Tuesday, 7 May 2013

चीन को मुंहतोड़ जवाब देने के लिए साहस और दृढ़ इच्छाशक्ति चाहिए




 Published on 7 May, 2013 
 अनिल नरेन्द्र 
 कुछ दिन पहले ही चीन की नई सरकार ने भारत से संबंध सुधारने की दिशा में पांच सूत्री फार्मूले की घोषणा करते हुए कहा था कि भारत और चीन को द्विपक्षीय संबंधों को आगे बढ़ाने के लिए कूटनीतिक प्रयास जारी रखने चाहिए। चीन की इस पहल का भारत ने स्वागत किया था और उम्मीद की थी कि वर्षों से लटकी समस्याएं अब मिल-बैठकर सुलट जाएंगी पर जैसा हमेशा से होता आ रहा है चीन की कथनी और करनी में बहुत अन्तर है। भारत को ज्यादा दिन प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ी और चीन ने अपना असली चेहरा दिखा दिया। लद्दाख के दौलत बेग ओल्डी सेक्टर में चीन भारत की सीमा में 19 किलोमीटर तक अन्दर घुस आया है और उसने न केवल अपने तम्बू ही गाड़ लिए हैं बल्कि वह वापस जाने से इंकार कर रहा है। सूत्रों के मुताबिक भारत-तिब्बत सीमा पुलिस के जवानों द्वारा देखे जाने की वजह से चीनी सैनिकों ने कुछ पीछे हटकर अपने टैंट लगाए जो वास्तविक नियंत्रण रेखा से 19 किलोमीटर अन्दर है। एक अंग्रेजी दैनिक के अनुसार चीन द्वारा सीमा में अतिक्रमण के कारण भारत 750 स्क्वायर किलोमीटर का क्षेत्र अपनी पकड़ से गंवा सकता है। क्योंकि ऐसा नहीं लग रहा कि चीन का वहां से वापस जाने का कोई इरादा है। चीन द्वारा नियंत्रण रेखा का अतिक्रमण कोई पहली बार नहीं किया गया है। आंकड़े बताते हैं कि 2010 से लेकर 2011 के बीच वह 750 से अधिक बार अतिक्रमण कर चुका है। अब की बार चीन ने सिर्प घुसपैठ नहीं की बल्कि वह टकराव पर भी आमादा है। आश्चर्य यह है कि उसके द्वारा सीमा पर ऐसे समय में हरकत की जा रही है जब उसके प्रधानमंत्री को भारत आना है और भारतीय विदेश मंत्री की चीन यात्रा तय है। ऐसे में मौजूदा तनाव और ली की कियांग की यात्रा को आपस में जोड़कर देखा जाना गलत न होगा। यह परखा हुआ सच है कि जब भी चीन का शीर्ष नेतृत्व भारत आता है या भारतीय नेतृत्व चीन जाता है उससे पहले चीन भारत को दबाव में लेने के लिए इस तरह का विवाद खड़ा करता है। दरअसल चीन को चिन्ता है कि कहीं भारत वार्ता के दौरान तिब्बत मसला न छेड़ दे, ब्रह्मपुत्र का मसला न छेड़ दे। चीन को वैश्विक परिप्रेक्ष्य में भारत के बढ़ते कदमों की भी चिन्ता सता रही है। सवाल अब यह उठता है कि भारत चीन को क्या जवाब देगा? चीन को यह भी नागवार गुजर रहा है कि भारत उस क्षेत्र में इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत करने में लगा है। अब दो ही स्थितियां बनती हैं। एक, मौजूदा गतिरोध जारी रहे। इसका एक मायना समडुरुंग यू दोहराना हो सकता है। इसमें मौजूदा यूपीए सरकार को यह सुविधा होगी कि उसे लड़ना नहीं पड़ेगा। वह वर्षों तक चीनियों के खुद लौट जाने की राह देखे। समडुरुंग यू में आए चीनी सैनिक नौ साल बाद लौटे थे। हालात पर ही उसके सुलझ जाने की जवाबदेही छोड़कर इत्तमीनान से इंतजार करने का धैर्य तो सरकार में है, अब भी वह इसी मूड में है। मौजूदा मामले के लम्बा खींचने का दोष मीडिया पर थोपने के पीछे यही निक्रिय मानसिकता है। इस क्रम में मनमोहन सिंह सरकार यह नहीं देख रही कि एलओसी पर विवाद रोकने के चार-चार समझौते और यहां तक कि अभी जनवरी में किए गए उपाय का चीन ही अनादर कर रहा है। अभी सेना के एकीकृत कमान में रक्षामंत्री ने दोहराया है कि सारे विकल्प खुले हैं। वह पिछले 20 दिनों से यही कहते आ रहे हैं। अब यह मामला लोकल नहीं रहा, जिसे क्षेत्रीय कमांडर सुलझाने में सक्षम हों। जहां चीनी तम्बू गड़े हैंöउनकी संख्या अभी बढ़ेगी, क्योंकि चीन की यह सामरिक नीति का हिस्सा है। वहां से कारकोरम पर सीधी नजर रखी जा सकती है और हर एक मौसम के अनुकूल राष्ट्रीय उच्च पथ पर निगरानी की जा सकेगी। चीन यहां जमने के विचार से आया है। यह हिमालय क्षेत्र में भारत की घेरेबंदी की ही एक और कड़ी है। एक दुश्मन विचार से चीन भारत को रणनीतिक रूप से हमेशा सांसत में रखेगा। अगर चीन यहां से नहीं हटता या नहीं हटाया जाता है तो भारत के लिए भी भुगतना मुमकिन नहीं होगा, डीबीओ के भूगोल के भारत के सामरिक पक्ष में न होने के बावजूद। भारत सरकार की कूटनीतिक विफलता का ही नतीजा है कि चीन भारत के अन्य पड़ोसी देशोंöनेपाल, श्रीलंका, बंगलादेश, म्यांमार और पाकिस्तान में अपना दखल बढ़ाता जा रहा है। खबर तो यह भी है कि वह पीओके में मिसाइल स्टोर के लिए 22 सुरंगें बनाने की कोशिश में है। यह सही है कि चीन भारत पर हमला शायद न करे पर भारत सरकार की उदासीनता की वजह से जमीन हथियाने से चूकेगा भी नहीं। भारत को जवाबी कार्रवाई करनी होगी पर इसके लिए इच्छाशक्ति, साहस और दृढ़ संकल्प की जरूरत है जो इस यूपीए सरकार में नजर नहीं आती। ताजा समाचारों के अनुसार चीन भारत से अपनी सेनाएं हटाने के लिए तैयार हो गया है। रविवार शाम सात बजे खबर आई कि भारत और चीन इस फेस ऑफ प्वाइंट से एक साथ हटने को राजी हो गए हैं। हालांकि अभी यह स्पष्ट नहीं हुआ है कि चीनी सेनाएं वापस उसी जगह चली गई हैं जहां वह 15 अप्रैल से पहले थीं।


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