Sunday, 30 December 2012

13 दिन-रात जद्दोजहद के बाद अभागी छात्रा ने दम तोड़ा


 Published on 30 December, 2012
 अनिल नरेन्द्र
दिल्ली गैंगरेप की अभागी छात्रा ने 13 दिन जिन्दगी-मौत की लड़ाई लड़ने के बाद शनिवार सुबह अपने प्राण त्याग दिए। सिंगापुर के विश्व प्रसिद्ध एलिजाबेथ अस्पताल में डाक्टरों के तमाम प्रयासों के बावजूद उस बेचारी को बचाया नहीं जा सका। शुक्रवार से ही उसकी तबीयत बिगड़नी शुरू हो गई थी। शुक्रवार रात को उसके महत्वपूर्ण अंगों के निक्रिय होने के संकेत मिलने लगे थे। माउंट एलिजाबेथ अस्पताल के मुख्य कार्यकारी अध्यक्ष केल्विन लोह ने एक बयान में कहा कि रात को नौ बजे (भारतीय समयानुसार शाम साढ़े छह बजे) मरीज की स्थिति और बिगड़ गई है, उसके महत्वपूर्ण अंगों के निक्रिय होने से वह निहायत क्रिटिकल स्टेज में है। कटु सत्य तो यह है कि उस बेचारी के बचने की कोई उम्मीद नहीं थी। टेक्निकल दृष्टि से उस बेचारी की मृत्यु तो सफदरजंग अस्पताल में ही हो गई थी। यह सारा ड्रामा तो सरकार ने रिएक्शन कंट्रोल करने हेतु रचा। अब जब उस छात्रा की मृत्यु हो गई है, उसे एकाएक सिंगापुर भेजने का सरकार का फैसला भी सवालों के घेरे में आ जाएगा। खुद डाक्टरों ने सरकार के इस फैसले पर अंगुली उठानी शुरू कर दी है। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार सफदरजंग अस्पताल में भर्ती 23 वर्षीय गैंगरेप पीड़िता को इलाज के लिए सिंगापुर भेजने के पीछे मेडिकल कारण कम और राजनीतिक कारण ज्यादा नजर आ रहे हैं। अखबार के अनुसार जब सामूहिक दुष्कर्म की शिकार पीड़िता को सिंगापुर शिफ्ट करने का फैसला लिया गया तो इलाज कर रहे डाक्टरों से बस इतना पूछा गया कि क्या पीड़िता सिंगापुर जाने की स्थिति में है? सरकार ने इलाज कर  रहे डाक्टरों की विशेषज्ञ टीम से यह नहीं पूछा कि सिंगापुर शिफ्ट किया जाए या नहीं? या फिर सिंगापुर में वह इलाज होगा जो भारत में नहीं हो सकता। डाक्टरों की एक्सपर्ट टीम में एम्स, गोबिंद बल्लभ पंत हॉस्पिटल और सफदरजंग हॉस्पिटल के डाक्टर शामिल थे। डाक्टरों ने आरोप लगाया कि सरकार फैसला ले चुकी थी कि पीड़िता को सिंगापुर भेजा जाए। डाक्टरों का दावा है कि हम पिछले 11 दिनों से मरीज को बेहतर चिकित्सा दे रहे थे। रिपोर्ट के अनुसार पीड़िता को सिंगापुर भेजने का निर्णय डाक्टरों का नहीं था बल्कि सरकार की तरफ से लिया गया फैसला था। दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल ने तो आंत का ट्रांसप्लांट का ऑफर तक दिया था। भारत में डाक्टरों की प्रसिद्धि विश्वभर में मशहूर है। हजारों विदेशी भारत में अपना इलाज करवाने के लिए आते हैं। सिंगापुर शिफ्ट करने का फैसला राजनीतिक था। सरकार बुरी तरह से डर गई थी कि अगर पीड़िता ने सफदरजंग अस्पताल में दम तोड़ा तो पब्लिक रिएक्शन कंट्रोल करना मुश्किल हो जाएगा। रिएक्शन तो अब भी होगा। हां, एक फर्प जरूर आ गया है कि अब जब छात्रा की मौत हो चुकी है इस निकम्मी, निक्रिय, इंसेंसटिव सरकार के पास अब आरोपियों को फांसी पर न लटकाने का कोई बहाना नहीं बचा। हम पीड़िता के परिवार को बस इतना कहना चाहते हैं कि आज आपके दुख में सारा देश शरीक है और हम प्रार्थना करते हैं कि मृत छात्रा की आत्मा को शांति मिले।





