Tuesday 30 April 2013

सरबजीत की जान को खतरा हमेशा था, भारत सरकार सोती रही




 Published on 30 April, 2013 
 अनिल नरेन्द्र 
 पंजाब के भिखीविंड निवासी सरबजीत सिंह ने लाहौर की कोट लखपत जेल में अपनी जान पर आए गम्भीर खतरे के बारे में पहले ही बता दिया था। कुछ महीने पहले लाहौर से अपने वकील के जरिए बहन दलबीर कौर को भेजे पत्र में उसे लिखा था, जेल में मेरी जान को हर वक्त खतरा है। मुझे शक है कि `स्लो पायजन' देकर या हमला करके पाकिस्तानी मुझे जेल में ही मार देंगे। सरबजीत की आशंका सही साबित होती लग रही है। शुक्रवार को लाहौर की सेंट्रल जेल में सरबजीत सिंह पर पांच पाकिस्तानी कैदियों द्वारा ईंट और प्लेट से हमला किया गया। ताजा खबर के अनुसार सरबजीत सिंह गहन बेहोशी (कोमा) की हालत में है  और उसे जीवनरक्षक प्रणाली (वेंटिलेटर) पर रखा गया है। चिकित्सकों ने शनिवार को बताया कि सरबजीत (49) की हालत स्थिर होने तक वे उनकी सर्जरी करने में सक्षम नहीं होंगे। पाकिस्तानी उच्चायोग ने सरबजीत के परिवार के चार सदस्यों के लिए वीजा जारी किया ताकि वे लाहौर के एक अस्पताल में भर्ती सरबजीत से मिल सके। सरबजीत की पत्नी सुखप्रीत कौर, बेटिया पूनम और स्वपनदीप कौर व बहन दलबीर कौर रविवार को लाहौर रवाना हो गई हैं। उन्हें 15 दिन का वीजा दिया गया है। सरबजीत की बहन दलवीर कौर ने बताया कि उन्हें सरबजीत पर हुए इस कातिलाना हमले की खबर पाकिस्तान के एक रिपोर्टर ने दी। पाक सरकार ने दोपहर में हुई घटना की जानकारी परिवार को देना मुनासिब नहीं समझा। अपने भाई पर इस हमले से दुखी बहन ने कहा कि संसद हमले के दोषी अफजल गुरू को फांसी पर लटकाए जाने के बाद उनके भाई की जान को खतरा था। अफजल की फांसी से नाराज पाकिस्तानी कैदियों ने कई बार सरबजीत को जान से मारने की धमकी दी थी। मैंने संप्रग अध्यक्ष सोनिया गांधी और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से अपील की थी कि वे भारतीय उच्चायोग के अधिकारियों को सरबजीत की कड़ी सुरक्षा करने के लिए कहें। 49 वर्षीय सरबजीत को 1990 में पाक के पंजाब में हुए धमाके में शामिल होने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। धमाके में 14 लोगों की मौत हुई थी। सरबजीत को फांसी की सजा सुनाई गई थी। राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी के हस्तक्षेप के चलते फांसी की सजा लटकी हुई है। पाकिस्तान के मानवाधिकार कार्यकर्ता अंसार बर्नी ने कहा कि यह सरबजीत को जेल में मरवाने की साजिश है ताकि उसका कत्ल हो जाए और रिहा न करना पड़े। उसकी उम्र कैद की अवधि निकल चुकी है इसके बाद उसे फांसी नहीं दी जा सकती। कोट लखपत जेल में 4000 कैदियों को रखने की क्षमता है। लेकिन फिलहाल वहां 17000 से अधिक कैदी बन्द हैं। इसी जेल में 15 जनवरी को भारतीय कैदी चमेल सिंह पर भी हमला हुआ था जिससे उनकी मौत हो गई थी। चमेल को जेल सुरक्षाकर्मियों ने पीट-पीट कर मारा डाला था। दुःख से कहना पड़ता है कि भारत सरकार ने सरबजीत को बचाने के लिए कोई भी प्रयास नहीं किए। खासतौर पर जब 15 जनवरी को चमेल सिंह की इसी जेल में हत्या कर दी गई थी तो भारत सरकार को इस मामले को प्रभावी ढंग से उठाना चाहिए था। भारतीय सैनिकों के सिर काट दिए जाएं, पाक जेलों के अन्दर मार दिया जाए। भारत सरकार की मजाल है कि वह एक शब्द भी अपने नागरिकों के लिए मुंह से निकालें। अगर सरबजीत की मौत होती है तो इसमें भारत सरकार कम दोषी नहीं होगी।

No comments:

Post a Comment