Tuesday, 30 April 2013

मामला आजम खान के बोस्टन हवाई अड्डे पर अपमान का




 Published on 30 April, 2013 
 अनिल नरेन्द्र 
 अमेरिका की आतंकवाद के खिलाफ जीरो टोलरेंस नीति के तहत अमेरिकी हवाई अड्डों पर बड़े से बड़े व्यक्ति चाहे वह एक डिपलोमेट हो, मंत्री हो, उसकी गहन जांच होती है। अमेरिका के हवाई अड्डों पर पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम, फिल्म अभिनेता शाहरुख खान, आमिर खान समेत कई प्रमुख भारतीय लोगों को सुरक्षा के नाम पर रोका जा चुका है। ताजा मामला उत्तर प्रदेश के नगर विकास मंत्री आजम खान से जुड़ा है। आजम खान को बोस्टन हवाई अड्डे पर रोकने और उनसे पूछताछ की घटना से एक बार फिर विवाद छिड़ गया है कि मुस्लिम नामों वाले व्यक्तियों को ही विशेष रूप से पूछा जाता है? क्या अमेरिकी अधिकारी यह समझते हैं कि भारत सरकार या भारत के किसी राज्य का एक जिम्मेदार मंत्री किसी भी प्रकार की आतंकी गतिविधि में शामिल हो सकता है। अभिनेता कमल हासन तो इसके शिकार इसलिए हुए कि उनका नाम मुस्लिम मालूम देता है, हालांकि वह मुस्लिम नहीं है। यही नहीं, जिस व्यक्ति का रंग-रूप कॉकेशियन नस्ल का गोरा न हो, वह भी इनकी चपेट में आ सकता है, खासतौर पर अगर वह मध्य पूर्व या मध्य एशियाई दिखता हो। वैसे बोस्टन इन दिनों इसलिए भी ज्यादा संवेदनशील माना जाएगा क्योंकि कुछ ही दिनों पहले बोस्टन मैराथन में दो बम धमाके हो चुके हैं। सम्भव है कि इसके मद्देनजर हवाई अड्डे पर सुरक्षा के प्रबंध ज्यादा पुख्ता हों। विडम्बना यह है कि बोस्टन मैराथन में हमला करने वाले कथित दोनों व्यक्ति गोरे थे और न ही वह मध्य पूर्व से थे और न ही मध्य एशिया के थे। चूंकि अमेरिका आज एकमात्र महाशक्ति है और अपने आपको किसी को भी जवाबदेही नहीं मानता इसलिए उसे इस बात की कतई फिक्र नहीं कि किस अमुक व्यक्ति से किस प्रकार का व्यवहार कर रहा है और क्या वह जरूरी भी है। वैसे भी अमेरिका को न तो दूसरी संस्कृतियों के बारे में कोई जानकारी है और न ही वह जानने का प्रयास करता है। जो व्यक्ति मरने-मारने के इरादों से आता है वह तो अमेरिका की खुफिया एजेंसी सीआईए में भी गोलाबारी कर देता है। दुनिया में अब तक का सबसे बड़ा हमला 9/11 को समय से रोकने में असफल रही अमेरिकी सुरक्षा एजेंसियां सुरक्षा के नाम पर जिसे चाहें अपमानित कर देती हैं। बहुत से लोग तो इन ओच्छी हरकतों की वजह से अमेरिकी दुश्मन बन जाते हैं। बाहर की बात छोड़ो अमेरिका के अन्दर ही काले और हिस्पानी नागरिकों के साथ अमेरिकी समाज का बर्ताव एक जैसा नहीं है। अब व्यक्ति अमेरिका जाने से पहले 10 बार सोचता है। आजम खान से एयर पोर्ट पर बदसलूकी के बाद अमेरिका का हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के व्याख्यान का बहिष्कार करके उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने न केवल अमेरिका को माकूल जवाब ही दिया बल्कि उन्होंने एक तीर से कई निशाने साधे हैं। उन्होंने न केवल अमेरिकी व्यवस्था को माकूल जवाब दिया है बल्कि ऐसी घटनाओं से आहत मुसलमानों के जख्मों पर मरहम भी लगाया है। दरअसल 9/11 की घटना के बाद अमेरिका में सुरक्षा के नाम पर सारे विश्व के मुसलमानों का उत्पीड़न बढ़ा है। यूं भी दुनियाभर में खासतौर पर भारत के मुसलमानों की भावनाएं अमेरिका के खिलाफ होती जा रही हैं और यह तब है कि जब अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा खुद मुसलमान हैं।


