Thursday, 11 April 2013

आईएसआई और सीआईए में नापाक समझौता ः भाड़ में जाए भारत



 Published on 11 April, 2013 
 अनिल नरेन्द्र 
 सारी दुनिया में आतंकवाद के खिलाफ लड़ने का दावा करने वाले अमेरिका के दोहरे मापदंड एक बार फिर साबित होते हैं। अमेरिका के लिए आतंकवाद का मतलब सिर्प अमेरिका के खिलाफ आतंकवाद है। दूसरे देशों के लिए आतंकवाद में अमेरिका को कोई दिलचस्पी नहीं है। ताजा उदाहरण प्रतिष्ठित अमेरिकन अखबार न्यूयॉर्प टाइम्स में एक रिपोर्ट में पेश किया गया है। अखबार के पत्रकार की आने वाली पुस्तक में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई और अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए ने वर्ष 2004 में गुप्त वार्ता के तहत समझौते के नियम तय किए थे। द वे ऑफ नाइफ नाम की किताब में बताया गया है कि पाकिस्तान के कबायली इलाकों में आतंकवादियों के ठिकानों और प्रशिक्षण शिविर पर ड्रोन हमलों के लिए पाकिस्तान और अमेरिका में बाकायदा एक समझौता हुआ था। अमेरिकी सेना को ड्रोन हमलों की इजाजत देने के लिए पाकिस्तान सरकार ने यह शर्त रखी कि ये हमले उन प्रशिक्षण शिविरों पर नहीं किए जाएंगे जो पाक अधिकृत कश्मीर में चलाए जा रहे हैं। ये वही शिविर हैं जहां पाकिस्तान भारतीय कश्मीर में भेजने के लिए आतंकवादी तैयार करता है। भारत के रक्षा मंत्री एके एंटनी ने तीन दिन चलने वाले सेना कमॉडर्स कांफ्रेंस का शुभारम्भ करते हुए कहा कि पाक अधिकृत कश्मीर में आतंकवादियों के प्रशिक्षण शिविर बदस्तूर जारी हैं। घाटी में बर्प पिघलने के साथ ही सीमा पार से आतंकी घुसपैठ का प्रयास करेंगे जिन पर निगरानी रखना और उनके मंसूबों को नाकाम करना सतर्पता और तत्परता से ही सम्भव होगा। भारतीय सैन्य सूत्रों के अनुसार इस समय 54 आतंकी प्रशिक्षण  शिविर सीमा पार चलाए जा रहे हैं। 32 आतंकी संगठन सक्रिय हैं जो पाकिस्तान से अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर आतंकवाद फ़ैला रहे हैं। इन कैम्पों का संचालन हिजबुल मुजाहिद्दीन, हरकत-उल-मुजाहिद्दीन, अल-बदर मुजाहिद्दीन, हरकत-उल अंसार, लश्कर-ए-तैयबा तथा जैश-ए-मुहम्मद के हाथों में है। यह खुलासा एक साथ कई चीजें बताते हैं। पाकिस्तानी इलाके में हर ड्रोन हमले के बाद पाकिस्तान इस बात पर हंगामा करता है कि यह उसकी सप्रभुत्ता का उल्लंघन है। जाहिर है कि यह हंगामा महज एक नौटंकी है, नाटक है। लेकिन यह कोई नई बात नहीं, क्योंकि सारा विश्व जानता है कि पाकिस्तान इस कला में महारथ हासिल कर चुका है। इससे यह भी साबित होता है कि पाकिस्तान पाक अधिकृत कश्मीर में चल रहे आतंकी शिविरों की जानकारी अमेरिका को बाकायदा दे चुका है और अमेरिका एक सोची-समझी रणनीति के तहत इन शिविरों पर हमला करने से बच रहा है। दुनियाभर से `वॉर ऑन टेरर' चलाने वाले अमेरिका ने उसे जानबूझ कर आतंकी शिविरों को चलाने का लाइसेंस दे रहा है। यह वही अमेरिका है, जिसने भारत से आग्रह किया था कि वह उत्तरी सीमा से तनाव कम करे, ताकि पाकिस्तानी सेना अफगान सीमा पर सारा ध्यान  केंद्रित कर सके। भारत ने कई बार पाक अधिकृत शिविरों पर हवाई हमले का प्लान बनाया पर अमेरिका ने भारत को ऐसा करने नहीं दिया। जो बात इतने सालों में अमेरिका पाकिस्तान के बारे में समझ नहीं सका वह यह है कि पाकिस्तान अमेरिका सहित शेष दुनिया से डबल गेम खेलता है। जो भी हथियार, पैसा अमेरिका पाकिस्तान को तालिबान  से लड़ने के लिए देता है उसका इस्तेमाल भारत के खिलाफ ही होता है। यही नहीं, हमें कोई आश्चर्य नहीं होगा कि किसी स्टेज पर यह खुलासा हो कि इन पाक अधिकृत शिविरों में आईएसआई ने तालिबान लड़ाकों को भी छिपा रखा है ताकि वह सुरक्षित रहें? दुखद पहलू तो यह है कि अमेरिका सब कुछ जानते, समझते हुए भी कि पाकिस्तान डबल गेम खेलता है फिर भी वह पाकिस्तान की मदद करने से बाज नहीं आता पर अमेरिका की नीति और आतंक की परिभाषा साफ है। वह अफगानिस्तान में सिर्प अपनी लड़ाई लड़ रहा है और समझता है कि इसमें पाकिस्तान की मदद के बगैर वह सफल नहीं हो सकता। उसे पाक-भारत रिश्तों की कोई चिन्ता नहीं है। बस उसके सामने तो एक ही लक्ष्य है कि अफगानिस्तान से बाहर कैसे निकले, चाहे इसकी कोई भी कीमत क्यों न देनी पड़े। कसूर तो भारत सरकार का है जो बार-बार अमेरिकी दबाव में आ जाती है और इन आतंकी शिविरों को हाथ तक नहीं लगाती। पाकिस्तान के दोनों हाथों में लड्डू हैं।

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