महिलाओं के प्रति असंवेदनशील होता राजनीतिक वर्ग


 Published on 30 December, 2012
 अनिल नरेन्द्र
महिलाओं के खिलाफ अनर्गल टिप्पणियां करना राजनेताओं की आदत-सी बन  गई है। आए दिन यह नेतागण कुछ न कुछ बकवास करने से बाज नहीं आते। इस लम्बी श्रृंखला में ताजा नाम राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के बेटे व कांग्रेस सांसद अभिजीत मुखर्जी का जुड़ गया है। उन्होंने यह टिप्पणी ऐसे समय की जब समूचा देश दिल्ली में एक दुष्कर्म की नृशंस घटना के खिलाफ आक्रोश से भरा हुआ है। सुनिए अभिजीत साहब क्या कहते हैं, `दिल्ली में गैंगरेप के विरोध में प्रदर्शन कर रहीं महिलाएं मेकअप से रंगी-पुती होती हैं। वे पहले कैंडल मार्च निकालती हैं और रात में डिस्कोथेक पहुंच जाती हैं। वे कहीं से भी छात्राएं नजर नहीं आतीं।' हालांकि अभिजीत की बहन शर्मिष्ठा ने उनके बयान के लिए माफी मांग ली और खुद अभिजीत ने भी टिप्पणी के लिए खेद जताया पर तब तक बहुत देर हो चुकी थी और पूरे देश में इसके खिलाफ आवाजें उठने लगीं। महिला संगठनों ने उनकी टिप्पणी पर कड़ा ऐतराज जताया। अभिजीत ने एक टीवी चैनल पर कहा ः दिल्ली में जो हो रहा है, वह मिस्र या दूसरी जगहों पर हुईं घटनाओं की तरह है, जिसे अरब बसंत कहा गया। लेकिन भारत की जमीनी वास्तविकताएं कुछ और हैं। कैंडल मार्च और डिस्को में जाना एक साथ चलता रहता है। हमने भी छात्र जीवन में ऐसा किया है। लेकिन फिलहाल तो डेंटेड-पेंटेड महिलाएं टीवी इंटरव्यू देती हैं और अपने बच्चों को भी दिखाने के लिए साथ लाती हैं। मुझे संदेह है कि ये छात्र होंगी क्योंकि इस उम्र की महिलाएं पढ़ने नहीं जातीं। इस पर माकपा नेता वृंदा करात ने फौरन कहा कि ऐसे बयान देने वाले सांसदों और विधायकों के खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए। इससे उनकी बीमार और विकृत मानसिकता का पता चलता है। शाहनवाज हुसैन और स्मृति ईरानी ने कहा कि बयान देने से पहले क्यों नहीं सोचा-समझा जाता? इस तरह के बयान देने की कोई हिम्मत कैसे कर सकता है? राष्ट्रपति की बेटी और अभिजीत की बहन शर्मिष्ठा मुखर्जी ने कहा कि मैं बहुत हैरान हूंöएक बहन होने के नाते सारी महिलाओं से शर्मिंदगी महसूस कर रही हूं। इतना तय है कि वे इससे कतई सहमत नहीं हो सकते। हमारा परिवार ऐसा नहीं है। वैसे राजनीतिक वर्ग में महिलाओं के प्रति असंवेदनशील बयानों का सिलसिला भी नया नहीं है। नरेन्द्र मोदी, श्रीप्रकाश  जायसवाल, संजय निरूपम, मुलायम सिंह यादव, ऐसे बयान देने वालों की फेहरिस्त काफी लम्बी है। मोदी ने तो मानव संसाधन राज्यमंत्री शशि थरूर की पत्नी सुनन्दा को 50 करोड़ की गर्लफ्रेंड कह दिया था। हाल में कांग्रेस सांसद संजय निरूपम ने एक टीवी बहस में भाजपा नेता स्मृति ईरानी को कह दियाöकल तक टीवी पर ठुमके लगाती थीं, आज चुनाव विश्लेषक बन गई हैं। महिला आरक्षण बिल का विरोध करते हुए सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव ने एक जनसभा में कहाöबड़े-बड़े घरों की लड़कियां और महिलाएं केवल ऊपर जा सकती हैं... याद रखना आपको मौका नहीं मिलेगा। हमारे गांव की महिला का आकर्षण इतना नहीं है। कोयला मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल ने कानपुर की एक सभा में कहाöपुरानी जीत पुरानी पत्नी की तरह है, जो समय बीतने के साथ-साथ अपना आकर्षण खो बैठती है। तो क्या राजनतीकि वर्ग महिलाओं के प्रति लगातार असंवेदनशील होता जा रहा है या फिर वह अपना असली रंग दिखा रहा है।