सरबजीत की जान को खतरा हमेशा था, भारत सरकार सोती रही




 Published on 30 April, 2013 
 अनिल नरेन्द्र 
 पंजाब के भिखीविंड निवासी सरबजीत सिंह ने लाहौर की कोट लखपत जेल में अपनी जान पर आए गम्भीर खतरे के बारे में पहले ही बता दिया था। कुछ महीने पहले लाहौर से अपने वकील के जरिए बहन दलबीर कौर को भेजे पत्र में उसे लिखा था, जेल में मेरी जान को हर वक्त खतरा है। मुझे शक है कि `स्लो पायजन' देकर या हमला करके पाकिस्तानी मुझे जेल में ही मार देंगे। सरबजीत की आशंका सही साबित होती लग रही है। शुक्रवार को लाहौर की सेंट्रल जेल में सरबजीत सिंह पर पांच पाकिस्तानी कैदियों द्वारा ईंट और प्लेट से हमला किया गया। ताजा खबर के अनुसार सरबजीत सिंह गहन बेहोशी (कोमा) की हालत में है  और उसे जीवनरक्षक प्रणाली (वेंटिलेटर) पर रखा गया है। चिकित्सकों ने शनिवार को बताया कि सरबजीत (49) की हालत स्थिर होने तक वे उनकी सर्जरी करने में सक्षम नहीं होंगे। पाकिस्तानी उच्चायोग ने सरबजीत के परिवार के चार सदस्यों के लिए वीजा जारी किया ताकि वे लाहौर के एक अस्पताल में भर्ती सरबजीत से मिल सके। सरबजीत की पत्नी सुखप्रीत कौर, बेटिया पूनम और स्वपनदीप कौर व बहन दलबीर कौर रविवार को लाहौर रवाना हो गई हैं। उन्हें 15 दिन का वीजा दिया गया है। सरबजीत की बहन दलवीर कौर ने बताया कि उन्हें सरबजीत पर हुए इस कातिलाना हमले की खबर पाकिस्तान के एक रिपोर्टर ने दी। पाक सरकार ने दोपहर में हुई घटना की जानकारी परिवार को देना मुनासिब नहीं समझा। अपने भाई पर इस हमले से दुखी बहन ने कहा कि संसद हमले के दोषी अफजल गुरू को फांसी पर लटकाए जाने के बाद उनके भाई की जान को खतरा था। अफजल की फांसी से नाराज पाकिस्तानी कैदियों ने कई बार सरबजीत को जान से मारने की धमकी दी थी। मैंने संप्रग अध्यक्ष सोनिया गांधी और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से अपील की थी कि वे भारतीय उच्चायोग के अधिकारियों को सरबजीत की कड़ी सुरक्षा करने के लिए कहें। 49 वर्षीय सरबजीत को 1990 में पाक के पंजाब में हुए धमाके में शामिल होने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। धमाके में 14 लोगों की मौत हुई थी। सरबजीत को फांसी की सजा सुनाई गई थी। राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी के हस्तक्षेप के चलते फांसी की सजा लटकी हुई है। पाकिस्तान के मानवाधिकार कार्यकर्ता अंसार बर्नी ने कहा कि यह सरबजीत को जेल में मरवाने की साजिश है ताकि उसका कत्ल हो जाए और रिहा न करना पड़े। उसकी उम्र कैद की अवधि निकल चुकी है इसके बाद उसे फांसी नहीं दी जा सकती। कोट लखपत जेल में 4000 कैदियों को रखने की क्षमता है। लेकिन फिलहाल वहां 17000 से अधिक कैदी बन्द हैं। इसी जेल में 15 जनवरी को भारतीय कैदी चमेल सिंह पर भी हमला हुआ था जिससे उनकी मौत हो गई थी। चमेल को जेल सुरक्षाकर्मियों ने पीट-पीट कर मारा डाला था। दुःख से कहना पड़ता है कि भारत सरकार ने सरबजीत को बचाने के लिए कोई भी प्रयास नहीं किए। खासतौर पर जब 15 जनवरी को चमेल सिंह की इसी जेल में हत्या कर दी गई थी तो भारत सरकार को इस मामले को प्रभावी ढंग से उठाना चाहिए था। भारतीय सैनिकों के सिर काट दिए जाएं, पाक जेलों के अन्दर मार दिया जाए। भारत सरकार की मजाल है कि वह एक शब्द भी अपने नागरिकों के लिए मुंह से निकालें। अगर सरबजीत की मौत होती है तो इसमें भारत सरकार कम दोषी नहीं होगी।

Sunday, 28 April 2013

आखिर चीन चाहता क्या है? इन हरकतों के मायने क्या हैं




 Published on 28 April, 2013 
 अनिल नरेन्द्र 

कश्मीर के लद्दाख में चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) की एक प्लाटून 15 अप्रैल की रात को डीबीओ के बर्थ में भारतीय सीमा के 10 किलोमीटर अन्दर आने और वहां तम्बू तानने से लगभग कारगिल जैसे हालात पैदा हो गए हैं। जैसे कारगिल में सीमा चौकियों को खाली छोड़ना महंगा पड़ा था, लद्दाख फ्रंटियर में चीन से सटी सीमा चौकियों पर सैनिक कभी भी स्थायी तौर पर तैनात नहीं किए गए और अब सेना लेह स्थित अपनी कोर के पूरे जवानों को इसमें झोंकने पर मजबूर हो रही है। खबर यह भी है कि भारतीय सीमा में घुसपैठ करने वाले चीनी सैनिकों द्वारा लद्दाख के दौलत बीग ओल्डी (डीबीओ) सेक्टर में अपनी कब्जाई जगह से हिलने के इंकार के बीच दो चीनी सैन्य हेलीकाप्टरों ने लेह से कई सौ किलोमीटर दक्षिण पूर्व में स्थित चुमर के भारतीय हवाई क्षेत्र का उल्लंघन किया जिसके बाद तनाव बढ़ गया। हालांकि केंद्र सरकार तथा भारतीय सेना इससे इंकार करती आई है कि चीन द्वारा कोई घुसपैठ की जा रही है पर मिलने वाले समाचार कहते हैं कि लद्दाख सेक्टर में चीन सीमा पर दोनों सेनाओं के बीच तनातनी का माहौल जारी है, जिसके परिणामस्वरूप सीमा से सटे कई गांव पहले ही खाली हो चुके हैं। लद्दाख के पूर्वी क्षेत्र चुशूल में भारत-चीन के सैन्य अधिकारियों की दो फ्लैग मीटिंग हो चुकी हैं और दोनों बेनतीजा रहीं। यह जानना महत्वपूर्ण है कि चीन की ओर से यह कदम ऐसे समय में उठाया गया है जब नवनिर्वाचित चीनी प्रधानमंत्री ली केकियांग अगले महीने भारत दौरे पर वाले हैं। यह भी गौरतलब है कि भारतीय वायुसेना ने हाल ही में अपना अभ्यास `आपरेशन लाइव वायर' सम्पन्न किया है, जिस दौरान सीमा के नजदीक सभी संवेदनशील वायु ठिकानों को सक्रिय कर दिया गया था। शायद इससे भी चीनी भड़के हों। इधर भारत को आशंका है कि चीन द्वारा कहीं 1987 का वाकया न दोहराया जाए, जब मीनतवांग के उत्तर में समूदोरांग इलाके में घुस आया था और फिर वापस नहीं गया। वह इलाका आज भी चीन के कब्जे में है। चीन की विदेश नीति, एग्रेसिग यानी आक्रामक शैली में पिछले कुछ महीनों से बदलाव आया है। भारत ही नहीं, पूर्वी चीन सागर में चीन जापान से टकरा रहा है। चीन सागर में स्थित सेनकाकू द्वीप के स्वामित्व को लेकर चल रहा विवाद अब खतरे के जोन में प्रवेश कर गया है। सेनकाकू द्वीप को लेकर चीन और जापान के बीच लम्बे समय से विवाद रहा है। पिछले साल इस द्वीप को निजी मालिक से जापान द्वारा खरीदे जाने के बाद तनाव बढ़ गया है। तब से लेकर अब तक चीन अक्सर इस क्षेत्र में अपनी नौकाओं के जरिए निगरानी कर रहा है। जिस पर जापान ने कई बार आपत्ति जताई है। किसी भी समय यह विवाद एक भयंकर रूप ले सकता है। चीन अपनी घोषणा के मुताबिक सचमुच अगर भारत से मजबूत, स्थिर और दीर्घकालिक संबंध चाहता है तो उसे भारत की मांग के मुताबिक तुरन्त लद्दाख के डीबीओ सेक्टर से अपनी सेनाओं को उसी जगह वापस बुला लेना चाहिए, जहां से वह भारत में घुसकर अपने तम्बू गाड़ रही हैं। चूंकि भारत और चीन की सीमा सही तरीके से रेखांकित नहीं है, इसलिए विवादित इलाके में किसी स्थल को अपना हिस्सा बता देना आसान है। मगर मुद्दा यह है कि अगर चीन की मंशा ठीक है तो उसकी सेना ऐसे भड़काऊ कदम क्यों उठा रही है? चीन ने अगर जल्द सुधारात्मक कदम नहीं उठाए तो दोनों देशों के बीच रिश्तों में सुधार की उम्मीदों पर पलीता लग सकता है। पिछले महीने चीन में नए नेतृत्व ने सत्ता सम्भाली है। नए राष्ट्रपति शी जिनपिंग और प्रधानमंत्री ली केकियांग के बयानों से संकेत मिलते हैं कि वह भारत के साथ संबंध प्रगाढ़ बनाने की उनकी प्राथमिकता है। चीन के नए प्रधानमंत्री ली केकियांग ने प्रोटोकॉल का ख्याल न करते हुए बतौर प्रधानमंत्री अपनी पहली विदेश यात्रा के रूप में भारत में आने की इच्छा जताई है। चीन को अब स्थिति सुधारनी होगी और यह साबित करना होगा कि उसकी कथनी और करनी में कोई फर्प नहीं है।

