Published on 5 April,
2013
अनिल नरेन्द्र
दिल्ली विधानसभा में भारत के
नियंत्रण महालेखा परीक्षक (कैग) की 2013 की जो रिपोर्ट पेश की गई है उससे दिल्ली सरकार
की कारगुजारी पर कई प्रश्न उठते हैं। रिपोर्ट में सरकार की तमाम योजनाओं से अपेक्षित
नतीजे न मिलने के अलावा जनता के पैसे की बर्बादी के लिए विभिन्न विभागों में खाली पड़े
पद, काम की धीमी गति, प्रोजेक्ट के लागू न होने, वसूली में लापरवाही, योजना का अभाव
और मंजूरी मिलने में लेटलतीफी को जिम्मेदार ठहराया गया है। मंगलवार को दिल्ली विधानसभा
के पटल पर रखी गई कैग रिपोर्ट में सरकार के जन विभागों, प्रोजेक्ट्स व स्कीम के खातों
की जांच की गई, उन पर अपनी टिप्पणियों में कैग ने कुछ इसी तरह के आरोप लगाए और गिनाए
हैं। दिल्ली में महिलाओं को असुरक्षित बताने वाली मुख्यमंत्री खुद इस मामले में एक
तरह से कठघरे में खड़ी हैं। एक ओर जहां पुलिस के लिए रकम देरी से जारी हुई, वहीं पुलिस
भी 4.33 करोड़ रुपए का इस्तेमाल नहीं कर पाई। रिपोर्ट में कहा गया है कि परिवहन विभाग
में जमकर घालमेल किया गया है। अनुचित फायदे देकर कम्पनी को लाभ पहुंचाया गया। यही नहीं,
सीवेज प्रबंधन में भी कम ही कार्य किया गया। दिल्ली जल बोर्ड ने करोड़ों रुपए खर्च
करने के बाद एक एमजीडी क्षमता का सीवेज ट्रीटमेंट
प्लांट लगाया। यही नहीं, कार्य में देरी होने पर ठेकेदार पर जुर्माना तक नहीं लगाया
गया। रिपोर्ट में कहा गया है कि जवाहर लाल नेहरू राष्ट्रीय शहरी नवीकरण के तहत लक्ष्यों
को भी पूरा नहीं किया गया। सरकार ने फैसले लेने में भी देरी की जिसके चलते यमुना नदी
के पुल की लागत 672 करोड़ रुपए बढ़ गई। कैग
को 243 मामले ऐसे मिले जहां आवंटित की गई कुल राशि का 20 फीसदी से ज्यादा या 5 करोड़
रुपए से अधिक का इस्तेमाल नहीं हुआ। 22 मामलों में तो 50-50 करोड़ से ज्यादा राशि बच
गई। 9 अनुदानों की 42 योजनाओं में 100 फीसदी राशि जस की तस बच गई। ऐसी कुछ योजनाओं
में नगर सुधार के लिए 300.93 करोड़ रुपए की सहायता राशि, पॉवर स्टेबलाइजेशन फंड की
इक्विटी के लिए 200 करोड़ रुपए का प्रावधान, जल बोर्ड को सीवेज व जलापूर्ति विकास कार्यों
के लिए 70 करोड़ रुपए, सड़क निर्माण के लिए निगम को 50.6 करोड़ रुपए का ऋण और जिला
व अन्य सड़कों के लिए 50 करोड़ रुपए के प्रावधान शामिल हैं। इन योजनाओं पर 2011-12
वित्त वर्ष खत्म होने तक एक पैसा भी नहीं खर्च हुआ था। दूसरी ओर 2310 करोड़ की कर वसूली
नहीं हो सकी। कर वसूली प्रणाली में कम आंकलन, छूट के अनियमित दावों व अन्य खामियों
के चलते सरकारी खजाने को 2300 करोड़ रुपए से अधिक का नुकसान हुआ। कैग का कहना है कि
दूरदर्शिता के अभाव के चलते यह नुकसान हुआ। सीएजी ने दिल्ली के सरकारी अस्पतालों का
पोस्टमार्टम भी किया। पूर्वी दिल्ली के गुरु तेग बहादुर अस्पताल में 2009-12 में एम्बुलेंस
का उपयोग मरीजों की जगह दवाइयां लाने, डाक्टर्स को उनके घर/अस्पताल छोड़ने के लिए,
शवों को शव-गृह ले जाने तथा बैंक से नकदी आदि के लिए किया जा रहा है। जिस एम्बुलेंस
का प्रयोग मरीजों के लिए किया जा रहा था, उसमें जीवन रक्षक उपकरण भी नदारद थे। दिल्ली
सरकार के सबसे बड़े लोक नायक अस्पताल में भी तीन वर्ष के दौरान मरीजों को लाने ले जाने
के लिए रोगी वाहन (एम्बुलेंस) केवल 1324 किलोमीटर ही चले। जीटीबी अस्पताल में मार्च
2010 में 7.17 करोड़ रुपए की लागत से सीटी स्केन मशीन खरीदी गई। उपकरण को जुलाई
2010 में स्थापित किया जाना था लेकिन मशीन स्थापित करने में 20 माह का समय लगा दिया।
कैग की रिपोर्ट ऐसे समय आई है जब इसी वर्ष दिल्ली विधानसभा के चुनाव होने हैं। विपक्ष
इस रिपोर्ट को खुद उछालेगा। दिल्ली विधानसभा में प्रतिपक्ष के नेता प्रो. विजय कुमार
मल्होत्रा ने कहा कि कैग की रिपोर्ट में दिल्ली सरकार के प्रत्येक विभाग में भीषण भ्रष्टाचार,
घोर अनियमितताएं, कम्पनियों व ठेकेदारों से मिलीभगत तथा आपराधिक लापरवाही साबित होती
है। प्रो. मल्होत्रा ने कहाöभाजपा शुंगलू कमेटी, लोकायुक्त, सीवीसी, सीबीआई द्वारा
उजागर किए गए स्कैंडलों के साथ कैग की रिपोर्ट को शामिल करके दिल्ली सरकार के खिलाफ
चार्जशीट तैयार करेगी जिसे लेकर दिल्ली की गली-गली, मौहल्ले-मौहल्ले में जनता के दरबार
में जाएगी और विधानसभा चुनावों में इसे प्रमुख मुद्दा बनाएगी।
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