Sunday 14 April 2013

29 साल से न्याय नहीं मिला 84 के दंगा पीड़ित परिवारों को



 Published on 14 April, 2013 
 अनिल नरेन्द्र 
 29 साल पुराने पुल बंगश गुरुद्वारा दंगा मामले में कांग्रेसी नेता जगदीश टाइटलर को तीन सिखों की हत्या के मामले में सीबीआई की क्लीन चिट और मजिस्ट्रेट कोर्ट द्वारा क्लोजर रिपोर्ट को स्वीकार करने वाले आदेश को बुधवार को सत्र अदालत ने खारिज कर दिया। इस पकार 1984 को हुए 29 साल पुराने मामले में टाइटलर एक बार फिर फंसते नजर आ रहे हैं। दिलचस्प बात यह है कि 29 साल पुराने इस मामले में टाइटलर को तीन बार राहत मिली है और तीन बार दोबारा मुकदमे की जांच के आदेश दिए जा चुके हैं। सीबीआई हर बार पुख्ता साक्ष्य न होने की दलील पेश करती है। बुधवार को कड़कड़डूमा अदालत में अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश अनुराधा शुक्ला भारद्वाज ने सीबीआई की उस क्लोजर रिपोर्ट को खारिज कर दिया जिसमें जगदीश टाइटलर को क्लीन चिट दी गई। अदालत ने कहा कि सीबीआई अमेरिका में रह रहे उन तीनों लोगों का बयान दर्ज करने को बाध्य है जिसके बारे में एक गवाह ने कहा था कि वे भी घटनास्थल पर मौजूद थे। अदालत ने कहा कि गवाह का जिस वक्त बयान दर्ज किया जा रहा था चाहे वह सच हो या झूठ, जांच एजेंसी की बाध्यता थी कि उन लोगों के बयान दर्ज करती या कम से कम उनसे पूछताछ ही कर लेती। अदालत ने यह भी कहा हम जानते हैं कि सीबीआई को अधिकार है कि वह इस निष्कर्ष पर पहुंच सकती है कि गवाह झूठे थे और विश्वास योग्य नहीं थे और इस तरह वह मुद्दे पर अपना विचार रखकर क्लोजर रिपोर्ट दायर कर सकती थी। लेकिन जांच एजेंसी को उन गवाहों के बयान दर्ज नहीं करने का कोई अधिकार नहीं है और इस तरह एजेंसी ने अदालत को गवाहों की विश्वसनीयता के बारे में अपना विचार तय करने से रोका। न्यायालय ने इस निर्णय के बाद याचिकाकर्ता लखविंदर कौर ने उम्मीद जताई है कि उन्हें न्याय मिलेगा। आदेश की जैसे ही सूचना मिली अदालत परिसर के बाहर खड़े सिख समुदाय के लोगों ने जश्न मनाना शुरू कर दिया। उल्लेखनीय है कि 1984 में तत्कालीन पधानमंत्री इंदिरा गांधी की निर्मम हत्या के बाद दंगा किया गया था। सरकारी आंकड़ों के अनुसार लगभग 3000 सिख हिंसा के शिकार हुए। अन्य संबंधित सिख संगठनों के अनुसार मरने वाले सिखों की संख्या 5000 से अधिक है। इतना बड़ा दंगा होने के बावजूद हमें सबसे ज्यादा हैरानी अदालतों पर हुई। सुपीम कोर्ट आए दिन गुजरात दंगों जिनमें मरने वालों की संख्या लगभग 950 थी। दिल्ली के 84 के दंगों में मरने वालों की संख्या 3000 से अधिक थी। सुपीम कोर्ट ने गुजरात दंगों के संदर्भ में कुल नौ केसों की जांच करने का जिम्मा विशेष जांच दल को सौंपा था। इनमें से छह मामलों का फैसला आ चुका है। इन दंगों के लिए पूर्व मंत्री माया कोडनानी, बजरंग दल के लीडर बाबू बजरंगी समते को एक ही केस नरोडा पाटिया में 31 को स्पेशल कोर्ट ने सजा दी है। दर्जनों अफसर जिनमें सीनियर अफसर भी शामिल हैं को सजा हो चुकी है पर सुपीम कोर्ट ने आज तक 84 के भयंकर शर्मनाक दंगों पर एक भी जांच करने के लिए कोई कदम नहीं उठाया? क्यों? बस मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी को कठघरे में खड़ा कर दिया जाता है। बीते तीन दशक से न्याय के लिए संघर्षरत लखविंदर जैसों की अनवरत संघर्ष यात्रा, संगठित सियासी, साम्पदायिक हिंसा की घटनाओं के संदर्भ में कानून, न्यायालयों की बेचारगी की एक केस स्टडी है। गुजरात दंगों के बाद मोदी सरकार ने जांच में अदालतों की जांच कमीशनों की हर सम्भव मदद की पर 1984 के दंगों में आज तक किसी की जवाबदेही तय नहीं हो सकी। चार-पांच गुंडे किस्म के किमिनलों को सजा करवा कर मामला रफा-दफा हो गया। कांस्टेबल से लेकर पुलिस आयुक्त तक किसी एक के भी खिलाफ न तो जांच हुई और न ही सजा। जगदीश टाइटलर कसूरवार हैं या नहीं यह तो पता नहीं पर वह भी तंग आ चुके होंगे। सुपीम कोर्ट को चाहिए कि वह इस मामले को अपने हाथों में ले और अपनी निगरानी में नए सिरे से विशेष जांच दल से जांच करवाए ताकि यह मामला एक बार जड़ से खत्म हो, पीड़ित परिवारों को न्याय मिले और कसूरवार चाहे जो भी हो को सजा। जो सीबीआई पहले ही तीन बार क्लोजर रिपोर्ट दे चुकी है उसकी जांच कैसी होगी, अनुमान लगाना मुश्किल नहीं।

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