Published on 23 May,
2013
अनिल नरेन्द्र
यदि अभी आम चुनाव हों तो यूपीए की हार तय है। प्रधानमंत्री
पद की दौड़ में भाजपा नेता नरेन्द्र मोदी कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी से काफी आगे
हैं। मोदी को 36 फीसदी तो राहुल को 12 फीसदी लोग प्रधानमंत्री के रूप में देखना चाहते
हैं। यूपीए की सरकार धीरे-धीरे अपनी जमीन खोती जा रही है और इसकी सबसे बड़ी वजह है
महंगाई और भ्रष्टाचार का बढ़ता जाना। लेकिन दोनों गठबंधनों के वोट प्रतिशत में बड़ा
अन्तर नहीं पड़ेगा। सर्वे के मुताबिक 27 फीसदी लोग एनडीए को वोट देंगे जबकि यूपीए को
26 प्रतिशत वोट मिलेंगे। सर्वे करने वाली संस्था नीलसन और एक समाचार चैनल एपी न्यूज
के हालिया सर्वे के आधार पर यह दावा किया गया है। नीलसन का दावा है कि 21 राज्यों के
152 लोकसभा क्षेत्रों में 33 हजार लोगों से सवाल पूछे गए। सर्वे एक मई से 10 मई के
बीच किया गया। गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 2014 के लोकसभा चुनाव के लिए अपनी गोटियां फिट करनी शुरू
कर दी हैं। मोदी की प्राथमिकताएं स्पष्ट हैं। दिल्ली का रास्ता उत्तर प्रदेश से बन
रहा है। मोदी ने अपने खासमखास अमित शाह को उत्तर प्रदेश का प्रभारी नियुक्त कराया है।
शाह को यूपी का प्रभारी बनाए जाने पर भाजपा नेताओं ने खुशी जताई तो कामरेडों ने कहा
कि भाजपा इस सूबे को फिर से सांप्रदायिक ताकतों के हवाले करने जा रही है। अमित शाह
को प्रभारी बनाए जाने का राजनीतिक संदेश साफ है। एक तरफ सपा और बसपा जातीय सम्मेलन
कर रहे हों और दूसरी तरफ भाजपा मजहबी गोलबंदी में जुट जाए तो आगामी लोकसभा में सबसे
बड़ा दंगल होना तय है। भाजपा आलोचकों का कहना है कि राजनाथ सिंह के नेतृत्व में भाजपा
उत्तर प्रदेश में फिर से राजनीतिक ध्रुवीकरण का बड़ा दांव खेलना चाहती है। इस रणनीति
के तहत पहले वरुण गांधी को आगे किया गया, फिर गुजरात में नाम कमा चुके अमित शाह को
प्रभारी बना दिया गया। भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने नाम न देने की शर्त पर कहा कि राजनाथ
सिंह और नरेन्द्र मोदी के बीच जो राजनीतिक समझौता हुआ है यह उसी का नतीजा है। मोदी
को पता है कि बिना उत्तर प्रदेश के दिल्ली तक कोई रास्ता नहीं जा सकता है, इसलिए उन्होंने
उत्तर प्रदेश की कमान अप्रत्यक्ष रूप से सम्भाल ली है। अमित शाह के आते ही जो संदेश
भाजपा ने दिया है उसका असर जल्द दिखने लगेगा। शाह ने भाजपा के आंदोलन के तहत 29 मई
को गिरफ्तारी के लिए सपा के तेज-तर्रार नेता और संसदीय कार्यमंत्री आजम खान के गढ़
रामपुर को चुना है। शाह के खान के गृह शहर
रामपुर से उत्तर प्रदेश के दौरे की शुरुआत से यह संदेश जाना शुरू हो गया है कि आगामी
लोकसभा चुनाव में वोटों का ध्रुवीकरण हो सकता है, क्योंकि आजम खान का मुसलमानों में
खासा प्रभाव माना जाता है जबकि शाह का गुजरात दंगों में नाम उभरकर आया था। हाल ही में
खान ने भाजपा नेताओं को संयम बरतने की चेतावनी दी थी। उन्होंने कहा था कि भाजपा नेताओं
को समझना होगा कि यह गुजरात नहीं बल्कि उत्तर
प्रदेश है। सपा अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव ने भी कहा था कि यूपी में मोदी फैक्टर काम
नहीं करेगा, क्योंकि यहां की जनता बाहरी लोगों को स्वीकार नहीं करती। भाजपा ने अमित
शाह को यूपी राज्य का प्रभारी बनाकर एक तीर से कई निशाने साधते हुए यह संदेश देने की
कोशिश की है कि वह हिन्दुत्व के मुद्दे पर अभी पूर्व की तरह डटी हुई है। उत्तर प्रदेश
की मौजूदा राजनीति में बसपा और सपा मुख्य मुकाबले
की पार्टियां हैं पर मजहबी गोलबंदी हुई तो सपा से ज्यादा नुकसान बसपा को हो सकता है।
यूपी पुलिस का भी मानना है कि मजहबी गोलबंदी से सूबे में कानून व्यवस्था पर असर पड़
सकता है। लोकसभा चुनाव से पहले अयोध्या, फैजाबाद से लेकर पूर्वांचल तक टकराव के हालात
बन सकते हैं। अमित शाह की राजनीतिक शुरुआत अगर रामपुर से हो रही है तो भाजपा या मोदी
की राजनीति के अगले कदम का अंदाजा लगाया जा सकता है।
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