Published on 6 April,
2013
अनिल नरेन्द्र
मुस्लिम समुदाय में अपनी जड़ें
जमाने की दिशा में कदम बढ़ाते हुए मनमोहन सिंह सरकार ने तय किया है कि वह आतंकी मामलों
में आरोपी (निर्दोष) युवकों के मामले की सुनवाई के लिए त्वरित अदालतों के गठन की मांग
पर विचार करेगी। आतंकवादी गतिविधियों के आरोप में जेल में बंद (निर्दोष) युवकों के
लिए न्याय की मांग कर रहे नेताओं और सांसदों के पतिनिधिमंडल से मुलाकात करने के बाद
गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे ने कहा कि हम मांगों पर विचार करेंगे। भाकपा नेता एबी
वर्धन के नेतृत्व वाले इस पतिनिधिमंडल ने 14 सूत्री मांगों वाला एक ज्ञापन भी सौंपा।
यह सही है कि निर्दोष चाहे वह किसी धर्म-जाति समूह से हो, को जबरन आतंकी आरोप में पुलिस
को गिरफ्तार नहीं करना चाहिए और ऐसे केसों में अदालती कार्रवाई जितनी जल्दी हो सके,
होनी चाहिए और निर्दोष रिहा होने चाहिए पर सवाल यहां यह भी उठता है कि आखिर यह पहल
जेलों में बंद केवल एक समुदाय के युवाओं के लिए ही क्यों की जा रही है? क्या यह राहत
देश के पत्येक नागरिक को नहीं मिलनी चाहिए? चाहे वह किसी भी जाति, मजहब, समुदाय अथवा
क्षेत्र का हो? हमने तो हमेशा कहा है कि आतंकवाद संबंधी केसों का जल्द से जल्द निपटारा
होना चाहिए। वर्षों लग जाते हैं फैसला आने पर। कई केसों में तो अंत में जब फैसला आता
है तो आरोपी बरी हो जाता है तब तक वह कई साल जेल में बिता चुका होता है। उसकी जिंदगी
तो तबाह हो चुकी होती। सरकार की टाइमिंग को देखकर हम यह कहने पर मजबूर हो रहे हैं कि
क्या यह पहल 2014 के लोकसभा चुनाव के मद्देनजर की जा रही है। इस पहल से तो यही संकेत
मिलता है कि कथित बेगुनाह मुस्लिम युवाओं को राहत देने के नाम पर चुनावी लाभ लेने की
कोशिश की जा रही है। यह संदेह और गहरा तब हो जाता है जब केन्द्र सरकार नए सिरे से पिछड़े
मुस्लिमों को साढ़े चार फीसद आरक्षण देने की पतिबद्धता भी जता रही है। जहां तक आतंकवाद
के मामलों में निर्दोष मुस्लिम युवाओं को राहत देने की बात है तो इससे इंकार नहीं किया
जा सकता कि अनेक मुस्लिम युवा आतंकी गतिविधियों के सिलसिले में जेलों में बंद हैं।
लेकिन सच्चाई यह भी है कि अन्य समुदायों के कुछ लोग भी ऐसे आरोपों में बंद हैं और उनके
मामले भी करीब-करीब वैसे ही हैं जैसे मुस्लिम युवाओं के। और फिर सिर्प मुस्लिम युवाओं
के आतंक संबंधी आरोपों की ही बात क्यों आज पूरे देश में लाखों युवक जेलों में बंद हैं
और उनके खिलाफ लगाए गए आरोप साबित नहीं हो सके। दिल्ली के तिहाड़ जेल में हजारों लोग
मौजूद हैं जिन्हें अंडर ट्रायल कहा जाता है। कुछ केसों में तो लोग दशकों से जेलों में
हैं। आखिर ऐसे लोगों की सुध क्यों नहीं ली जाती। तिहाड़ में तो कुछ कैदी ऐसे भी हैं
जिनकी कोई जमानत देने को तैयार नहीं और वह बस जमानती न होने के कारण तिहाड़ में सड़
रहे हैं। सरकार की मंशा चाहे कुछ भी हो पर जनता के बीच तो यही संदेश जाएगा कि एक बार
फिर वोट बैंक की राजनीति की जा रही है।
No comments:
Post a Comment