Saturday 20 April 2013

भाग परवेज मुशर्रफ भाग ः पाकिस्तान की बढ़ती चिंताएं



 Published on 20 April, 2013 
 अनिल नरेन्द्र 
पाकिस्तान में पहली बार असैनिक सरकार ने अपना कार्यकाल पूरा किया है और अब दूसरी नागरिक सरकार को चुनने के लिए आम चुनाव की सरगर्मियां तेज हो गई हैं। ज्यादातर समय सैन्य सरकार की तानाशाही के तहत रहे देश के लिए यह एक छोटी उपलब्धि नहीं है। इसमें कोई संदेह नहीं कि यह अपने आप में एक सकारात्मक घटना है। इसका श्रेय जाता है पाकिस्तान के राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी के राजनीतिक कौशल को। बेनजीर भुट्टो की छाया से निकलकर वह एक घाघ राजनेता के रूप में उभरे हैं। साम, दाम, दंड, भेद का इस्तेमाल करते हुए उन्होंने अन्य राजनीतिक दलों और नेताओं को साधने में सफलता हासिल की है पर आम चुनाव से पहले पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ के पाकिस्तान लौटने से एक नई स्थिति बनती जा रही है। परवेज मुशर्रफ के पाकिस्तान लौटने से सिवाय सेना के और सभी खिलाफ थे। पर लगता है कि सेना और मुशर्रफ में कोई गुप्त समझौता हुआ है। सेना को छोड़कर पाकिस्तान में सभी सरकारी एजेंसियां, अदालतें उनके खिलाफ हैं। आज की तारीख में जनरल परवेज मुशर्रफ शायद पाकिस्तान के सबसे दुखी व्यक्ति होंगे। उन्होंने आम चुनाव के लिए चार जगहों से नामांकन पत्र दाखिल किया और चारों जगहों से यह खारिज हो गए। अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग कारण दिए गए कहीं उनके हस्ताक्षर नहीं मिले, तो कहीं दलील दी गई कि वह बेनजीर भुट्टो और बलूच नेता अकबर बुश्ती की हत्याओं समेत चार मामलों में अभियुक्त हैं। पाकिस्तान बचाने का नारा देकर देश लौटे मुशर्रफ इस समय अपने फार्म हाउस में नजरबंद हैं। हाईकोर्ट ने 2007 में आपातकाल लगाने, चीफ जस्टिस को बर्खास्त करने और 60 जजों को नजरबंद करने के मामले में मुशर्रफ की जमानत खारिज कर उन्हें गिरफ्तार करने के आदेश बृहस्पतिवार को दिए। बिल्कुल फिल्मी अंदाज में जनरल परवेज मुशर्रफ इस्लामाबाद हाईकोर्ट से जमानत अर्जी खारिज और गिरफ्तारी के आदेश सुनते ही भाग खड़े हुए। अदालत से सैनिक सुरक्षा टीम के कवच में भागकर अपने किलेनुमा फार्म हाउस में जा छिपे। मुशर्रफ को वहीं नजरबंद किया गया। मुशर्रफ के वकील उन्हें बचाने के लिए सुपीम कोर्ट भी पहुंचे पर वहां उनकी याचिका दाखिल नहीं हो सकी। पुलिस ने उनके फार्म हाउस की घेराबंदी कर ली है और फरार माने जा रहे मुशर्रफ की सुरक्षा में लगे पाकिस्तानी रेंजर के जवान वापस बुला लिए गए। कहना पड़ेगा कि मुशर्रफ ने कानून का पालन करने वाले एक जिम्मेदार नागरिक और एक पूर्व राष्ट्रपति व रिटायर्ड सेना पमुख की तरह आचरण नहीं किया। उन्होंने एक भगोड़े या एक ऐसे व्यक्ति के रूप में आचरण किया जो खुद को कानून से ऊपर समझता है। सच्चाई तो यह है कि जनरल जहांगीर करामात को छोड़कर पाकिस्तान के तमाम सैन्य पमुख खुद को न केवल कानून से ऊपर बल्कि खुद अपने आपको कानून समझते रहे हैं। आज पाकिस्तान सहित सारी दुनिया बड़ी उत्सुकता से देख रही है कि अब वर्तमान सैन्य पमुख जनरल कयानी, न्यायपालिका और कार्यवाहक सरकार क्या कदम उठाती है? कहा तो यह भी जाता है कि मुशर्रफ के पाकिस्तान लौटने से सेना पहले ही असहज महसूस कर रही है और उसमें उनके पति कोई हमदर्दी दिखाई नहीं देती। वह मुशर्रफ को विदेश में देखना ही पसंद करती है। यह भी सही है कि सेना न्यायपालिका को भी पसंद नहीं करती। ताजा घटनाकम में पाकिस्तानी सेना व पाकिस्तान की अदालतें आमने-सामने आ गई हैं क्योंकि मुशर्रफ को जो सुरक्षा कवच दिया गया है वह सेना द्वारा ही दिया गया है। पाकिस्तानी सेना बनाम पाकिस्तानी पुलिस में टकराव की स्थिति पैदा करने में मुशर्रफ कामयाब होते दिख रहे हैं। अब देखना यह होगा कि आगे क्या होता है? यह इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि आम चुनाव सर पर हैं और इस घटनाकम का सीधा असर आम चुनावों पर पड़ सकता है। एक बार फिर पाकिस्तान में लोकतंत्र खतरे में पड़ सकता है।

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