Saturday, 25 May 2013

विनोद राय ने टीएन शेषन की याद ताजा कर दी


 Published on 25 May, 2013 
 अनिल नरेन्द्र 
 नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) के पद पर साढ़े पांच साल रहने के बाद विनोद राय बुधवार को रिटायर हो गए। नए कैग नियुक्त शशिकांत शर्मा ने गुरुवार को अपना कार्यभार सम्भाल लिया। श्री विनोद राय का कार्यकाल कुछ-कुछ पिछली सदी के आखिरी दशक में मुख्य चुनाव आयुक्त रहे टीएन शेषन के कार्यकाल की याद दिलाता है। टीएन शेषन ने चुनाव आयोग को ताकतवर बनाने में अगर ऐतिहासिक भूमिका निभाई थी तो भ्रष्टाचार के खिलाफ सिविल सोसायटी के सक्रिय होने के इस दौर में विनोद राय ने कैग को एक पारदर्शी और जिम्मेदार संस्था बनाने में पूरी ताकत झोंक दी। उन्होंने साबित कर दिया कि कैग एक सरकारी पिछलग्गू संस्था नहीं है और न ही कैग सरकारी खर्च के ऑडिट करने वाली एक संस्था बल्कि सरकारी धन के दुरुपयोग के बारे में देश को बताने का अधिकार जो उसे संविधान ने दिया है, को पूरा करेगी। तभी तो कैग के अब तक के इतिहास में यह पहली बार था जब 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन से लेकर कोल ब्लॉक आवंटन जैसे कई मामलों में उसकी शुरुआती रिपोर्टों ने न सिर्प सरकार के भ्रष्टाचार की पोल खोली बल्कि कई मंत्रियों को जाना भी पड़ा। देश के इस वक्त लोकतंत्र के विविध स्तम्भों व संवैधानिक पदों की जिम्मेदारियों और उनके दायरों को लेकर व्यापक विमर्श चल रहा है। कोलगेट की जांच में सरकारी दखल को लेकर सामने आए तथ्य इसका आधार बने। इसी बीच केयर्न-वेदांता करार पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट द्वारा टिप्पणी की गई है कि किसी विषय पर कैग की रिपोर्ट अंतिम सत्य नहीं है। हालांकि संबंधित बैंच ने यह भी कहा कि कैग की रिपोर्ट को दरकिनार भी नहीं किया जा सकता। यह लोक लेखा समिति के ऊपर है कि वह कैग की आपत्तियों को स्वीकार करे या खारिज करे। गौरतलब है कि विनोद राय हाल के समय में यूपीए सरकार द्वारा बार-बार निशाने पर लिए जाते हैं। खासकर Šजी स्पेक्ट्रम मामले और कोयला आवंटन में भारी-भरकम नुकसान के कैग के आंकड़े पर सत्तापक्ष को हमेशा आपत्ति रही है। कभी कैग को शून्य बढ़ाने का आदी बताया गया तो कभी उसकी तुलना एक मुनीम से की गई। ऐसे में पूरी आशंका है कि सरकारी पक्ष के प्रवक्ताओं द्वारा शीर्ष अदालत की ताजा टिप्पणी के चुनिन्दा अंश का इस्तेमाल कैग की विश्वसनीयता को कम करने के लिए किया जाए। हालांकि सच्चाई यह है कि कैग द्वारा जिस किसी मामले में भी नुकसान के आंकड़े दिए गए, उसमें संशोधन और सुधार की गुंजाइश को भी सदैव रेखांकित किया गया। बहरहाल पहले तीन से चार साल में जारी होने वाली कैग रिपोर्टें विनोद राय के समय में सिर्प पांच से छह महीने में आने लगीं बल्कि इन्हें पाठकों के अनुकूल बनाया गया ताकि लोग समझ सकें कि सरकारी धन का खर्च किस तरह से हो रहा है। सरकारी धन के दुरुपयोग को बताने के लिए इन रिपोर्टों में अनुमानित क्षति की अवधारणा को पहली बार शामिल किया गया तो इसकी वजह यही है। कैग की कार्य संस्कृति में आए इस बदलाव के कारण ही पहली बार उसे संयुक्त राष्ट्र की कई संस्थाओं का ऑडिट करने का मौका मिला। विनोद राय ने इस संस्था को जिस ऊंचाई पर छोड़ा है शशिकांत शर्मा को न केवल उस ऊंचाई को बरकरार रखना होगा बल्कि और ऊपर ले जाना होगा।


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