Sunday, 14 April 2013

बुलंदशहर के कानून रक्षक खुद कानून भक्षक बने



 Published on 14 April, 2013 
 अनिल नरेन्द्र 
 उत्तर पदेश में बिगड़ती कानून व्यवस्था का एक और उदाहरण सामने आया है। उत्तर-पदेश के बुलंदशहर में पुलिस ने एक नाबालिग बलात्कार पीड़िता के साथ जो सलूक किया उसकी जितनी भी निंदा की जाए कम होगी। यह संतोषजनक और राहतकारी है कि सुपीम कोर्ट ने पुलिस के अमानवीय व्यवहार की इस घटना पर स्वत संज्ञान लिया है। इस घटना के संदर्भ में सुपीम कोर्ट की ओर से उठाए गए सवाल का जवाब सारा देश जानना चाहता है कि आखिर पुलिस एक दस वर्षीय बच्ची को जेल में कैसे डाल सकती है? गौरतलब है कि बुलंदशहर में एक दस वर्षीय बच्ची के साथ एक दबंग ने रेप किया और उल्टा उसी पर चोरी का इल्जाम लगा दिया। जब उसकी मां उसे लेकर थाने पहुंची तो पुलिस ने मां को भगा दिया और बच्ची को ही हवालात में बंद कर दिया। पुलिस ने उसके साथ हुए बलात्कार के मामले पर ध्यान देना भी जरूरी नहीं समझा। इस घटना की मीडिया रिपोर्ट के आधार पर सुपीम कोर्ट ने खुद संज्ञान लिया और उत्तर पदेश सरकार से इस बारे में जवाब मांगा। इस केस में यह सवाल और गंभीर हो जाता है कि यह घटना उस थाने में हुई जिसकी पभारी एक महिला थी। क्या इससे अधिक अमानवीय और अकल्पनीय और कुछ हो सकता है कि दुष्कर्म की शिकार बच्ची की मदद करने के बजाय उसे जेल में डाल दिया जाए? यदि महिला थानों में भी ऐसी हरकतें होंगी तो समाज पुलिस पर भरोसा कैसे करेगा? सुपीम कोर्ट ने जब जवाब मांगा तो आनन-फानन में राज्य सरकार सकिय हुई और दोषी पुलिस कर्मियों को सस्पेंड कर दिया। पुलिस महकमे की लापरवाही, भ्रष्टाचार, संवेदनहीनता की बातें अक्सर होती रहती हैं पर इस घटना ने साबित कर दिया कि उसे कानून की बुनियादी समझ भी नहीं है। आखिर बुलंदशहर के पुलिस कर्मियों ने उस लड़की को हवालात में बंद करते हुए एक बार भी नहीं सोचा कि वह कानून की रक्षक हैं, भक्षक नहीं? वहां मौजूद पुलिस कर्मियों ने उन्हें आरोपी से कुछ पैसा दिलाने का लोभ दिया और शिकायत दर्ज न कराने को कहा। लेकिन जब उन्होंने इंकार कर दिया तो उन्हें गालियां दीं और उलटा पीड़ित बच्ची को ही हवालात में बंद कर दिया। अगर एक टीवी चैनल के पत्रकार ने इस मामले को उजागर न किया होता तो बच्ची और उसके परिवार को किन स्थितियों का सामना करना पड़ सकता था, अन्दाजा भर लगाया जा सकता है। पुलिस का यह रवैया एक बार फिर इस बात का पमाण है कि उससे जिन कमजोर वर्गों के लिए न्याय सुनिश्चित कराने की उम्मीद की जाती है वह किस तरह सामाजिक रूप से पभावशाली लोगों के हित में काम करती है। पिछले कुछ समय से उत्तर पदेश में दलितों और कमजोर वर्गों के खिलाफ सामाजिक अराजगता बढ़ती ही जा रही है। अखिलेश यादव की सरकार को इसे रोकने के लिए अविलम्ब सख्त कदम उठाने होंगे।

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