Sunday, 7 April 2013

राहुल का कनफ्यूस्ड, दिशाहीन, मायूसी भरा भाषण



 Published on 7 April, 2013 
 अनिल नरेन्द्र 
 कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के औद्योगिक मंडल सीआईआई की सालाना आम सभा में भाषण का बहुत पचार किया गया था। कहा गया था कि यह राहुल गांधी का गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी को जवाब होगा पर दुख की बात यह है कि मुझे तो राहुल के भाषण से निराशा ही हुई है। सबसे पहली बात कि क्या सीसीआई का मंच ऐसे सियासी भाषण के लिए सही था? आप गरीबों की बात देश के सबसे अमीरों के मंच से कर रहे हो? फिर आप भाषण किस को दे रहे थे? अपनी सरकार को या फिर अपनी पार्टी को? अगर आज कांग्रेस फेल हो रही है तो इसका जिम्मेदार न तो विपक्ष है और न ही जनता। आजादी के 69 साल में कांग्रेस पार्टी ने 56 साल राज किया है। कुल 13 वर्ष ही गैर कांग्रेस सरकारों का शासन रहा। अगर कमियां हैं तो वह मूल्यत कांग्रेस शासन की हैं।
असल में राहुल ने जो भाषण दिया वह महज एक विजन कहा जा सकता है। विजन होना अच्छी बात है पर अकेले सपने देखने और सब्जबाग दिखाने से काम नहीं चलता। आपने जो समस्याओं को रेखांकित किया उनको सही कैसे किया जाएगा इनके बारे में तो एक शब्द नहीं कहा। आपने कोई रोड मैप नहीं दिया। हां, समझ आती कि आप अगर साथ-साथ समाधान भी सुझाते। फिर आपने जो कहा अगर उसको मैं ठीक से समझ सका हूं तो आप तो पूरे पोलिटिकल सिस्टम को ही बदलना चाहते हैं। यह व्यावहारिक सच्चाई हो सकती है कि देश की राजनीतिक व्यवस्था को पांच हजार सांसद-विधायक चला रहे हैं, लेकिन इस आधार पर संसदीय पणाली व लोकतंत्र को खारिज नहीं किया जा सकता बल्कि राहुल से पूछना चाहिए कि पिछले नौ वर्षों से सत्ता में होने के बावजूद उनकी सरकार व पार्टी को आम आदमी के हित में कदम उठाने से किसने रोका है? वह आम आदमी के हाथ में ताकत देने की बात कर रहे हैं, जबकि उनकी सरकार सहुलियतें देकर चुनावी लाभ उठाने में ही ज्यादा भरोसा करती है।
राहुल ने विकास के आड़े आ रहीं समस्याओं का जिक किया और साथ ही यह भी बताया कि इनका समाधान होना चाहिए लेकिन वह यह नहीं बता सके कि कांग्रेस के नेतृत्व वाली केन्द्राrय सत्ता पिछले नौ वर्षों के दौरान वह सब क्यों नहीं कर सकी? न ही उन्होंने यह बताया कि वह खुद भी इस स्थिति में तो थे ही कि सरकार से इनका समाधान करवा लें। राहुल की स्पीच उन्हीं लाइनों पर थी जो राजीव गांधी ने वर्षों पहले मुंबई में कहीं थीं। राजीव ने तो कांग्रेस पार्टी को सत्ता के दलालों की पार्टी तक कह दिया था। सवाल यह उठता है कि इतने वर्षों में उनकी पार्टी में क्या सुधार हुआ? क्या वह और उनकी माताश्री इस पोजीशन में नहीं थीं कि पार्टी में आई गिरावट को रोक सकें? ऐसी मोह लुभाने वाली बातों से विकास से बंचित लोगों को पभावित तो किया जा सकता है लेकिन उन्हें कोई राहत नहीं दी जा सकती।
