Published on 23 April,
2013
अनिल नरेन्द्र
गुरुवार शाम को दिल्ली के फिरोजशाह कोटला मैदान में
हुए आईपीएल मैच ने इलाके की तमाम सड़कों पर जाम लगा दिया। आईटीओ, दिल्ली गेट, राजघाट,
बहादुर शाह जफर मार्ग समेत कई मार्गों पर वाहनों की लम्बी कतारें लगी रहीं। शनिवार
को राजधानी में पांच वर्षीय बच्ची के साथ बलात्कार के विरोध में युवाओं ने आईटीओ चौक
जाम कर दिया। जाम अब दिल्लीवासियों की जिंदगी का ही हिस्सा बन गया है। हालांकि ट्रैफिक
पुलिस ने ट्रैफिक को सुचारु रूप से चलाने के लिए कई इंतजाम किए हैं पर फिर भी जामों
से छुटकारा नहीं मिल रहा। सबसे बड़ी समस्या तो तब होती है जब चौराहों पर ट्रैफिक सिग्नल
लाइटें नहीं जलतीं। हैदराबाद स्थित एक इंस्टीट्यूट का दावा है कि दिल्ली पुलिस के अनिर्णय
के कारण हर वर्ष न केवल तीन हजार करोड़ रुपए ही बर्बाद हो रहे हैं बल्कि पदूषण में
भी भारी इजाफा हो रहा है। दिल्ली की लालबत्तियों पर सर्वे इंस्टीट्यूट ने सेंटर फॉर
साइंस एण्ड इनवायरमेंट को यह रिपोर्ट सौंपी है। बर्बादी की वजह लालबत्तियों पर बेवजह
पेट्रोल-डीजल पूंकना है। इस पर अंकुश टाइमर लगा कर किया जा सकता है। 1730 लालबत्तियों
में से 1198 में टाइमर नहीं लगे हुए हैं। 2006 में मात्र दो सौ करोड़ की योजना की पस्तावित
लागत बढ़ कर अब एक हजार करोड़ तक पहुंच गई है। वहीं अब तक पन्द्रह हजार करोड़ का ईंधन
बेकार जल चुका है। लेकिन अब तक किसी एजेंसी ने इसकी जिम्मेदारी नहीं ली। टाइमर न लगे
होने से रोजाना करीब 8 करोड़ रुपए का ईंधन बेकार होता है। वर्षभर में इसका आंकड़ा तीन
हजार करोड़ तक पहुंच जाता है। यानी रेड लाइट पर लम्बा खड़ा रहने से इतने रुपए का देश
को नुक्सान हो रहा है। विशेषज्ञ सुझाते हैं कि अगर रेड लाइट पर 30 सैकेंड से ज्यादा
देर होती है तो अपने वाहन का इंजन बंद कर लें। सर्वे के आधार पर 3,70,000 किलोग्राम
ही सीएनजी जलती है, 1,30,000 लीटर डीजल और 4,10,000 लीटर पेट्रोल। आईटीओ, दिल्ली गेट,
श्याम लाल कॉलेज, आजादपुर कुछ अति व्यस्तम प्वाइंट्स हैं। जामों की बात को छोड़िए दिल्ली
एनसीआर में चल रहे सार्वजनिक परिवहन के वाहनों में सफर करना खतरे से खाली नहीं है।
इनमें से करीब 82 पतिशत वाहन खटारा हैं और बगैर फिटनेस सर्टिफिकेट के चल रहे हैं। कई
बार देखा गया है कि लालबत्ती पर सबसे आगे खड़ा आटो ग्रीन लाइट होने पर स्टार्ट ही नहीं
होता। जाम लगने की एक वजह यह भी है। यही नहीं इन्हें चलाने वाले अधिकांश ड्राइवरों
के पास वैध ड्राइविंग लाइसेंस भी नहीं हैं। उद्योग मंडल (एसोचैम) द्वारा कराए गए सर्वेक्षण
में इसका खुलासा हुआ है। दिल्ली में चलती बस में छात्रा के साथ सामूहिक दुष्कर्म की
घटना के बाद यह सर्वेक्षण कराया गया। सर्वेक्षण के तहत कुछ 2000 वाहनों की जांच की
गई। अनुमान है कि इस समय दिल्ली में 65 लाख से अधिक वाहन हैं, 65000 ऑटो रोज दिल्ली
में दौड़ते हैं, 5884 बसें हैं, 4000 ग्रामीण सेवा दौड़ती हैं और 2000 के करीब चाटर्ड
बसे हैं। हालांकि दिल्ली सरकार ने दर्जनों फ्लाईओवर बनाए हैं पर बढ़ती वाहनों की संख्या
ने इनका पूरा फायदा नहीं होने दिया। फायदा तो हुआ है पर इतना नहीं। असल समस्या है रोज
नए वाहनों का आना। राजधानी एनसीआर में इतनी सड़कें हैं ही नहीं जो इतने वाहनों को सुचारु
रूप से चला सकें। दुखद पहलू यह है कि निकट भविष्य में भी इन जामों से कोई निजात मिलने
वाली नहीं है।
�न � I � � �/� � बताते हुए मामले को खत्म करने की बात कही। अजीत पवार ने हालांकि
माफी भी मांग ली है पर विपक्षी दल शिवसेना और भाजपा उनके इस्तीफे की मांग को लेकर विधानसभा
की कार्यवाही नहीं चलने दे रही हैं। अब इनको अजीत के खिलाफ और बारूद मिल गई है। अजीत
पवार ने अपनी हरकतों से न केवल अपनी पार्टी को ही बल्कि कांग्रेस गठबंधन सरकार को भी
आलोचना का शिकार बना दिया है। अजीत पवार मुख्यमंत्री चव्हाण के लिए एक सिरदर्द बन गए
हैं। महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव 2014 में होने हैं। देखना है कि कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन
पर इसका क्या पभाव पड़ता है।
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