लूट-खसोट की योजना बनती मनरेगा, किसान वहीं का वहीं रह गया




 Published on 28 April, 2013 
 अनिल नरेन्द्र 

 अपने देश में बहुत कुछ बदल गया, लेकिन एक चीज नहीं बदली वह है सरकारी योजनाओं और संसाधनों के लूट के तरीके। ताजा उदाहरण है महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी (मनरेगा) का। नियंत्रण एवं महालेखा परीक्षक (कैग) की एक और रिपोर्ट सामने आई है जो बताती है कि कैसे महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी कानून के तहत गरीबी दूर करने के लिए शुरू की गई योजना को भ्रष्टाचार के खुले खेल का मैदान बना दिया गया। तरीका वही। फर्जी जॉब कार्ड बनवाए गए, कागजों पर काम दिखाया गया। नतीजा भी वही। जो पैसा गरीबों में बंटना चाहिए था, गरीबों के पेट भरने के लिए आवंटित किया गया, वह भ्रष्टाचारियों की तिजोरी में पहुंच गया। गौरतलब है कि मनरेगा स्कीम में एक वित्तीय वर्ष में एक परिवार को सौ दिन का रोजगार पाने की पात्रता है। यानी किसी परिवार में 10 वयस्क सदस्य हैं और उनमें से जो रोजगार की मांग करते हैं, उनमें प्रत्येक व्यक्ति को नहीं बल्कि सबको जोड़कर सौ दिन का रोजगार देने का प्रावधान है। केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय ने 30 नए काम जोड़कर मनरेगा-2 का नाम दिया। यहां मनरेगा के बेरोजगारी भत्ते ने गांव वालों की नीयत खराब कर दी। स्कीम आते ही यह बात जोरों से प्रचारित हो गई कि मनरेगा में जिन्हें रोजगार नहीं मिल पाएगा उन्हें बेरोजगारी भत्ता मिलेगा। इस तरह अधिक रोजगार और अधिक बेरोजगारी भत्ता पाने के लिए 10 वयस्क व्यक्तियों के संयुक्त परिवार ने अलग-अलग पांच परिवार दर्शाते हुए पांच जॉब कार्ड बनवा लिए जबकि वे एक ही घर में रह रहे हैं और एक ही चूल्हे पर उनका संयुक्त भोजन बनता है। उधर अधिकांश सरपंचों और पंचायत सचिवों ने यह चालाकी की कि फर्जी जॉब कार्ड बनवाकर अपने कब्जे में कर लिए ताकि उनके नाम की रकम हड़पी जा सके। उपरोक्त के अलावा भ्रष्टाचार के तरीके पर गौर कीजिए। उत्तर प्रदेश की रायबरेली के महाराजगंज ब्लॉक की ग्राम पंचायत घुरैना में 80 फुट लम्बा और 70 फुट चौड़ा पकरिया का तालाब है। वर्ष 2009-10 में इसे आदर्श तालाब बनाने की योजना बनी और 9.10 लाख रुपए स्वीकृत हुए। इसमें से 5.28 लाख रुपए आदर्श तालाब बनाने में खर्च भी हो गए। असलियत यह है कि तालाब के नाम पर महज एक गड्ढा खुदा है। ऐसी दर्जनों कहानियां हैं। श्रीमती सोनिया गांधी ने यह अच्छी योजना सुझाई थी और इसकी आडवाणी जी ने संयुक्त राष्ट्र सभा में भी तारीफ की थी पर दुर्भाग्य है कि सभी स्तर पर हुई धांधली और भ्रष्टाचार के कारण जो उम्मीदें इससे थीं चौपट हो गईं। उम्मीद तो यह थी कि प्रत्येक परिवार को हर साल न्यूनतम 100 दिन का रोजगार मिलेगा। मनरेगा की धारा 16(3) के अनुसार ग्राम पंचायतों को वार्षिक योजना बनानी थी। एक लाख 26 हजार 961 करोड़ की कार्य योजना मंजूर की गई। राज्यों को इस योजना के क्रियान्वयन संबंधी नियम बनाने थे। भ्रष्टाचार रोकने के लिए जॉब कार्ड पर लाभार्थी का फोटो लगाना अनिवार्य था। कोई जॉब कार्ड बनने का मतलब रोजगार की गारंटी। इस रोजगार योजना के क्रियान्वयन पर निगरानी रखने के लिए ग्रामीण विकास मंत्रालय कानूनन  बाध्य है। इसके लिए मनरेगा में केंद्रीय रोजगार गारंटी परिषद की स्थापना का प्रावधान  किया गया था। कैग की रिपोर्ट के अनुसार यह परिषद निगरानी के काम में असफल रही है। इसके गठन को छह साल हो चुके हैं लेकिन इसके सदस्य अब तक महज 13 फील्ड दौरे ही कर पाए हैं। इस योजना के तहत करवाए जा रहे काम की निगरानी के लिए नेशनल क्वालिटी मॉनिटर की प्रणाली विकसित की जानी थी लेकिन केंद्र अभी तक इसे अमली जामा नहीं पहना सका। फंडों की मंजूरी और उन्हें जारी करने के मामले में खुद मंत्रालय ने मनमानी की। कैग ने इस मामले में 1960.45 करोड़ रुपए की गड़बड़ी पकड़ी है। सोनिया गांधी की इस प्रिय योजना की तुलना इन्दिरा गांधी के गरीबी हटाओ योजना के साथ की गई और इसे गेमचेंजर करार तक दिया गया। इस महत्वाकांक्षी योजना में चरम पर भ्रष्टाचार को देख यह प्रतीत होता है कि यह सब कुछ सियासी साजिश के तहत हो रहा है। प्रतीत तो यह होता है कि न केंद्र सरकार और न राज्य सरकार इसको सही मायने में सफल होता देखना चाहती है। अन्य सरकारी योजनाओं की तरह मनरेगा भी भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ती दिख रही है। लूट-खसोट की अब यह योजना बनकर रह गई है और गरीब किसान जिसके लाभ के लिए इसे बनाया गया, वह वहीं का वहीं रह गया।


