Published on 10 April,
2013
अनिल नरेन्द्र
माननीय श्री पणब मुखर्जी की पशासनिक क्षमता पर सभी
कायल हैं। जब वह मनमोहन सिंह सरकार में थे तब उन्हें सरकार व कांग्रेस पार्टी का संकट
मोचन यूं ही नहीं कहा जाता था। अब वे राष्ट्रपति बन गए हैं। चुस्ती, फुर्ती से रायसीना
हिल पर भी काम कर रहे हैं। राष्ट्रपति बनने के बाद भी उनकी तेजी कम नहीं हुई। अब उन्होंने
एक झटके में नौ लोगों की दया याचिकाओं का एक साथ निपटारा कर दिया है। राष्ट्रपति के
पास 7 दया याचिकाएं आई थीं, इनमें से उन्होंने 5 की फांसी की सजा बरकरार रखी जबकि दो
दोषियों की फांसी की सजा सख्त आजीवन कारावास में बदल दी। इन्हें उम्रभर जेल में रहना
होगा, जिन पांच दोषियों की फांसी की सजा बरकरार रखी गई है उनमें हरियाणा का धर्मपाल
सबसे पहले फांसी पर लटकेगा। धर्मपाल फिलहाल रोहतक जेल में है। रेप के आरोपी धर्मपाल
ने पेरोले पर रिहा होने के बाद पीड़ित लड़की के परिवार के पांच सदस्यों की हत्या कर
दी थी। पिछले सात साल से धर्मपाल की दया याचिका पर फैसला लटका रहा। महामहिम ने आते
ही इसका निपटारा कर दिया। राष्ट्रपति द्वारा एक दशक से अंबाला जेल में बंद वरवाला के
पूर्व विधायक रेलूराम पुनिया की बेटी सोनिया और दामाद संजीव की दया याचिका खारिज कर
दिए जाने के बाद देश में यह पहला मौका होगा जब किसी महिला को हत्या के जुर्म में फांसी
पर लटकाया जाएगा। सोनिया और उसके पति संजीव ने 23 अगस्त 2001 को हिसार स्थित अपने पूर्व
विधायक पिता रेलूराम पुनिया की सम्पत्ति हड़पने को लेकर अपने ही परिवार के आठ लोगों
का बेरहमी से कत्ल कर दिया था जिसमें मासूम बच्चे भी थे। अब राष्ट्रपति के पास कोई
दया याचिका नहीं पड़ी है। 26/11 के आतंकवादी अजमल आमीर कसाब और संसद पर हमले के आरोपी
अफजल गुरू की दया याचिका वह पहले ही खारिज कर चुके थे और उन्हें फांसी भी दी जा चुकी
है। दया याचिका के नामंजूर होने के बाद फांसी की सजा पाए व्यक्ति के बच पाने का कोई
रास्ता नहीं है। अगर इन सबको फांसी दे दी जाती है तो ताजा इतिहास में यह पहली बार होगा,
जब इतने लोगों को इतने कम समय में फांसी दी गई। यह सही है कि मौत की सजा बेशक बहुत
भयानक है, लेकिन मौत के साए में अनिश्चय के बीच झूलते रहना भी बहुत बड़ी मंत्रणा है।
भारत में 1995 में एक व्यक्ति को फांसी दी गई थी और 2004 में एक व्यक्ति को। उसके बाद
इस साल कसाब और अफजल गुरू को फांसी दी गई। हर वक्त भारत में करीब पांच सौ लोग विभिन्न
जेलों में ऐसे होते हैं जिन्हें फांसी की सजा सुनाई गई होती है, लेकिन सचमुच फांसी
के फंदे पर कभी-कभार ही कोई पहुंचता है। इस साल शायद यह स्थिति बदलेगी और हो सकता है
कि यह साल कई फांसियों के लिए दर्ज किया जाए। फांसी की सजा की तामील भी आसान नहीं होती
क्योंकि ज्यादातर जेलों में इसका इंतजाम नहीं है। राष्ट्रपति पणब मुखर्जी ने तमाम दया
याचिकाओं पर अनिश्चय खत्म कर दिया है और जिनकी दया याचिका मंजूर हो गई है उनके सामने
भी स्थिति स्पष्ट हो जाएगी कि उन्हें बाकी बची उम्र भी जेल में काटनी पड़ेगी।
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