Thursday 25 April 2013

उल्टा पड़ गया परवेज मुशर्रफ वतन वापसी का दांव



 Published on 25 April, 2013 
 अनिल नरेन्द्र 
पाकिस्तान के पूर्व तानाशाह जनरल परवेज मुशर्रफ पता नहीं क्या-क्या सोच कर वापस अपने वतन  लौटे थे? जब से उनकी वापसी हुई है तब से उनकी राह में एक के बाद एक रोड़ा खड़ा हो गया है। उनकी समस्याएं बद से बदतर होती जा रही हैं। अपना स्वनिर्वासन समाप्त कर जब वो पाकिस्तान पहुंचे तो कराची की एक कोर्ट में उन पर जूता फेंका गया। जिस समय यह जूता फेंका गया उस समय कोर्ट का कारिडोर खचाखच भरा हुआ था। इस घटना के बीते बमुश्किल से एक सप्ताह हुआ था कि सुप्रीम कोर्ट ने उन पर देशद्रोह के आरोप में मुकदमा चलाने की शुरुआत कर दी। फिर पाकिस्तान के इलेक्शन ट्रिब्यूनल ने उनके संसद पहुंचने की दौड़ पर ही ब्रेक लगा दिया। ट्रिब्यूनल ने साफ आदेश दिया कि वो चुनाव नहीं लड़ सकते। अभी उनके चुनाव न लड़ पाने का शोरगुल थमा भी नहीं था कि इस्लामाबाद की एक अदालत ने उनकी गिरफ्तारी का रास्ता साफ करते हुए उनकी जमानत याचिका ही खारिज कर दी। स्थिति यह बन गई कि गिरफ्तारी होने से पहले उन्हें अपने पाकिस्तानी रेंजर्स के घेरे में कोर्ट से भागना पड़ा। आज वह अपने महलनुमा फार्म हाउस में दो कमरों में नजरबंद हैं। उनके परिजनों, निजी स्टाफ और वकीलों से मिलने पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया है। इस पांच एकड़ के फार्म हाउस को उप-जेल में पहले ही तब्दील किया जा चुका है। 69 वर्षीय पूर्व सेना प्रमुख को एंटी टेरोरिज्म कोर्ट ने 15 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया है। इस तरह की कार्रवाई का सामना करने वाले परवेज मुशर्रफ देश के पहले सेना प्रमुख हैं। फार्म हाउस के चारों तरफ 15 फुट ऊंची दीवारें हैं। इसमें दो कमरे बम प्रूफ हैं। इसकी लागत दो मिलियन डॉलर आंकी गई है। आज अगर मुशर्रफ अपने आपको इस स्थिति में पा रहे हैं तो काफी हद तक यह स्वयं इसके जिम्मेदार हैं। जो बोया है वही काट रहे हैं। इसके बीज उन्होंने खुद ही बोए थे। मुशर्रफ ने 1999 में एक निर्वाचित सरकार का तख्ता पलट करके तानाशाही कायम की और आगे चलकर जनमत संग्रह के बहाने अपनी सत्ता को वैधता का एक मुखौटा पहनाया। 2001 में वह राष्ट्रपति बने और 2008 तक इस पद पर बने रहे। इस दौरान उन्होंने कई कदम उठाए जो अब उन पर भारी पड़ रहे हैं। सैन्य प्रमुख रहते हुए जनरल मुशर्रफ ने प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की निर्वाचित सरकार का तख्ता पलट किया। यही वजह है कि पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ अब भी मुशर्रफ के खिलाफ राजद्रोह और संविधान का उल्लंघन करने के आरोप में मुकदमा चलाने की मांग कर रहे हैं। आपातकाल के दौरान ही इस्लामाबाद में सुप्रीम कोर्ट की इमारत में सेना घुसी और उसने करीब 60 जजों को हिरासत में लिया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश इफ्तिखार मोहम्मद चौधरी भी थे। इन न्यायाधीशों को बर्खास्त कर दिया गया। मुशर्रफ की गिरफ्तारी का आदेश न्यायाधीशों को हिरासत में रखे जाने के मामले में ही आया है। 2009 में एक वकील ने देश में आपातकाल लागू करने और न्यायाधीशों को हिरासत में लेने के लिए मुशर्रफ के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करने की मांग की थी। 2007 में देश में आपातकाल थोप कर सरकारी टेलीविजन और रेडियो स्टेशनों में भी सेना काबिज हो गई। स्वतंत्र चैनलों का प्रसारण भी रोका गया। इन सबको लोकतंत्र की हत्या माना गया। हत्या के आरोप भी उन पर लगे हुए हैं। 2007 में जिस समय पूर्व प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो की हत्या हुई उस समय पाक सेना की कमान मुशर्रफ के हाथों में थी। इससे पहले वर्ष 2006 में बलूच नेता नवाब अकबर बुग्ती की संदेहास्पद परिस्थितियों में मौत हुई तब भी मुशर्रफ की ओर अंगुली उठी। भुट्टो के मामले में मुशर्रफ पर आरोप लगा कि खतरे से वाकिफ रहने के बावजूद उन्होंने बेनजीर की सुरक्षा के लिए पर्याप्त इंतजामात नहीं कराए। इस्लामाबाद की लाल मस्जिद पर 2007 में सैनिक कार्रवाई हुई थी इसमें भी मुशर्रफ को कसूरवार और हुक्म देने वाला माना गया। इस मामले में भी मुशर्रफ को अदालत में पेश होना पड़ेगा। अगस्त 2008 में गठबंधन सरकार ने मुशर्रफ पर महाअभियोग की प्रक्रिया शुरू करने की बात कही। भारी दवाब में मुशर्रफ अगस्त 2008 में राष्ट्रपति पद से इस्तीफा देकर खुद देश छोड़कर चले गए। लंदन में करीब साढ़े चार साल के स्वनिर्वासन को खत्म करते हुए चुनाव में भाग लेने के लिए मुशर्रफ 24 मार्च को कराची पहुंचे। इस तरह है कुछ परवेज मुशर्रफ की `अर्श से फर्श' तक की दास्तान।

No comments:

Post a Comment