Parvez Musharraf’s home coming move falls flat



अनिल नरेन्द्र 
It is not known, what made former Pakistan dictator General Parvez Musharraf return home? Immediately after his return, he has been facing one or the other problem. And with passing of each day, his problems are getting graver. On his return from his self-exile to Pakistan, a shoe war hurled at him in a court, which was packed to the capacity. Within a week of this incident, the Supreme Court initiated proceedings against him on treason charges. Then, the Election Tribunal of Pakistan put a break on his race to reach Parliament. The Tribunal categorically banned him to contest elections. The din over his inability to contest elections had not even subsided, when an Islamabad Court rejected his bail application, clearing way for his arrest. The things reached to such a pass that surrounded by his Pakistan Rangers guards, he had to flee from the court before the arrest. Today he is under house arrest and is confined to just two rooms of his palatial farm house. His family members, personal staff and his counsels are not allowed to meet him. This 5-acre form house has already been converted into a sub-jail. The anti-terrorism court has sent the 69-year old former Army Chief to 15 days’ judicial custody. He is the first Army Chief of the country who has been facing such proceedings. His farm house is surrounded by 15 feet high four walls. Two of the rooms of this farm house are bomb-proof. Its estimated cost is around two million dollars. In fact, none other than he himself is responsible for the situation in which Musharraf is finding himself these days. He is reaping what he had sown. In a coup in 1999, Musharraf became dictator by overthrowing the elected government and later, under the pretext of referendum, he legitimized his rule. He became President in 2001 and remained on the post till 2008. During this period, he took a number of steps, which are now weighing heavily against him. During his tenure as the Army Chief, General overthrew the elected government of Nawaz Sharief. That is why, the former Prime Minister, Nawaz Sharief is demanding initiation of legal proceedings against Musharraf on the charges of treason and violation of the Constitution. It was during the emergency that the Army entered the Supreme Court complex and took almost 60 judges in its custody, which included Justice Iftikhar Muhammad Chowdhary, the Chief Justice of the Supreme Court of Pakistan. These judges were dismissed. The order of Musharraf’s arrest has been passed in the matter relating to keeping the judges under custody. In 2009, an advocate had called for legal action against Mushsarraf on the charges of imposing emergency in the country and keeping judges in custody. After the imposition of emergency in the country in 2007, the Army had also taken control of official television and radio stations. Telecasting of independent channels was also stopped. All these actions were considered as the murder of the democracy. He has also been facing murder charges. At the time of the assassination of the former Prime Minister Benazir Bhutto in 2007, the Pakistan Army was under his command. Earlier, in 2006, the Baloch leader Nawab Akbar Bugti was killed in mysterious circumstances and at that time, too, finger was pointed to Musharraf. In Bhutto’s case, Musharraf was accused of not providing adequate security arrangements for Benazir, even though he was aware of death threats to her. During 2007, military action was taken in Lal Masjid of Islamabad and in that matter also, Musharraf was considered to be the man behind the orders for military action. Musharraf will have to appear before the court in this matter also. The coalition government had expressed its intention to initiate impeachment process against Musharraf in August, 2008. But under great pressure, Musharraf resigned from the post of the President in August, 2008 and left the country on his own. After living in self-exile in London for about four and a half years, he arrived at Karachi on 24th March to participate in the forthcoming general elections in Pakistan. This is the throne to dust story of Musharraf.