Saturday, 29 December 2012

फास्ट ट्रैक कोर्ट यानि जल्द इंसाफ की जमीनी हकीकत

 
 Published on 29 December, 2012
 अनिल नरेन्द्र
चलती बस में गैंगरेप की घटना के बाद सरकार ने रेप के मामलों में फास्ट ट्रैक कोर्ट बनाने का जो फैसला किया है उसका जहां हम स्वागत करते हैं वहीं यह भी जरूर बताना चाहेंगे कि इसको अमल में लाना इतना आसान नहीं। दिल्ली हाई कोर्ट ने दिल्ली की सभी छह अदालतों (डिस्ट्रिक्ट कोर्ट) में पेन्डिंग रेप केसों की डिटेल भी तैयार करा ली है, जिससे इन केसों की सुनवाई फास्ट ट्रैक कोर्ट में डे टू डे आधार पर शुरू कराई जा सके। इसका मुख्य मकसद पीड़ितों को जल्द इंसाफ दिलाना है। फास्ट ट्रैक कोर्ट से तात्पर्य ऐसी कोर्ट से है जिसमें एक खास तरह के केसों की सुनवाई होगी। इस समय मादक पदार्थ की तस्करी से जुड़े केसों के निपटारे के लिए फास्ट ट्रैक  कोर्ट बनाई गई है, लेकिन विडम्बना यह है कि इन सभी फास्ट ट्रैक कोर्ट में इनके अलावा दूसरे केसों की सुनवाई भी होती है। इससे सिर्प नाम का ही फास्ट ट्रैक कोर्ट रह गया है। इन कोर्टों में स्पेशल केसों की जजमेंट में काफी लम्बा समय लग रहा है। गैंगरेप मामले के बाद देशभर में उपजे आक्रोश से सरकार फास्ट ट्रैक कोर्ट बनाकर दुष्कर्म के मामलों का जल्दी से जल्दी निपटारा करने की बात को कह रही है, लेकिन हकीकत यह है कि महज पांच फास्ट ट्रैक कोर्ट बना देने से दुष्कर्म के मामलों का निपटारा सम्भव नहीं होगा। दिल्ली की अदालतों में ऐसे दस हजार से भी ज्यादा मामले लम्बित हैं। वहीं गठित की जा रही पांच फास्ट ट्रैक कोर्ट के पास कम से कम दो-दो हजार मामलों को तुरन्त निपटाने की चुनौती होगी, जो कि आसान नहीं है। इसलिए न्यायिक प्रक्रिया से जुड़े लोग दिल्ली में कम से कम 20 फास्ट ट्रैक अदालतें बनाने की बात कह रहे हैं। दुष्कर्म मामलों के निपटारे के लिए फास्ट ट्रैक कोर्ट की संख्या बढ़ानी होगी। इन कोर्ट को दिल्ली की अदालतों में लम्बित दस हजार से अधिक दुष्कर्म के मामलों का निपटारा करने में कम से कम एक साल का समय लग जाएगा। एक सेवानिवृत अतिरिक्त जिला सत्र न्यायाधीश प्रेम कुमार का कहना है कि दुष्कर्म के प्रत्येक मामले की प्रतिदिन सुनवाई सम्भव नहीं है। अगर आरोपी एक से अधिक हैं तो उनके वकील भी अधिक होंगे। जन आक्रोश को ठंडा करने के लिए सरकार भी फास्ट ट्रैक अदालत या विशेष अदालत का आश्वासन देकर अपने दायित्व की पूर्ति  समझ बैठी है। लेकिन अगर सरकार जजों के स्वीकृत पदों को भरने का वाकई ठोस उपाय करे तो वह शीघ्र अपने संवैधानिक दायित्व को पूरा कर सकती है। जजों के रिक्त पद तथा लम्बित मुकदमों के आंकड़े देश की न्यायिक व्यवस्था की हकीकत बयां करने के लिए काफी हैं। निचली अदालतों में सितम्बर 2011 तक दो करोड़ 73 लाख केस लम्बित थे। इनमें एक करोड़ 95 लाख आपराधिक केस थे। देशभर की जिला अदालतों में जजों के 18 हजार 123 पद स्वीकृत हैं। लेकिन इस समय सिर्प 14 हजार 287 जज कार्यरत हैं यानि तीन हजार 836 पद रिक्त पड़े हैं। जिला अदालतों में दो स्तर पर जज नियुक्त किए जाते हैं। ज्यूडिशियल सर्विस और हायर ज्यूडिशियल सर्विस। ज्यूडिशियल सर्विस में मजिस्ट्रेट और सिविल जज की भर्ती, प्रतियोगी परीक्षाओं के जरिए होती है जबकि अतिरिक्त सत्र एवं जिला न्यायाधीश हायर ज्यूडिशिरी के सदस्य होते हैं। जजों की भारी कमी के कारण अदालतें मुकदमों के बोझ से झुकी जा रही हैं। अगर रेप केसों में हमें प्रभावी फास्ट ट्रैक न्याय देना है तो पहले मौजूदा कमियों को भी पूरा करना होगा तभी हम अपने उद्देश्य में सफल हो सकते हैं। सिर्प घोषणा से काम नहीं होने वाला।