कांग्रेस के कई दिग्गज राहुल बनाम मोदी लड़ाई बताने से चूकते नहीं पर बुनियादी फर्प को नजरअंदाज कर जाते हैं। नरेन्द्र मोदी आकामक शैली में पोजेटिव बातों की बात करते हैं, देश को आगे कैसे बढ़ाया जाए इसकी बात करते हैं। वह ऐसा कर सकते हैं क्योंकि उन्होंने करके दिखाया है। नरेन्द्र मोदी की कथनी और करनी में फर्प नहीं है। फिर वह तीन बार विधानसभा चुनाव जीत चुके हैं। राहुल तीन राज्यों के चुनाव हार चुके हैं। मोदी के निशाने पर केन्द्र सरकार और कांग्रेस पार्टी है जबकि राहुल को पूंक-पूंककर कदम बढ़ाने पड़ रहे हैं। उन्हें अपनी बात कहनी भी है पर साथ-साथ अपनी पार्टी और सरकार को बचाना भी है। राहुल सौभाग्य से आज जिस जगह पर हैं वहां से वह सत्ता की राजनीतिक बुराइयों को आसानी से खत्म कर सकते हैं। लेकिन वह तो कांग्रेस के उस चलन के खिलाफ आवाज उठाते हुए भी नहीं दिखे जिसमें विधानसभा चुनावों के बाद बाहरी आदमी को मुख्यमंत्री बना दिया जाता है। राहुल ने अपने एक घंटे के भाषण में कहीं भी महंगाई, भ्रष्टाचार, आतंकवाद यानी आम आदमी को पभावित करने वाले मुद्दों की कोई बात नहीं की। इससे पता चलता है कि उनकी सोच में और मौजूदा पधानमंत्री मनमोहन सिंह की सोच में कोई फर्प नहीं। राहुल ने कहा कि पेस वाले मुझसे पूछते हैं कि आप शादी कब कर रहे हो। कुछ लोग कहते हैं कि बॉस आप पधानमंत्री कब बन रहे हो। कई कहते हैं कि आप पीएम नहीं बन पाओगे। यह सब अपासंगिक सवाल हैं। हवाई बातें हैं। तर्पसंगत बात यही है कि एक अरब लोगों को सशक्त कैसे बनाया जाए ताकि उनकी समस्याएं दूर हों। हम शादी की बात से राहुल से सहमत हैं यह उनकी निजी जिंदगी है और इस पर कोई सवाल-जवाब नहीं हो सकता पर पधानमंत्री बनना या न बनना यह तो महत्वपूर्ण है। आप कहते हैं कि पधानमंत्री की बात न करें तो कृपया बताएं कि अगर पधानमंत्री आप बनना नहीं चाहते तो इन समस्याओं को सही कौन करेगा? जनता? अगर जनता ही सही करने में सक्षम होती तो देश में न तो संसद की जरूरत होती और न ही विधानसभाओं से लेकर ग्राम पंचायतों की।
सवाल यह भी पूछा जा सकता है कि खुद राहुल गांधी की बतौर सांसद संसद में अब तक क्या भूमिका रही है। सिवाय कलावती मामले में हमने राहुल को एक भी मुद्दे पर बहस और चर्चा में भाग लेते नहीं देखा। कांग्रेसजनों की ओर से राहुल के भाषण की चाहे जितनी तारीफ हो, सच तो यह है कि उनके संबोधन में कनफ्यूजन, देश को मौजूद चुनौतियों से निकालने और एक नए युग में ले जाने की कहीं भी कोई झलक नहीं दिखाई दी। अब उनके भाषण का पार्टी स्तर पर जैसा बचाव किया जा रहा है वह नेहरू-गांधी परिवार को रहनुमा समझने की पार्टी की मानसिकता का ही उदाहरण है। विकास और अर्थव्यवस्था के नाम पर `लाइव' भाषणों की जो राजनीतिक बाजीगरी बहस के केन्द्र में लाई जा रही है, उससे शायद ही कोई दिशा मिल सकती है। जैसा मैंने कहा कि हम राहुल को आगे बढ़ना देखना चाहते हैं और हमारी शुभकामनाएं भी उनके साथ हैं पर सीआईआई में जो भाषण दिया वह मायूस करने वाला था और उम्मीदों पर कहीं खरा नहीं बैठा।

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