Saturday, 27 April 2013

चिट फंड कम्पनियों का गोरख धंधा



 Published on 27 April, 2013 
 अनिल नरेन्द्र 

 फर्जी ढंग से लोगों से पैसा उगाने के आरोपों में घिरे शारदा समूह के चिट फंड विवाद पर पश्चिम बंगाल में राजनीतिक बवाल शुरू हो गया है। कम्पनी के चेयरमैन सुदीप्तो सेन द्वारा कथित रूप से सीबीआई को लिखे पत्र में तो तृणमूल कांग्रेस विधायकों कृणाल घोष और सृंजय बोस का नाम भी लिया गया है। इन पर उन्होंने ब्लैकमेलिंग का आरोप लगाया है। वहीं विवाद से निपटने के लिए मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने तत्काल 500 करोड़ रुपए का राहत कोष बनाने की घोषणा कर दी है। जो समूह द्वारा ठगे गए लोगों को रकम लौटाने के काम आएगी। साथ ही ममता को कहना पड़ा है कि यदि उनके नेताओं ने अपराध किया है तो कानून के तहत कदम उठाए जाएंगे। उधर शारदा समूह की मुश्किलें और बढ़ गई हैं। आयकर विभाग उसके द्वारा किए गए निवेश और वित्तीय जांच की तैयारी कर रहा है। सुदीप्तो सेन द्वारा सीबीआई को लिखे पत्र में कई नेताओं, अधिकारियों और वकीलों के नाम भी हैं जो उसे ब्लैकमेल करते थे। कृणाल घोष ने हाल ही में शारदा समूह के सीईओ के पद से इस्तीफा दिया था, जबकि सृंजय एक बांग्ला दैनिक के सम्पादक हैं। सृंजय ने अपने बचाव में कहा है कि उनके अखबार का चैनल-10 टीवी से व्यावसायिक टाई-अप है। उसका शारदा चिट फंड कम्पनी से कोई संबंध नहीं है। चैनल-10 शारदा समूह का है। शारदा कम्पनी के प्रमुख से संबंधों पर पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि हमें नहीं पता था कि वह व्यक्ति फ्रॉड है। पश्चिम बंगाल में शारदा समूह का घोटाला वित्तीय अनियमितताओं पर नजर रखने में सरकार की अक्षमता को ही दर्शाता है। बेशक इस कम्पनी के मुखिया को गिरफ्तार कर लिया गया है और सेबी ने समूह की गतिविधियों की जांच शुरू कर दी है मगर हकीकत यह है कि इस तरह धोखे से पैसे जुटाने वालों के खिलाफ कड़े और स्पष्ट कानून न होने के कारण न्याय की आस धुंधली रहती है। करीब 10 साल पहले जब देश में गैर-बैंकिंग वित्तीय कम्पनी के नाम पर चिट फंड चलाने वाले समूहों का जाल-सा फैल चुका था और इनके झांसे में आकर लाखों लोगों के अपनी जीवनभर की  जमापूंजी गंवा देने के मामले उजागर हुए थे तब सरकार ने इनके खिलाफ कड़ा रुख अख्तियार किया था पर दुखद पहलू तो यह है कि निवेशकों के पूरे पैसे नहीं मिल पाए। उसके बाद भी अनेक कम्पनियां सबके जानते-समझते चिट फंड का कारोबार करती आ रही हैं और हैरानी की बात है कि उन पर नकेल कसने का कोई व्यावहारिक उपाय नहीं निकाला जा सका। इन चिट फंड कम्पनियों की गतिविधियां किसी से छिपी नहीं पर सेबी की आंखें तब खुलती हैं जब लाखों लोग तबाह हो जाते हैं? शारदा समूह की कमाई का अन्दाजा इससे लगाया जा सकता है कि प. बंगाल के 19 जिलों में उसके एक लाख एजेंट काम कर रहे हैं और कम्पनी की 360 शाखाएं थीं। दरअसल एक मुश्किल यह भी है कि यह चिट फंड कम्पनियां पंजीकृत नहीं होतीं। वे रिक्शा चलाने, दिहाड़ी मजदूरी करने से लेकर भीख मांगने वाले तमाम लोगों को सब्ज-बाग दिखाकर रोजाना या मामूली रकम जमा करने के लिए राजी कर लेती हैं। चूंकि ऐसे निवेश को कोई कानूनी संरक्षण नहीं होता, ये कम्पनियां अपनी वसूली आदि से जुड़ी जानकारियां दुरुस्त रखने के लिए बाध्य नहीं होतीं। फर्जी कागजात के जरिए सारा कारोबार चलता है। इस तरह से धन उगाने का जाल सिर्प चिट फंड कम्पनियों तक ही सीमित नहीं रहा। अब तो इंटरनेट, अखबारों, टीवी पर विज्ञापनों के जरिए छोटे निवेश पर बड़ी कमाई का झांसा देने वाले अनेक गिरोह सक्रिय हैं। ऐसे मामलों में स्पष्ट कानून और नियामक एजेंसियों का अधिकार क्षेत्र निर्धारित न होने के कारण ऐसी कम्पनियां बच जाती हैं। एक समस्या यह भी है कि अलग-अलग मामलों में वित्तीय अनियमितताओं के खिलाफ कार्रवाई की जिम्मेदारी भी अलग-अलग सरकारी एजेंसियों को सौंपी जाती है। इसमें कार्रवाई तभी हो सकती है जब संबंधित कम्पनी पंजीकृत हो। समय आ गया है कि जब सरकार को चिट फंड के गोरख धंधे पर नकेल कसने के लिए एक स्वतंत्र एजेंसी गठित करने के बारे में गम्भीरता से सोचना चाहिए। ममता द्वारा 500 करोड़ का फंड इकट्ठा करना कोई समाधान नहीं। पूरे देश में तो पता नहीं कितने हजारों करोड़ रुपए का यह गोरख धंधा इस समय चल रहा है।


