Saturday 27 April 2013

चिट फंड कम्पनियों का गोरख धंधा



 Published on 27 April, 2013 
 अनिल नरेन्द्र 

 फर्जी ढंग से लोगों से पैसा उगाने के आरोपों में घिरे शारदा समूह के चिट फंड विवाद पर पश्चिम बंगाल में राजनीतिक बवाल शुरू हो गया है। कम्पनी के चेयरमैन सुदीप्तो सेन द्वारा कथित रूप से सीबीआई को लिखे पत्र में तो तृणमूल कांग्रेस विधायकों कृणाल घोष और सृंजय बोस का नाम भी लिया गया है। इन पर उन्होंने ब्लैकमेलिंग का आरोप लगाया है। वहीं विवाद से निपटने के लिए मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने तत्काल 500 करोड़ रुपए का राहत कोष बनाने की घोषणा कर दी है। जो समूह द्वारा ठगे गए लोगों को रकम लौटाने के काम आएगी। साथ ही ममता को कहना पड़ा है कि यदि उनके नेताओं ने अपराध किया है तो कानून के तहत कदम उठाए जाएंगे। उधर शारदा समूह की मुश्किलें और बढ़ गई हैं। आयकर विभाग उसके द्वारा किए गए निवेश और वित्तीय जांच की तैयारी कर रहा है। सुदीप्तो सेन द्वारा सीबीआई को लिखे पत्र में कई नेताओं, अधिकारियों और वकीलों के नाम भी हैं जो उसे ब्लैकमेल करते थे। कृणाल घोष ने हाल ही में शारदा समूह के सीईओ के पद से इस्तीफा दिया था, जबकि सृंजय एक बांग्ला दैनिक के सम्पादक हैं। सृंजय ने अपने बचाव में कहा है कि उनके अखबार का चैनल-10 टीवी से व्यावसायिक टाई-अप है। उसका शारदा चिट फंड कम्पनी से कोई संबंध नहीं है। चैनल-10 शारदा समूह का है। शारदा कम्पनी के प्रमुख से संबंधों पर पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि हमें नहीं पता था कि वह व्यक्ति फ्रॉड है। पश्चिम बंगाल में शारदा समूह का घोटाला वित्तीय अनियमितताओं पर नजर रखने में सरकार की अक्षमता को ही दर्शाता है। बेशक इस कम्पनी के मुखिया को गिरफ्तार कर लिया गया है और सेबी ने समूह की गतिविधियों की जांच शुरू कर दी है मगर हकीकत यह है कि इस तरह धोखे से पैसे जुटाने वालों के खिलाफ कड़े और स्पष्ट कानून न होने के कारण न्याय की आस धुंधली रहती है। करीब 10 साल पहले जब देश में गैर-बैंकिंग वित्तीय कम्पनी के नाम पर चिट फंड चलाने वाले समूहों का जाल-सा फैल चुका था और इनके झांसे में आकर लाखों लोगों के अपनी जीवनभर की  जमापूंजी गंवा देने के मामले उजागर हुए थे तब सरकार ने इनके खिलाफ कड़ा रुख अख्तियार किया था पर दुखद पहलू तो यह है कि निवेशकों के पूरे पैसे नहीं मिल पाए। उसके बाद भी अनेक कम्पनियां सबके जानते-समझते चिट फंड का कारोबार करती आ रही हैं और हैरानी की बात है कि उन पर नकेल कसने का कोई व्यावहारिक उपाय नहीं निकाला जा सका। इन चिट फंड कम्पनियों की गतिविधियां किसी से छिपी नहीं पर सेबी की आंखें तब खुलती हैं जब लाखों लोग तबाह हो जाते हैं? शारदा समूह की कमाई का अन्दाजा इससे लगाया जा सकता है कि प. बंगाल के 19 जिलों में उसके एक लाख एजेंट काम कर रहे हैं और कम्पनी की 360 शाखाएं थीं। दरअसल एक मुश्किल यह भी है कि यह चिट फंड कम्पनियां पंजीकृत नहीं होतीं। वे रिक्शा चलाने, दिहाड़ी मजदूरी करने से लेकर भीख मांगने वाले तमाम लोगों को सब्ज-बाग दिखाकर रोजाना या मामूली रकम जमा करने के लिए राजी कर लेती हैं। चूंकि ऐसे निवेश को कोई कानूनी संरक्षण नहीं होता, ये कम्पनियां अपनी वसूली आदि से जुड़ी जानकारियां दुरुस्त रखने के लिए बाध्य नहीं होतीं। फर्जी कागजात के जरिए सारा कारोबार चलता है। इस तरह से धन उगाने का जाल सिर्प चिट फंड कम्पनियों तक ही सीमित नहीं रहा। अब तो इंटरनेट, अखबारों, टीवी पर विज्ञापनों के जरिए छोटे निवेश पर बड़ी कमाई का झांसा देने वाले अनेक गिरोह सक्रिय हैं। ऐसे मामलों में स्पष्ट कानून और नियामक एजेंसियों का अधिकार क्षेत्र निर्धारित न होने के कारण ऐसी कम्पनियां बच जाती हैं। एक समस्या यह भी है कि अलग-अलग मामलों में वित्तीय अनियमितताओं के खिलाफ कार्रवाई की जिम्मेदारी भी अलग-अलग सरकारी एजेंसियों को सौंपी जाती है। इसमें कार्रवाई तभी हो सकती है जब संबंधित कम्पनी पंजीकृत हो। समय आ गया है कि जब सरकार को चिट फंड के गोरख धंधे पर नकेल कसने के लिए एक स्वतंत्र एजेंसी गठित करने के बारे में गम्भीरता से सोचना चाहिए। ममता द्वारा 500 करोड़ का फंड इकट्ठा करना कोई समाधान नहीं। पूरे देश में तो पता नहीं कितने हजारों करोड़ रुपए का यह गोरख धंधा इस समय चल रहा है।


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