`ठीक है' से ठिकाने लगाए कर्मियों के कारण दूरदर्शन-पीएमओ में ठनी


 Published on 29 December, 2012
 अनिल नरेन्द्र
डॉ. मनमोहन सिंह की सरकार उनका पीएमओ की इन दिनों बौखलाहट का यह आलम है कि एक छोटी-सी घटना पर दूरदर्शन के पांच कर्मचारियों के खिलाफ कार्रवाई के आदेश दे दिए गए हैं। मामला कुछ ऐसा है। प्रधानमंत्री को गत सोमवार को टेलीविजन पर देश की जनता को सम्बोधित करना था। इसके लिए पीएम हाउस पर सुबह 9.30 बजे रिकार्डिंग की जानी थी। आरोप है कि दूरदर्शन के कैमरामैन 9.40 पर जबकि इंजीनियरिंग विभाग के सभी कर्मी 10 बजे के बाद प्रधानमंत्री हाउस पहुंचे। इस कारण पीएम हाउस में पहले से मौजूद टीवी समाचार एजेंसी एएनआई ने पीएम के भाषण की रिकार्डिंग की। बाद में इसे सम्पादित किए बिना ही प्रसारित कर दिया गया और पीएम को संदेश के अन्त में `सब ठीक है' कहते सुना गया। दूरदर्शन के सूत्रों का कहना है कि कर्मचारियों के खिलाफ निलम्बन की कार्रवाई का पीएम के भाषण के गैर सम्पादित ही प्रसारित हो जाने के प्रकरण से कोई लेना-देना नहीं है। उन्हें प्रधानमंत्री हाउस देर से पहुंचने के कारण निलम्बित किया गया है। अधिकारियों का कहना है कि प्रधानमंत्री निवास 7 रेसकोर्स रोड जाने वाले मार्गों पर यातायात प्रतिबंध के चलते दूरदर्शन की रिकार्डिंग टीम समय से नहीं पहुंच सकी। उन्हें पीएमओ ने कुछ ही समय पहले रिकार्डिंग के लिए आने को कहा था। दूरदर्शन के पांच कर्मचारियों के खिलाफ की गई कार्रवाई को लेकर पीएमओ और दूरदर्शन आमने-सामने आ गए हैं। दूरदर्शन के अफसरों का साफ कहना है कि जिस गलती के लिए पांच कर्मचारी सस्पेंड किए गए हैं उसके लिए पीएमओ के अफसर जिम्मेदार हैं। दूरदर्शन के अफसरों का दावा है कि प्रधानमंत्री के भाषण की रिकार्डिंग के लिए निर्धारित प्रोटोकॉल का पालन होता तो इस