Friday, 26 April 2013

सोनिया गांधी की आक्रामक शैली : न इस्तीफा देंगे और न ही जवाब देंगे




 Published on 26 April, 2013 
 अनिल नरेन्द्र 

कोयला आवंटन घोटाले और सीबीआई जांच में सरकारी हस्तक्षेप को लेकर एक बार फिर संसद में कोहराम मचा है। इस मुद्दे पर सत्ता पक्ष और विपक्ष पूरी तरह आमने-सामने खड़े हो गए हैं। आक्रामक तेवर अपनाते हुए मुख्य विपक्षी दल भाजपा ने प्रधानमंत्री और कानून मंत्री का इस्तीफा मांगा तो संप्रग अध्यक्ष सोनिया गांधी ने भी उसी आक्रामकता के साथ खुद सामने आकर मांग खारिज कर दी। संसद में उठी पीएम और कानून मंत्री के इस्तीफे की मांग को सोनिया गांधी ने सिरे से खारिज करते हुए कहा कि उन्हें इस्तीफा मांगने दो, आप इनको जवाब दें। संकेत मिलते ही संसदीय कार्य मंत्री कमलनाथ ने भी कहा कि भाजपा तो हर वक्त किसी न किसी का इस्तीफा मांगती रहती है। हमें सोनिया गांधी के हिटलरी फरमान पर आश्चर्य नहीं हुआ। जब तक श्री प्रणब मुखर्जी कांग्रेस में थे संकटमोचक बनकर वह विपक्ष के टकराव से बचा लेते थे। कुछ विपक्ष की बात मानकर, कुछ उसे  समझाकर पर जब से वह राष्ट्रपति बने हैं और सोनिया गांधी ने संसद में पार्टी और सरकार की कमान सम्भाली है वह इसी तरह के हिटलरी अन्दाज में बोलती हैं। हमने देखा कि किसी तरह 2जी घोटाले में भी उन्होंने ऐसा ही रुख अख्तियार किया, जब कोयला आवंटन घोटाला सामने आया तब भी यही किया। आखिर ताजा टकराव इस स्थिति तक पहुंचा क्यों? सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में सीबीआई ने जो जवाबी रिपोर्ट तैयार की थी उसे सुप्रीम कोर्ट में दाखिल होने से पहले कानून मंत्री अश्वनी कुमार ने मंगवा लिया और उसमें कुछ परिवर्तन किया, ऐसा आरोप भाजपा ने लगाया है। पहले तो सरकार इसे मानने को ही तैयार नहीं थी पर बाद में यह माना कि मंत्री ने रिपोर्ट को देखा। संसदीय कार्य मंत्री कमलनाथ ने फिर कहा कि अश्वनी कुमार ने तो रिपोर्ट इसलिए मंगाई थी ताकि उसमें कोई ग्रामेटिकल (व्याकरण) की कोई गलती न हो। हमें नहीं पता था कि सीबीआई में ऐसे अफसर बैठे हैं जो अनपढ़ हैं जिन्हें व्याकरण भी नहीं आता? खैर! जब विपक्ष ने बहुत दवाब डाला तो सरकार सदन में इस पर चर्चा करने को तैयार हो गई। राज्यसभा में जब यह विषय आया तो कानून मंत्री अश्वनी कुमार जो उस समय तक सदन में बैठे थे, ऐन मौके पर खिसक गए और इस पर चर्चा न हो सकी। अब विपक्ष अगर प्रधानमंत्री से यह कह रहा है कि अश्वनी कुमार को बर्खास्त करो तो इसमें गलत क्या है? अगर संसद की कार्यवाही बाधित होती है तो इसकी सीधी जिम्मेदारी सत्ता पक्ष पर आती है। कोयला आवंटन में संसद में तो घिरी सरकार को सुप्रीम कोर्ट में भी जवाब देना पड़ेगा। सरकार की मुसीबतें सुप्रीम कोर्ट में भी बढ़ सकती हैं। ताजा घटनाक्रम को देखते हुए सीबीआई भी कठघरे में खड़ी है। जाहिर है कि वह सुप्रीम कोर्ट को संतुष्ट करना चाहेगी कि मामले की शुरुआती जांच में मिले तथ्यों के साथ कोई छेड़छाड़ नहीं की गई, किसी को बचाने का प्रयास नहीं कर रही, इसलिए वह बचाव  का रुख अख्तियार करेगी। सम्भव है कि सुप्रीम कोर्ट कहे कि आप दोनों रिपोर्टें पेश करें अगर कोई संशोधन किया गया है? सुप्रीम कोर्ट दोनों रिपोर्टों की जांच कर तय कर सकेगा कि रिपोर्टों के साथ छेड़छाड़ की गई है या नहीं? सीबीआई निदेशक रंजीत सिन्हा कोर्ट को बता चुके हैं कि कोयला आवंटन में अनियमितताओं की जांच रिपोर्ट किसी से साझा नहीं की गई है। अब अदालत में क्या स्टैंड लेते हैं। सुप्रीम कोर्ट में इसके अलावा भी सरकार की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। कोयला मंत्रालय की ओर से अदालत में दाखिल किए गए हलफनामे में आवंटन प्रक्रिया में पारदर्शिता अपनाए जाने को लेकर कोई पुख्ता दलील नहीं दी गई है। सरकार ने स्वयं माना है कि आवंटित 218 कोयला ब्लॉकों में से अभी तक महज 35 में ही कोयला उत्पादन शुरू हो सकता है। कोयला ब्लॉक आवंटन में हुईं  अनियमितताओं का मामला वैसे भी सुप्रीम कोर्ट में चल रहा है। मामले पर 30 अप्रैल को सुनवाई होनी है। मंत्रालय ने आवंटन प्रक्रिया का ब्यौरा पेश करते हुए सारी जिम्मेदारी राज्य सरकारों और क्रीनिंग कमेटी के कंधे पर डालने की कोशिश की है, जिनकी सिफारिश पर आवंटन किया गया। इस तरह सरकार ने एक साथ तीन मोर्चे खोल लिए हैं ः संसद, सुप्रीम कोर्ट और राज्य सरकारें। सोनिया गांधी कहती हैं कि न इस्तीफा देंगे, न जवाब देंगे और लड़ेंगे।


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