Friday, 12 April 2013

फर्जी मुठभेड़ के आरोप में तीन पुलिसकर्मियों को फांसी



 Published on 12 April, 2013 
 अनिल नरेन्द्र 
 लखनऊ के रौशनुद्दौला कोर्ट परिसर में शुक्रवार को दोपहर 12 बजे लोगों की चहलकदमी अचानक बढ़ गई। कथित मुठभेड़ के आरोपी आठ पुलिसकर्मियों को कड़े सुरक्षा घेरे में कोर्ट परिसर लाया गया। कभी खुद आरोपियों को पकड़कर थाने व कचहरी ले जाने वाले ये पुलिसकर्मी खुद खाकी से घिरे थे और अब उनके रंग उड़े हुए हैं। बाहर उनके परिवार जनों, पीड़ित परिवारों के साथ मीडिया कर्मियों का जमावड़ा था। मामला 31 साल पहले का है, साजिशन अपने ही सीओ को गोली मारकर हत्या करने और फिर उसे एनकाउंटर दिखाने के लिए 12 ग्रामीणों को मार डालने का है। सीबीआई की विशेष अदालत ने शुक्रवार को गोंडा जनपद के तत्कालीन कुड़िया थानाध्यक्ष आरबी सरोज, हैड कांस्टेबल राम नायक पांडे व कांस्टेबल रामकरन को फांसी की सजा सुनाई। कोर्ट ने इसी मामले में पीएसी के सूबेदार रमाकांत दीक्षित, गोंडा  के एसपी के पेरोकार रहे नसीम अहमद, कोतवाली गोंडा देहात में दारोगा रहे मंगला सिंह, परवेज हुसैन तथा थाना नवाबगंज अंतर्गत लक्कड़ मण्डी पुलिस पोस्ट में तब प्रभारी रहे राजेन्द्र प्रसाद सिंह को आजीवन कारावास की सजा सुनाई। अदालत ने सभी दोषियों पर जुर्माना भी ठोंका है। अदालत ने अपने 19 पेज के फैसले में मृत्युदंड के आरोपियों के कृत्य एवं आचरण पर गम्भीर टिप्पणी की है। अदालत ने कहा कि यद्यपि सभी आरोपी पुलिसकर्मी हैं तथा इस समय वह वृद्ध एवं बीमार अथवा चलने-फिरने में असमर्थ हैं लेकिन जिनकी हत्याएं की गई हैं उनका क्या अपराध था? अदालत यह समझती है कि समाज में यह संदेश जाना चाहिए कि यह न्याय का देश है। अदालत ने  बचाव पक्ष की सभी दलीलों को नकारते हुए कहा कि अगर अभियुक्तों को अपराध के अनुसार सजा नहीं दी जाती तो अदालत अपना कर्तव्य करने में असफल होती। अभियुक्तों का कृत्य समाज के विरुद्ध है। इस हमले में वीभत्स व अमानवीय तरीके से हत्याएं की गई हैं। योजनाबद्ध तरीके से पुलिस बल ने अपने अधिकारी की हत्या की। बाद में दिखावे के लिए 12 ग्रामीणों की हत्या कर फर्जी मुठभेड़ दिखा दी। इस घटना में गोली लगने के बाद डीसीपी केपी सिंह को समय रहते उचित चिकित्सा सुविधा भी मुहैया नहीं कराई गई। अदालत ने दोष सिद्ध पुलिसकर्मियों के आचरण पर टिप्पणी करते हुए कहा कि यदि सामान्य व्यक्ति द्वारा इस प्रकार की हत्या की जाती तब मामले की स्थिति अलग होती परन्तु इस मामले में पुलिसकर्मियों ने फर्जी मुठभेड़ में लोगों की जघन्य हत्याएं की हैं। लिहाजा अदालत की राय में वे कठोर दंड के भागी हैं। यह केस 12 मार्च 1982 का है। 12 मार्च की रात में माधवपुर गांव में डकैतों का गिरोह होने का सुराग मिलने की बात कहकर तत्कालीन थानाध्यक्ष आरबी सरोज डीएसपी केपी सिंह को पुलिस के पीएसी के जवानों के साथ लेकर गए। गांव में किसी डकैत के न मिलने पर डीएसपी और थानाध्यक्ष सरोज के बीच कहा-सुनी हुई। उसी के बाद डीएसपी को गोली मार दी गई। गोली लगने के बाद डीएसपी को चिकित्सा सहायता के लिए भी नहीं ले जाया गया। जांच में पता चला कि डीएसपी केपी सिंह थानाध्यक्ष सरोज व कुछ अन्य पुलिसकर्मियों के खिलाफ कुछ आरोपों की जांच कर रहे थे। इसी के चलते उन्हें खत्म करने की साजिश रची गई। इसे मुठभेड़ का रूप देने के लिए 12 निर्दोष ग्रामीणों को एकत्रित किया गया और उन्हें भी गोली मार दी गई। बाद में उन्हें डकैत बता दिया गया। कोर्ट परिसर में पीड़ित परिवारों के लोगों की आंखें भर आईं जो बरसों से न्याय का इंतजार कर रहे थे। वह इस कदर भावुक हो गए कि आंसुओं को रोक नहीं सके। मुख्य आरोपी तत्कालीन एसओ कुड़िया आरबी सरोज ने फैसला आने के बाद कहा कि सीबीआई ने उन्हें व अन्य पुलिसकर्मियों को झूठा फंसाया है। वह इस फैसले को हाई कोर्ट व सुप्रीम कोर्ट तक चुनौती देंगे।

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