Published on 28 April,
2013
अनिल नरेन्द्र
कश्मीर के लद्दाख में चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी
(पीएलए) की एक प्लाटून 15 अप्रैल की रात को डीबीओ के बर्थ में भारतीय सीमा के 10 किलोमीटर
अन्दर आने और वहां तम्बू तानने से लगभग कारगिल जैसे हालात पैदा हो गए हैं। जैसे कारगिल
में सीमा चौकियों को खाली छोड़ना महंगा पड़ा था, लद्दाख फ्रंटियर में चीन से सटी सीमा
चौकियों पर सैनिक कभी भी स्थायी तौर पर तैनात नहीं किए गए और अब सेना लेह स्थित अपनी
कोर के पूरे जवानों को इसमें झोंकने पर मजबूर हो रही है। खबर यह भी है कि भारतीय सीमा
में घुसपैठ करने वाले चीनी सैनिकों द्वारा लद्दाख के दौलत बीग ओल्डी (डीबीओ) सेक्टर
में अपनी कब्जाई जगह से हिलने के इंकार के बीच दो चीनी सैन्य हेलीकाप्टरों ने लेह से
कई सौ किलोमीटर दक्षिण पूर्व में स्थित चुमर के भारतीय हवाई क्षेत्र का उल्लंघन किया
जिसके बाद तनाव बढ़ गया। हालांकि केंद्र सरकार तथा भारतीय सेना इससे इंकार करती आई
है कि चीन द्वारा कोई घुसपैठ की जा रही है पर मिलने वाले समाचार कहते हैं कि लद्दाख
सेक्टर में चीन सीमा पर दोनों सेनाओं के बीच तनातनी का माहौल जारी है, जिसके परिणामस्वरूप
सीमा से सटे कई गांव पहले ही खाली हो चुके हैं। लद्दाख के पूर्वी क्षेत्र चुशूल में
भारत-चीन के सैन्य अधिकारियों की दो फ्लैग मीटिंग हो चुकी हैं और दोनों बेनतीजा रहीं।
यह जानना महत्वपूर्ण है कि चीन की ओर से यह कदम ऐसे समय में उठाया गया है जब नवनिर्वाचित
चीनी प्रधानमंत्री ली केकियांग अगले महीने भारत दौरे पर वाले हैं। यह भी गौरतलब है
कि भारतीय वायुसेना ने हाल ही में अपना अभ्यास `आपरेशन लाइव वायर' सम्पन्न किया है,
जिस दौरान सीमा के नजदीक सभी संवेदनशील वायु ठिकानों को सक्रिय कर दिया गया था। शायद
इससे भी चीनी भड़के हों। इधर भारत को आशंका है कि चीन द्वारा कहीं 1987 का वाकया न
दोहराया जाए, जब मीनतवांग के उत्तर में समूदोरांग इलाके में घुस आया था और फिर वापस
नहीं गया। वह इलाका आज भी चीन के कब्जे में है। चीन की विदेश नीति, एग्रेसिग यानी आक्रामक
शैली में पिछले कुछ महीनों से बदलाव आया है। भारत ही नहीं, पूर्वी चीन सागर में चीन
जापान से टकरा रहा है। चीन सागर में स्थित सेनकाकू द्वीप के स्वामित्व को लेकर चल रहा
विवाद अब खतरे के जोन में प्रवेश कर गया है। सेनकाकू द्वीप को लेकर चीन और जापान के
बीच लम्बे समय से विवाद रहा है। पिछले साल इस द्वीप को निजी मालिक से जापान द्वारा
खरीदे जाने के बाद तनाव बढ़ गया है। तब से लेकर अब तक चीन अक्सर इस क्षेत्र में अपनी
नौकाओं के जरिए निगरानी कर रहा है। जिस पर जापान ने कई बार आपत्ति जताई है। किसी भी
समय यह विवाद एक भयंकर रूप ले सकता है। चीन अपनी घोषणा के मुताबिक सचमुच अगर भारत से
मजबूत, स्थिर और दीर्घकालिक संबंध चाहता है तो उसे भारत की मांग के मुताबिक तुरन्त
लद्दाख के डीबीओ सेक्टर से अपनी सेनाओं को उसी जगह वापस बुला लेना चाहिए, जहां से वह
भारत में घुसकर अपने तम्बू गाड़ रही हैं। चूंकि भारत और चीन की सीमा सही तरीके से रेखांकित
नहीं है, इसलिए विवादित इलाके में किसी स्थल को अपना हिस्सा बता देना आसान है। मगर
मुद्दा यह है कि अगर चीन की मंशा ठीक है तो उसकी सेना ऐसे भड़काऊ कदम क्यों उठा रही
है? चीन ने अगर जल्द सुधारात्मक कदम नहीं उठाए तो दोनों देशों के बीच रिश्तों में सुधार
की उम्मीदों पर पलीता लग सकता है। पिछले महीने चीन में नए नेतृत्व ने सत्ता सम्भाली
है। नए राष्ट्रपति शी जिनपिंग और प्रधानमंत्री ली केकियांग के बयानों से संकेत मिलते
हैं कि वह भारत के साथ संबंध प्रगाढ़ बनाने की उनकी प्राथमिकता है। चीन के नए प्रधानमंत्री
ली केकियांग ने प्रोटोकॉल का ख्याल न करते हुए बतौर प्रधानमंत्री अपनी पहली विदेश यात्रा
के रूप में भारत में आने की इच्छा जताई है। चीन को अब स्थिति सुधारनी होगी और यह साबित
करना होगा कि उसकी कथनी और करनी में कोई फर्प नहीं है।
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