Wednesday 29 May 2013

सत्ता पर आसीन राजनेताओं के सुर में सुर न मिलाएं सरकारी अफसर


 Published on 29 May, 2013 
 अनिल नरेन्द्र 
 चाहे केंद्र सरकार हो या राज्य सरकार उनकी कारगुजारी का दारोमदार नौकरशाही पर निर्भर करता है। यूपीए की केंद्र सरकार तो अफसरों के दम पर ही चली रही है। खुद नौकरशाह प्रवृत्ति के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के कार्यकाल में अफसरशाही जितनी प्रभावशाली हुई है वह शायद इससे पहले किसी भी सरकार के कार्यकाल में नहीं हुई। अफसर बिरादरी भी यह भूल जाती है कि अपने राजनीतिक आकाओं को प्रसन्न करने के इरादे से वह  मर्यादाएं, संवैधानिक जिम्मेदारियों की अनदेखी कर सारी सीमाएं लांघ जाती है। इस संबंध में देश की सर्वोच्च अदालत (सुप्रीम कोर्ट) ने सरकारी अफसरों की खिंचाई करते हुए सुझाव भी दिए हैं। सत्ता पर आसीन राजनीतिक नेताओं के दबाव में सहकारी बैंक के निर्वाचित निदेशक मंडल को भंग करके प्रशासक नियुक्त करने की मध्य प्रदेश सरकार की कार्रवाई पर सुप्रीम कोर्ट ने कड़ा रुख अपनाया है। सुप्रीम कोर्ट ने देश के समस्त सहकारी निबंधकों को आगाह किया है कि सत्तासीन राजनीतिक आकाओं के सुर में सुर मिलाकर गैर कानूनी काम करने पर अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी। हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में मुकदमेबाजी में खर्च हुआ करदाता को पैसा उन सरकारी अफसरों से वसूला जाएगा जो कानून से हटकर राजनीतिक दबाव में फैसला लेते हैं। जस्टिस केएस राधाकृष्णन और दीपक मिश्र की बैंच ने मध्य प्रदेश के पन्ना स्थित जिला सहकारी बैंक के निर्वाचित निदेशक मंडल को बहाल करने का आदेश दिया। अदालत ने कहा कि जिस अवधि तक निदेशक मंडल को बर्खास्त रखा गया, उस अवधि तक वह निदेशक मंडल के रूप में काम करेगा। बैंच ने इस बात पर सख्त आपत्ति जताई कि भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के दिशा-निर्देशों का उल्लंघन करके निदेशक मंडल को बर्खास्त कर दिया गया है। बैंकिंग नियमों के अनुसार आरबीआई से परामर्श किए बिना निदेशक मंडल को उसके निर्वाचित कार्यालय से पहले हटाया नहीं जा सकता। सागर के संयुक्त रजिस्ट्रार ने निदेशक मंडल को कारण बताओ नोटिस जारी करने के ढाई साल बाद भंग कर दिया था। इससे साफ है कि सरकारी अफसरों ने राजनीतिक दबाव में यह फैसला किया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि गुटबाजी को लेकर हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में मुकदमा दायर करके करदाता के पैसे को पानी की तरह बहाना समझ से बाहर है। अदालत ने राज्य सरकार पर एक लाख रुपए जुर्माना भी किया। जुर्माने की यह राशि एक माह के अन्दर मध्य प्रदेश लीगल सर्विस अथारिटी में जमा करनी होगी। सागर के संयुक्त सहकारी रजिस्ट्रार पर भी 10 हजार रुपए जुर्माना किया गया है। यह राशि अफसर के वेतन से काटने के निर्देश दिए गए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर सख्त एतराज किया कि ऑडिट रिपोर्ट में मामूली आपत्तियों की आड़ में निर्वाचित निदेशक मंडल को उसके वैधानिक अधिकार से वंचित कर दिया। आरबीआई ने भी सुप्रीम कोर्ट को भेजी अपनी रिपोर्ट में कहा कि ऑडिट रिपोर्ट की आपत्तियां रुटीन हैं। सहकारी बैंकों के इस तरह के केस बड़ी तादाद में अदालतों में विचाराधीन हैं, इसलिए इस संबंध में दिशा-निर्देश जारी करने की सख्त जरूरत है। जब तक सरकारी अफसरों की जवाबदेही तय नहीं की जाएगी तब तक वह अपने राजनीतिक आकाओं के इशारों पर काम करते रहेंगे।


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