Tuesday 9 April 2013

क्या समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के रिश्ते टूटने की कगार पर हैं?



 Published on 9 April, 2013 
 अनिल नरेन्द्र
समाजवादी पार्टी और कांग्रेस की आपस में तल्खी बढ़ती ही जा रही है। मुलायम सिंह ने पिछले दिनों कांग्रेस को धोखेबाजों की पार्टी से लेकर सीबीआई के माध्यम से सत्ता में बने रहने का आरोप लगाया। अब कांग्रेस की बारी है। बेनी पसाद वर्मा ने तो सारी हदें पार कर दी और न जाने क्या-क्या कह दिया। अब दूरसंचार मंत्री कपिल सिब्बल ने रविवार को सपा सुपीमो मुलायम सिंह को खुली चुनौती दी कि अगर हिम्मत है तो वह सरकार गिराकर दिखाएं। हालांकि उन्होंने किसी का नाम नहीं लिया पर उनका इशारा मुलायम सिंह पर था। सिब्बल के इस बयान के बाद समाजवादी पार्टी नेता राम आसरे कुशवाहा ने कहा कि सिब्बल की औकात ही क्या है? उधर मुलायम सिंह ने केन्द्राrय कोयला मंत्री श्रीपकाश जायसवाल के हाल के उस बयान को गम्भीरता से लिया जिसमें उन्होंने (जायसवाल ने) पदेश सरकार पर फिजूलखर्ची का आरोप लगाया है। उनके बयान को सिरे से खारिज करते हुए मुलायम सिंह ने कहा कि केन्द्र सरकार द्वारा पदेश को दी जा रही आर्थिक सहायता किसी रूप से खैरात नहीं है बल्कि एक पकार की यह राज्यों का पैसा है जिस पर उसका अधिकार है। सपा इस समय चारों तरफ से घिरी हुई है। बहुजन समाज पार्टी सुपीमो मायावती ने कहा कि देश में लोकसभा चुनाव समय से पहले कभी भी हो सकते हैं। जिसके लिए बसपा पूरी तरह तैयार है। बसपा के वरिष्ठ नेता नसीमुद्दीन सिद्दीकी ने उत्तर पदेश की सपा सरकार पर वार करते हुए अखिलेश यादव को महज आधा मुख्यमंत्री करार देते हुए कहा कि इस वक्त सूबे में एक नहीं बल्कि साढ़े चार मुख्यमंत्री हैं। बसपा महासचिव ने इन्हें गिनाया। मुलायम, रामगोपाल यादव, शिवपाल यादव और आजम खान को चार व अखिलेश को आधा मुख्यमंत्री बताया है। उत्तर पदेश में समाजवादी पार्टी और लोकदल भी आमने-सामने आ गए हैं। सपा ने लोकदल के अध्यक्ष अजीत सिंह पर हमला बोला तो अगले दिन ही राष्ट्रीय लोकदल के महासचिव जयंत चौधरी ने हिसाब बराबर करने की कोशिश की। जयंत ने एक बयान में कहा कि उत्तर पदेश में कानून व्यवस्था एक दम बिगड़ी हुई है। असामाजिक तत्व दिन दहाड़े अपराध कर रहे हैं। सत्ता में बैठे और सत्ता में निकटता रखने वाले कई लोग जघन्य आरोपों में लिप्त हैं। खुद मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के आत्मविश्वास का यह हाल है कि नोएडा से जुड़ी 3300 करोड़ रुपए की परियोजनाओं का शिलान्यास करने के लिए अखिलेश नोएडा जाने से बचे और उन्होंने लखनऊ अपने सरकारी निवास से ही शिलान्यास की औपचारिकता पूरी कर दी। यह संयोग भी हो सकता है लेकिन यह अंधविश्वास बन चुका है कि मुख्यमंत्री रहते जो भी नोएडा जाता है उसकी कुर्सी चली जाती है। शायद इसी वजह से राजनाथ सिंह ने 2001 में मुख्यमंत्री के रूप में नोएडा के एक फ्लाई ओवर का उद्घाटन दिल्ली से किया। सवाल यह उठता है कि सपा और कांग्रेस का यह वाकयुद्ध कहां जाकर थमेगा। हमें लगता है कि दोनों के बीच चल रही तनातनी को देखते हुए भले ही लग रहा हो कि दोनों के रिश्ते टूट की कगार पर हैं लेकिन ऐसा नहीं है। हालांकि आगामी लोकसभा चुनाव की मजबूरी के चलते दोनों पार्टियों की आपसी खींचतान बदस्तूर जारी रहेगी। दरअसल सपा यूपीए सरकार को बदनाम करने का कोई मौका छोड़ना नहीं चाहती है। साथ ही वह केन्द्र सरकार से समर्थन वापस तो लेना चाहती है लेकिन उसके लिए सही टाइम और सही मुद्दा अभी उसे नहीं मिल रहा है। यही नहीं शायद वह अभी अपने सिर पर यूपीए सरकार को गिराने का दाग नहीं लेना चाहती। इसीलिए फिलहाल कांग्रेस के खिलाफ तल्ख रिश्तों को कायम रखने में ही फायदा देख रही है। यूपीए सरकार पर दबाव बनाने में जुटे मुलायम सिंह संसद के बजट सत्र के दूसरे चरण में कहीं खुद ही असमंजस में न फंस जाएं? दरअसल वामदलों ने अनुदान मांगों पर कटौती पस्ताव लाने का फैसला कर दो नावों पर सवारी कर रहे मुलायम को पूरी तरह अपने पाले में लाने की रणनीति बनाई है। इनका मानना है कि इस रणनीति के कारण या तो मुलायम सरकार का साथ छोड़ने पर मजबूर होंगे अन्यथा गैर यूपीए और गैर एनडीए की राजनीति में पूरी तरह अलग-थलग पड़ जाएंगे। देखें आगे क्या होता है, मामला धीरे-धीरे क्लाइमेक्स की ओर बढ़ रहा है।

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