोहन सिंह पर तमाम घोटालों का ठीकरा फोड़ दे और उन्हें बलि का बकरा बना दे ताकि सरकार के तमाम घोटालों का ठीकरा उनके सिर फोड़ उन्हें चलता करे और नए सिरे से काम शुरू करके जनता के बीच जाएं। वैसे एक बड़े कांग्रेसी नेता ने यह भी कहा कि स्वास्थ्य की दृष्टि से भी मनमोहन सिंह बेहद कमजोर हो गए हैं। इसके अलावा अपने दोनों चहेतों अश्विनी कुमार और पवन कुमार बंसल को बचाने से नाराज मनमोहन सिंह मायूस हो गए हैं। कांग्रेस के दिग्गज महासचिव दिग्विजय सिंह भी खुले रूप से कह रहे हैं कि कांग्रेस में सत्ता के दो केंद्र सफल नहीं हो रहे, इसलिए निष्कर्ष यही निकलता है कि मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री पद के दिन गिने-चुने बचे हैं। शायद यह बात खुद मनमोहन सिंह भी समझ चुके हैं। उनकी बढ़ती अरुचि इसी ओर संकेत देती है। पिछले तीन महीने में कम से कम तीन बार मनमोहन सिंह सरकार का नेतृत्व कर पाने में अपनी असमर्थता जता चुके हैं। यूपीए-2 बनने के बाद से जिस तरह प्रधानमंत्री अलग-अलग कारणों के चलते आरोपों व आलोचना के केंद्र में रहे हैं उससे उनके दुखी होने को कांग्रेस रणनीतिकार स्वाभाविक मान रहे हैं। पार्टी रणनीतिकारों के समक्ष मनमोहन सिंह काफी खुलकर यह आग्रह भी कर चुके हैं कि वह राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बनाने के लिए किसी भी वक्त अपनी कुर्सी छोड़ने को तैयार हैं। 



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