क्रिस गेल ने टी-20 के स्वरूप को नए दौर में पहुंचाया



 Published on 27 April, 2013 
 अनिल नरेन्द्र 
पुणे वारियर्स के खिलाड़ी टी-20 आईपीएल-6 में खेलते हुए रायल चैलेंजर्स के क्रिस गेल ने टी-20  का इतिहास ही बदल डाला। एक ऐसा पन्ना जोड़ दिया जो शायद ही कभी दूर हो सके। जैसे सचिन तेंदुलकर के शतकों का रिकार्ड क्रिकेट टेस्ट से जुड़ गया है उसी तरह क्रिस गेल की यह तूफानी पारी टी-20 रिकार्ड बुक में दर्ज हो गई है। गेल के रनों की आंधी इतनी जोरदार रही जिसे क्रिकेट की सुनामी कहा जा सकता है। गेल का बल्ला एक रन मशीन की तरह रनों की बौछार करता रहा। उनके तरकश में हर तीर है और उनका वार खाली नहीं जाता। चिन्ना स्वामी स्टेडियम एक बार फिर गेल के पराक्रम का साक्षी बना। उन्होंने क्रिकेट के इस सबसे छोटे फार्मेट पर इतनी लम्बी लकीर खींच दी है कि उसे पार करना दूसरे क्रिकेटरों के लिए जितनी चुनौती है, उतना ही स्वप्न। पहले 30 गेंदों पर क्रिकेट इतिहास की सबसे तेज सेंचुरी अपने नाम की फिर 66 गेंदों में नाटआउट 175 रनों का पहाड़ अपने नाम कर लिया। गेल की आतिशी पारी की बदौलत रायल चैलेंजर्स बेंगलुरु ने पुणे वारियर्स को 130 रनों से हराकर आईपीएल-6 के 8 मैचों में 12 अंक जुड़वाकर टेबल में टॉप पर पहुंच गई। गेल का यह शतक किसी भी क्रिकेट फार्मेट में किसी भी स्तर पर सबसे तेज शतक है। इससे पहले यह रिकार्ड यूसुफ पठान के नाम था जिन्होंने राजस्थान रायल्स की तरफ से मुंबई इंडियंस के खिलाफ खेलते हुए 37 गेंदों में शतक लगाया था। गेल ने अपनी पारी में सबसे ज्यादा छक्के लगाने का रिकार्ड बनाया। टी-20 क्रिकेट में एक ही पारी में सबसे ज्यादा छक्के लगाने का रिकार्ड ग्राहम नेपियर के नाम था जिन्होंने 2008 में एसेक्स की तरफ से ससेक्स के खिलाफ खेलते हुए इंग्लिश काउंटी क्रिकेट में अपनी पारी में 16 छक्के लगाए थे। क्रिस गेल ने इस मैच में 17 छक्के लगाए। गेल की पारी की बदौलत रायल चैलेंजर्स ने आईपीएल इतिहास का सबसे बड़ा टोटल 263 बनाया। इससे पहले आईपीएल का सबसे बड़ा टोटल बनाने का रिकार्ड चेन्नई सुपर किंग्स के नाम था, जिसने चेन्नई के चेपक मैदान पर 3 अप्रैल 2010 को इसी रायल चैलेंजर्स के खिलाफ 246 रन बनाए थे। गेल की यह पारी स्ट्राइक रेट के हिसाब से भी तेज रही। गेल ने 66 गेंदों में 17 छक्के और 13 चौकों की सहायता से नाबाद 175 रन बनाए। इससे पहले ब्रेडम मेक्कुलम ने कोलकाता नाइट राइडर्स की तरफ से खेलते हुए नाबाद 158 रन बनाए थे। क्रिस गेल ने इस दौरान आईपीएल का सबसे लम्बा छक्का (119 मीटर) लगाया। गेल की दिलशान के साथ पहले विकेट के लिए 167 रनों की साझेदारी भी एक रिकार्ड थी। टी-20 में उनके नाम 11 सेंचुरी का भी रिकार्ड है। कोई भी दूसरा बैट्समैन-6 से ज्यादा सेंचुरी नहीं बना पाया। वैसे आईपीएल-6 में तेज रनों का श्रेय दिल्ली डेयर डेविल्स के वीरेन्द्र सहवाग को भी एक तरह से जाता है। उनकी दिल्ली में धुआंधार पारी से ही दूसरे खिलाड़ियों का हौसला बढ़ा। अगले ही दिन राजस्थान रायल के शेन वाटसन ने सेंचुरी जड़कर आईपीएल-6 में  पहली सेंचुरी बनाई पर इसका नशा ज्यादा दिन नहीं चल सका। क्रिस गेल की तूफानी पारी सब पर भारी पड़ गई। पता नहीं ऐसी तूफानी बल्लेबाजी टी-20 में फिर देखने को मिलेगी या नहीं?

Friday, 26 April 2013

चौतरफा घिरते सहारा समूह प्रमुख सुब्रत रॉय सहारा




 Published on 26 April, 2013 
 अनिल नरेन्द्र 
सहारा समूह प्रमुख सुब्रत रॉय के सितारे आज-कल गर्दिश में चल रहे हैं। एक के बाद एक विवाद में वह फंसते जा रहे हैं। सोमवार को तो सुप्रीम कोर्ट ने सुब्रत रॉय को ऐसी फटकार लगाई जिसकी शायद उन्होंने कभी उम्मीद ही न की हो। न्यायमूर्ति केएस राधाकृष्णन की अध्यक्षता वाली पीठ ने सेबी की अवमानना याचिका पर जवाब दाखिल नहीं करने पर सहारा समूह और इसके मुखिया सुब्रत रॉय की जमकर न केवल खिंचाई ही की बल्कि यहां तक कह दिया कि वे अदालत से चालबाजियां न करें। निवेशकों को 24 हजार करोड़ रुपए नहीं लौटाने के मामले में पीठ ने यह टिप्पणी की। पीठ ने सुब्रत रॉय और दो निदेशकों अशोक रॉय चौधरी तथा रविशंकर दूबे को हिरासत में लेने संबंधी सेबी की याचिका पर तीनों को नोटिस भी जारी किया। सेबी ने निवेशकों का पैसा वसूलने के लिए इनको हिरासत में लेने के आदेश को जारी करने की गुहार की है। सोमवार को सुनवाई के दौरान अदालत ने सुब्रत रॉय के वकील से कहा कि वह देश न छोड़ने का आश्वासन दें नहीं तो अदालत इस संबंध में भी आदेश जारी करेगी। इसके अलावा सेबी के पास 24 हजार करोड़ रुपए जमा कराने में विफल रहने की स्थिति में सहारा समूह की दो कम्पनियों की सम्पत्ति कुर्प करने संबंधी शीर्ष अदालत के आदेश के बाद सहारा इंडिया द्वारा इलाहाबाद हाई कोर्ट में याचिका दायर किए जाने पर भी पीठ ने नाराजगी व्यक्त की। सहारा के वकील ने अदालत को सूचित किया कि सेबी सुब्रत रॉय की निजी सम्पत्ति कुर्प कर रही है जबकि इस पर वह उस मामले में पक्षकार तक नहीं है जिसमें शीर्ष अदालत ने 24 हजार करोड़ रुपए लौटाने का फैसला दिया है। इस पर जजों ने कहा कि आप अदालतों के साथ चालबाजी कर रहे हैं। हमारी पक्षकारों में दिलचस्पी नहीं है। हाई कोर्ट में याचिका दायर करना व सेबी के पास जाना भी अवमानना है। सेबी की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अरविन्द दत्तार ने कहा कि सहारा समूह और उसकी दो कम्पनियोंöसहारा इंडिया रीयल इस्टेट कारपोरेशन और सहारा हाउसिंग ने कम्पनी कानून के प्रावधानों का पालन ही किया है। उधर एक और झटके में सहारा रीयल इस्टेट कम्पनी सहारा प्राइम टाइम का 3450 करोड़ रुपए का आरम्भिक सार्वजनिक निर्गम (आईपीओ) अब नहीं आ पाएगा। सेबी ने सहारा प्राइम सिटी लि. के आईपीओ प्रस्ताव से जुड़ी फाइल ही बन्द कर दी है। सेबी द्वारा मांगे गए स्पष्टीकरण को जमा कराने में कम्पनी के विफल रहने पर सेबी ने यह कदम उठाया है। एक और अन्य घटनाक्रम में सहारा ग्रुप अब कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (ईपीएफओ) की जांच के घेरे में आ गया है। वह ईपीएफओ के देश में टॉप डिफाल्टरों में से एक है। सहारा इंडिया फाइनेंशल कारपोरेशन और पूर्व सहारा एयर लाइंस समेत सहारा ग्रुप की पांच कम्पनियों के नाम 50 कम्पनियों में शामिल हैं जो देश की टॉप डिफाल्टर हैं। खबर तो यह भी है कि उत्तराखंड में सहारा समूह की नई स्कीम क्यू शॉप भी विवादों में आ गई है। उत्तराखंड खाद्य सुरक्षा विभाग के अनुसार बहादराबाद स्थित सहारा क्यू शॉप के गोदाम से 26 दिसम्बर 2012 को बेसन, मिक्स फ्रूट और सरसों तेल के सैम्पल लिए गए थे। लेकिन यह मानक पर सही नहीं उतरे। सैम्पल जांच में फेल पाए गए हैं। इस बाबत सहारा से जवाब मांगा गया था। कम्पनी ने जवाब देने के लिए 30 दिन की मोहलत मांगी थी लेकिन वह संतोषजनक जवाब नहीं दे पाई। अब इस मामले में खाद्य सुरक्षा एवं मानक अधिनियम के तहत कार्रवाई की जाएगी। कुल मिलाकर श्री सुब्रत रॉय सहारा के सितारे गर्दिश में चल रहे हैं। यह भी लगता है कि उन्हें घेरने के लिए सरकारी एजेंसियां अत्याधिक सक्रिय हैं और उन्हें अपमानित व दंडित करने पर तुल गई हैं।


