Published on 15 May,
2013
अनिल नरेन्द्र
यूपी की अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी की सरकार ने गोरखपुर ब्लास्ट
में एक नामजद आरोपी तारिक कासिमी के खिलाफ दर्ज मुकदमे को वापस लेने के लिए आदेश दिए
थे। गृह सचिव सर्वेश चन्द्र मिश्रा के मुताबिक गोरखपुर के डीएम और एएसपी की रिपोर्ट
के आधार पर यह कदम उठाया गया। 22 मई 2007 को गोरखपुर में हुए सीरियल बम धमाकों में
छह लोग गम्भीर रूप से घायल हो गए थे। शुरुआती जांच में सामने आया था कि ब्लास्ट इंडियन मुजाहिद्दीन और हूजी के आतंकियों
ने मिलकर किए। इसी सिलसिले में कथित रूप से जुड़े तारिक कासिमी पर भी गोरखपुर ब्लास्ट
में मुकदमा दर्ज किया गया था। पिछली बसपा सरकार ने आतंकियों पर लगे मुकदमों की जांच
के लिए आरडी निमेश की अध्यक्षता में एक आयोग बनाया था। कासिमी के घर वालों का कहना
है कि निमेश आयोग की रिपोर्ट में बाराबंकी से कासिमी और मुजाहिद की गिरफ्तारी पर सवाल
उठाए गए हैं। यह गिरफ्तारी पूरी तरह से उनके अनुसार संदेह के घेरे में है। वैसे तारिक
कासिमी पर गोरखपुर के अलावा लखनऊ और फैजाबाद कोर्ट में 23 नवम्बर 2007 को हुए एक अन्य
ब्लास्ट में भी मुकदमा चल रहा है। यूपी पुलिस और स्पेशल टॉस्क फोर्स ने तारिक और हूजी
से संबंधित जौनपुर के खालिद मुजाहिद को बाराबंकी स्टेशन के पास से दिसम्बर 2007 में
गिरफ्तार किया था। दोनों के पास से 1250 किलो आरडीएक्स, छह डेटोनेटर, तीन मोबाइल व
छह सिम कार्ड मिले थे। बाराबंकी की विशेष सत्र न्यायाधीश कल्पना मिश्रा ने यूपी सरकार
को करारा झटका देते हुए आरोपी संदिग्ध आतंकियों पर बाराबंकी में विस्फोट बरामद होने
संबंधी सरकार द्वारा केस वापस लेने की अर्जी
को खारिज कर दिया है। तारिक कासिमी व खालिद मुजाहिद के वकील रणधीर सिंह सुमन ने बताया
कि जज ने कासिमी व मुजाहिद के खिलाफ दर्ज केस वापस लेने की गत 26 अप्रैल को दी गई अर्जी
ठुकरा दी है। कोर्ट ने कहा कि सरकार ने अर्जी में आग्रह किया है कि वह सांप्रदायिक
सौहार्द के तकाजे में केस वापस लेना चाहती है पर उसने इन दोनों शब्दों की व्याख्या
नहीं की। सरकार ने जिन मुकदमों की वापसी के लिए प्रार्थना पत्र दिया था, उनमें देशद्रोह
का भी एक मामला है। अदालत के फैसले के बाद उत्तर प्रदेश के नगर विकास मंत्री मुहम्मद
आजम खान ने कहा कि इसके खिलाफ अपील की जाएगी। इसके खिलाफ ऊपर की अदालत में अपील की
जाएगी। किसी भी मामले में सरकार का अपना अधिकार क्षेत्र होता है और अदालत का अपना।
अगर कोर्ट निर्दोष है तो उसे न्याय मिलना चाहिए। एक आरोपी निर्दोष है या कसूरवार हमारी
राय में आजम साहब यह फैसला सरकार को नहीं करना और न ही उसके अधिकार क्षेत्र में आता
है। यह फैसला अदालतों पर ही छोड़ना चाहिए। आप अपनी वोट बैंक सियासत के लिए देश की सुरक्षा
से खिलवाड़ कर रहे हैं जिसकी इजाजत नहीं होती। अगर यह दोनों वाकई ही निर्दोष हैं तो
निश्चित रूप में अदालत से बरी हो जाएंगे। आप अदालतों के कामकाज में दखलअंदाजी न करें।
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