Wednesday, 29 May 2013

नक्सली तो गोली चलाने वाले हैं पर गोली चलवाने के पीछे कौन, क्यों?


 Published on 29 May, 2013 
 अनिल नरेन्द्र 
 छत्तीसगढ़ में हुए नक्सली हमले के पीछे गहरी साजिश की बू आ रही है। हथियारबंद गुरिल्लाओं द्वारा छत्तीसगढ़ कांग्रेस अध्यक्ष नंद कुमार पटेल और उनके बेटे दिनेश की जिस तरह चुन-चुन कर हत्या की गई उससे नक्सलियों की रणनीति के जानकार भी हैरान हैं। पटेल के साथ उसी वाहन में बैठे विधायक कावासी लकमा को छोड़ दिए जाने और पटेल व उनके बेटे को 400 मीटर दूर ले जाकर गोली मारने पर संदेह जाहिर होना स्वाभाविक है। जानकारों का कहना है कि पटेल माओवादियों की हिटलिस्ट में नहीं थे। इसके बावजूद उनके बेटे तक का खात्मा किया जाना पहले हुई माओवादी घटनाओं से मेल नहीं खाती। पटेल के छोटे बेटे उमेश ने भी आरोप लगाया कि उनके पिता की हत्या के पीछे राजनीतिक साजिश है। इस हत्याकांड से फायदा किस-किस को होता है? सत्तारूढ़ भाजपा चुनावी वर्ष में ऐसे हमलों से क्यों अपनी सम्भावनाएं धूमिल करेगी? मुख्यमंत्री रमन सिंह ने स्वीकार किया है कि हमले के लिए सुरक्षा इंतजामों की कमी भी जिम्मेदार है। मगर नेताओं को पर्याप्त सुरक्षा न देने के आरोप गलत हैं। जबकि कांग्रेस युवा नेता राहुल गांधी के अनुसार हमले के लिए सुरक्षा इंतजामों में कमी भी जिम्मेदार है, राज्य सरकार कांग्रेस के कार्यकर्ताओं की सुरक्षा के प्रति गम्भीर नहीं है। मुख्यमंत्री यह बताएं कि आखिर यह घटना कैसे हो गई? आरोप-प्रत्यारोप का यह सिलसिला और तेज होगा क्योंकि यह चुनावी वर्ष है पर हमें मूल संदेहों से नहीं हटना चाहिए। पहली बात तो यह है कि 800-1000 नक्सली एक स्थान पर इकट्ठे कैसे हुए? क्या इतनी संख्या में नक्सलियों की मूवमेंट पर कोई ध्यान नहीं दिया जाता? किसी भी प्रकार का सर्विलेंस नहीं होता खासतौर पर जब नक्सलियों ने ऐसे हमले की चेतावनी दी थी और कहा था कि कांग्रेस अपनी प्रस्तावित यात्रा को रद्द करे। फिर सवाल उठता है कि कांग्रेसी नेताओं के काफिले का रूट ऐन वक्त पर क्यों बदला गया? कांग्रेसी काफिले को पहले अलग रास्ते से गुजरना था, लेकिन परिवर्तन यात्रा का काफिला उसी रास्ते से वापस लौटा जिस रास्ते से वह पहले गुजरा था। नक्सली हमलों को करीब से जानने वाले लोगों का कहना है कि यात्रा के मार्ग में बदलाव की जानकारी किसी ने तो नक्सलियों को वक्त रहते दी होगी जिससे वह हमले की तैयारी कर सके। इतने बड़े स्तर का हमला बिना प्लानिंग के सम्भव नहीं है। सुकमा से जगदलपुर का रूट बदलने पर सवाल उठाए जाने स्वाभाविक ही हैं। कांग्रेसी नेता अजीत जोगी ने भी परिवर्तन यात्रा के रूट बदलने पर सवाल खड़े किए हैं। जानकार यह भी बताते हैं कि नक्सल इलाके में जो रास्ता आने के लिए चुना जाता है उससे वापस नहीं जाना चाहिए। इस हमले में कांग्रेस के दो वरिष्ठ नेताओं सहित 27 लोग मारे गए। खबर है कि माओवादी पोलित ब्यूरो के सदस्य कटकम सुदर्शन उर्प आनंद हमले का मास्टर माइंड था। एनआईए की टीम मौके पर पहुंच चुकी है। सरकारी सूत्रों ने बताया कि पुलिस महानिरीक्षक संजीव कुमार सिंह के नेतृत्व वाली एनआईए की टीम से मिलकर  घटना की जांच में जुट गए हैं। इतना साफ है कि कांग्रेस के वरिष्ठ नेता महेन्द्र कर्मा नक्सलियों के निशाने पर कई दिनों से थे। छत्तीसगढ़ में नक्सलियों के खिलाफ आंदोलन का उन्हें सबसे मुखर और जुझारू नेता माना जाता था। इसीलिए उन्हें बस्तर का टाइगर भी कहा जाता था। जब सलवा जुडूम आंदोलन की शुरुआत हुई तो महेंद्र कर्मा को ही उसका नेता माना गया। छत्तीसगढ़ विधानसभा से 2003 से 2009 के  बीच नेता प्रतिपक्ष रहे महेन्द्र कर्मा ने अपने परिवार के दर्जनभर लोगों को नक्सली हमलों में खोया है। इससे पूर्व भी नक्सली चार बार कर्मा पर प्राणघातक हमला कर चुके थे जिनमें वह बच गए थे। जान हथेली पर रखकर राजनीति करने वाले इस बहादुर नेता का सोमवार को दंत्तेवाड़ा जिले में स्थित पैतृक गांव में अंतिम संस्कार कर दिया गया। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्य के रूप में अपनी राजनीति शुरू करने वाले महेंद्र कर्मा चार बार विधानसभा के सदस्य निर्वाचित हुए। ऐसे निडर, साहसी नेता के जाने से जहां कांग्रेस पार्टी को एक बहादुर, साहसी नेता की हानि हुई वहीं पूरा देश आज उन्हें सलाम करता है। काश! उनकी तरह और भी राजनेता साहसी होते तो आज नक्सली समस्या इतना गम्भीर रूप न धारण करती। यह संतोष की बात है कि इसी हमले में गम्भीर रूप से घायल हुए पूर्व केंद्रीय मंत्री व कांग्रेस के वरिष्ठ नेता विद्याचरण शुक्ल की मेदांता अस्पताल में चल रहे इलाज से सेहत में सुधार हुआ है। 84 वर्ष से अधिक उम्र होने के चलते श्री शुक्ल की रिकवरी प्रक्रिया में काफी समय लगेगा। इस हमले की बारीकी से जांच होनी चाहिए। हमें तो यह स्पष्ट किसी गम्भीर राजनीतिक साजिश का परिणाम लगता है।


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