सोनिया गांधी की आक्रामक शैली : न इस्तीफा देंगे और न ही जवाब देंगे




 Published on 26 April, 2013 
 अनिल नरेन्द्र 

कोयला आवंटन घोटाले और सीबीआई जांच में सरकारी हस्तक्षेप को लेकर एक बार फिर संसद में कोहराम मचा है। इस मुद्दे पर सत्ता पक्ष और विपक्ष पूरी तरह आमने-सामने खड़े हो गए हैं। आक्रामक तेवर अपनाते हुए मुख्य विपक्षी दल भाजपा ने प्रधानमंत्री और कानून मंत्री का इस्तीफा मांगा तो संप्रग अध्यक्ष सोनिया गांधी ने भी उसी आक्रामकता के साथ खुद सामने आकर मांग खारिज कर दी। संसद में उठी पीएम और कानून मंत्री के इस्तीफे की मांग को सोनिया गांधी ने सिरे से खारिज करते हुए कहा कि उन्हें इस्तीफा मांगने दो, आप इनको जवाब दें। संकेत मिलते ही संसदीय कार्य मंत्री कमलनाथ ने भी कहा कि भाजपा तो हर वक्त किसी न किसी का इस्तीफा मांगती रहती है। हमें सोनिया गांधी के हिटलरी फरमान पर आश्चर्य नहीं हुआ। जब तक श्री प्रणब मुखर्जी कांग्रेस में थे संकटमोचक बनकर वह विपक्ष के टकराव से बचा लेते थे। कुछ विपक्ष की बात मानकर, कुछ उसे  समझाकर पर जब से वह राष्ट्रपति बने हैं और सोनिया गांधी ने संसद में पार्टी और सरकार की कमान सम्भाली है वह इसी तरह के हिटलरी अन्दाज में बोलती हैं। हमने देखा कि किसी तरह 2जी घोटाले में भी उन्होंने ऐसा ही रुख अख्तियार किया, जब कोयला आवंटन घोटाला सामने आया तब भी यही किया। आखिर ताजा टकराव इस स्थिति तक पहुंचा क्यों? सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में सीबीआई ने जो जवाबी रिपोर्ट तैयार की थी उसे सुप्रीम कोर्ट में दाखिल होने से पहले कानून मंत्री अश्वनी कुमार ने मंगवा लिया और उसमें कुछ परिवर्तन किया, ऐसा आरोप भाजपा ने लगाया है। पहले तो सरकार इसे मानने को ही तैयार नहीं थी पर बाद में यह माना कि मंत्री ने रिपोर्ट को देखा। संसदीय कार्य मंत्री कमलनाथ ने फिर कहा कि अश्वनी कुमार ने तो रिपोर्ट इसलिए मंगाई थी ताकि उसमें कोई ग्रामेटिकल (व्याकरण) की कोई गलती न हो। हमें नहीं पता था कि सीबीआई में ऐसे अफसर बैठे हैं जो अनपढ़ हैं जिन्हें व्याकरण भी नहीं आता? खैर! जब विपक्ष ने बहुत दवाब डाला तो सरकार सदन में इस पर चर्चा करने को तैयार हो गई। राज्यसभा में जब यह विषय आया तो कानून मंत्री अश्वनी कुमार जो उस समय तक सदन में बैठे थे, ऐन मौके पर खिसक गए और इस पर चर्चा न हो सकी। अब विपक्ष अगर प्रधानमंत्री से यह कह रहा है कि अश्वनी कुमार को बर्खास्त करो तो इसमें गलत क्या है? अगर संसद की कार्यवाही बाधित होती है तो इसकी सीधी जिम्मेदारी सत्ता पक्ष पर आती है। कोयला आवंटन में संसद में तो घिरी सरकार को सुप्रीम कोर्ट में भी जवाब देना पड़ेगा। सरकार की मुसीबतें सुप्रीम कोर्ट में भी बढ़ सकती हैं। ताजा घटनाक्रम को देखते हुए सीबीआई भी कठघरे में खड़ी है। जाहिर है कि वह सुप्रीम कोर्ट को संतुष्ट करना चाहेगी कि मामले की शुरुआती जांच में मिले तथ्यों के साथ कोई छेड़छाड़ नहीं की गई, किसी को बचाने का प्रयास नहीं कर रही, इसलिए वह बचाव  का रुख अख्तियार करेगी। सम्भव है कि सुप्रीम कोर्ट कहे कि आप दोनों रिपोर्टें पेश करें अगर कोई संशोधन किया गया है? सुप्रीम कोर्ट दोनों रिपोर्टों की जांच कर तय कर सकेगा कि रिपोर्टों के साथ छेड़छाड़ की गई है या नहीं? सीबीआई निदेशक रंजीत सिन्हा कोर्ट को बता चुके हैं कि कोयला आवंटन में अनियमितताओं की जांच रिपोर्ट किसी से साझा नहीं की गई है। अब अदालत में क्या स्टैंड लेते हैं। सुप्रीम कोर्ट में इसके अलावा भी सरकार की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। कोयला मंत्रालय की ओर से अदालत में दाखिल किए गए हलफनामे में आवंटन प्रक्रिया में पारदर्शिता अपनाए जाने को लेकर कोई पुख्ता दलील नहीं दी गई है। सरकार ने स्वयं माना है कि आवंटित 218 कोयला ब्लॉकों में से अभी तक महज 35 में ही कोयला उत्पादन शुरू हो सकता है। कोयला ब्लॉक आवंटन में हुईं  अनियमितताओं का मामला वैसे भी सुप्रीम कोर्ट में चल रहा है। मामले पर 30 अप्रैल को सुनवाई होनी है। मंत्रालय ने आवंटन प्रक्रिया का ब्यौरा पेश करते हुए सारी जिम्मेदारी राज्य सरकारों और क्रीनिंग कमेटी के कंधे पर डालने की कोशिश की है, जिनकी सिफारिश पर आवंटन किया गया। इस तरह सरकार ने एक साथ तीन मोर्चे खोल लिए हैं ः संसद, सुप्रीम कोर्ट और राज्य सरकारें। सोनिया गांधी कहती हैं कि न इस्तीफा देंगे, न जवाब देंगे और लड़ेंगे।


Thursday, 25 April 2013

मुकेश अम्बानी को जेड श्रेणी की सरकारी सुरक्षा?



 Published on 25 April, 2013 
 अनिल नरेन्द्र 
देश के जाने-माने उद्योगपति मुकेश अम्बानी को जेड श्रेणी की सुरक्षा देने का फैसला सरकार के लिए सिरदर्द हो रहा है। जनता को सुरक्षा प्रदान करने में बुरी तरह फेल यूपीए सरकार को आम जनता से ज्यादा चिन्ता उद्योगपतियों की है, इससे साबित होता है। ऐसे समय में जब सारा देश यह मांग कर रहा हो कि वीआईपी सुरक्षा में तैनात जवानों को वहां से हटाकर जनसेवा में लगाना चाहिए, सरकार इस तरह का फैसला कर एक निहायत गलत परम्परा की शुरुआत करने जा रही है। कई बार सरकार द्वारा गठित समितियां भी यह कह चुकी हैं कि विशेष सुरक्षा खतरे के आंकलन के मुताबिक नहीं दी जाती बल्कि वह एक स्टेटस सिम्बल या रसूख का प्रतीक बन गई है। इसका नतीजा यह हुआ कि देश दो वर्गों में बंट गया है। एक वर्ग में वह वीआईपी हैं जिन्हें विशेष सुरक्षा हासिल है और जो हर नियम और कानून से ऊपर हैं, दूसरे वर्ग में वह बहुसंख्यक लोग हैं, जिनकी सुरक्षा का कोई इंतजाम नहीं है, जो किसी खतरे या अपराध की सूचना देने थाने जाएं तो उनसे अपराधी की तरह बर्ताव होता है। आम आदमी पार्टी के अध्यक्ष अरविन्द केजरीवाल ने ट्विटर पर लिखा हैöमुकेश अम्बानी को जेड सिक्यूरिटी? इतना अमीर आदमी अपने सिक्यूरिटी गार्ड नहीं रख सकता? कोई भी राजनीतिक पार्टी इसका विरोध नहीं जता रही है। इससे लगता है कि अम्बानी सभी पार्टियों की गुड बुक में हैं। लेखक चेतन भगत का कहना है कि अरबपतियों को से जेड श्रेणी तक की सुरक्षा मिल रही है जबकि से जेड तक भी नहीं सीख पाने वाली नन्हीं बच्ची को पुलिस स्टेशन से भगा दिया जा रहा है। मौजूदा वीआईपी सुरक्षा की स्थिति चौंकाने वाली है। 253 दिल्लीवासियों की सुरक्षा पर औसतन एक पुलिसकर्मी तैनात हैं। 427 प्रभुत्वशाली लोगों की सुरक्षा में तैनात हैं 5183 पुलिसकर्मी। देशभर में 14842 लोगों को सुरक्षा मुहैया करवाई गई है और इनकी सुरक्षा में लगे हैं 47,557 पुलिसकर्मी। वीआईपी सुरक्षा पर सालाना खर्च है 341 करोड़ रुपए। चौतरफा आलोचना से घबराई सरकार ने सोमवार को इस मुद्दे पर सफाई देने का प्रयास किया। गृह मंत्रालय के मुताबिक पिछले महीने मुकेश अम्बानी को इंडियन मुजाहिद्दीन की ओर से धमकी भरी चिट्ठी मिली थी। उसमें उनकी हत्या और उनके आलीशान महलनुमा घर अंतिला पर हमले की धमकी दी गई थी। साथ ही रिलायंस की फैक्ट्रियों पर भी हमले की आशंका जताई गई। सोमवार को गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे ने साफ किया कि सुरक्षा का तमाम खर्च सरकार नहीं बल्कि मुकेश अम्बानी खुद ही उठाएंगे। उनका कहना है कि रिलायंस इंडस्ट्रीज के मालिक मुकेश अम्बानी राष्ट्रीय सम्पत्ति हैं और उन्हें मिल रही धमकियों के मद्देनजर जेड स्तर की सुरक्षा दी गई है। यह सुविधा मुफ्त नहीं दी जा रही, इसके लिए मुकेश को 15 लाख रुपए चुकाने होंगे। सीआरपीएफ सूत्रों के मुताबिक 25 से 30 कमांडो वाले इस सुरक्षा घेरे का हर महीने का खर्च करीब 14 लाख रुपए होगा, जिसमें उनका वेतन भी शामिल है। इस खर्च  के अलावा अम्बानी सुरक्षा टीम को बैरक भी मुहैया करवाएंगे। मुकेश अम्बानी तो चाहते थे कि उनकी बिल्डिंग में ही पुलिस थाना बनाया जाए। हो सकता है कि सरकार की नजरों में मुकेश अम्बानी को सुरक्षा मुहैया कराना जायज हो पर आम भारतीय. इसे अपनी सुरक्षा और सरकारी संवेदनहीनता के आइने में ही देखेगा।