तरह की गड़बड़ी नहीं होती। इसके लिए वह खासतौर पर प्रधानमंत्री के संवाद सलाहकार यानि कम्युनिकेशन एडवाइजर के रवैये से नाराज हैं। माना जा रहा है कि पीएमओ के एक अधिकारी की जल्दबाजी से सब गड़बड़ हो गई। मगर दिलचस्प बात यह है कि पीएमओ में भी इस तरह की रिकार्डिंग के लिए जिम्मेदार अफसरों को इस दफा विश्वास में नहीं लिया गया। परम्परा है कि राष्ट्रपति व प्रधानमंत्री के देश के नाम संदेश दूरदर्शन ही रिकार्ड करता है। यह सवाल भी उठ रहा है कि इस बार संदेश की रिकार्डिंग एक निजी एजेंसी से क्यों करवाई गई? साथ ही यह दलील भी दी जा रही है कि अगर संदेश को ठीक से सुनकर व सम्पादित करके दिखाया जाता तो इस प्रकार की गड़बड़ी की गुंजाइश नहीं रहती। दूसरी ओर पीएमओ के अधिकारी इसके लिए दूरदर्शन कर्मियों की लेट-लतीफी पर भी सवाल उठा रहे हैं। गफलत कहां हुई यह तो पता नहीं। हां, इसका खामियाजा जरूर उन पांच दूरदर्शन कर्मचारियों को भुगतना पड़ रहा है। वैसे इस घटना से पीएमओ की बौखलाहट भी सामने आती है। दरअसल गैंगरेप के मामले में यह सरकार इतनी कंफ्यूज चल रही है कि हमें आश्चर्य नहीं हुआ कि यह  बौखलाहट उन पांच दूरदर्शन कर्मियों पर जा उतरी।





Friday, 28 December 2012

सिपाही सुभाष तोमर की मौत पब्लिक पिटाई से हुई या हार्टअटैक से?


 Published on 28 December, 2012
 अनिल नरेन्द्र
पिछले दो दिनों से एक नया ही विवाद शुरू हो गया है। दिल्ली पुलिस का अभागा कांस्टेबल सुभाष चन्द्र तोमर की मौत कैसे हुई? उल्लेखनीय है कि रविवार को सामूहिक दुष्कर्म मामले के विरोध में चल रहे प्रदर्शन के दौरान हुई हिंसक झड़प में घायल हुए सुभाष तोमर ने मंगलवार को  सुबह दम तोड़ दिया। पोस्टमार्टम कराने के बाद पूरे पुलिस सम्मान के साथ उनके शव का अंतिम संस्कार कर दिया गया। कांस्टेबल सुभाष चन्द्र तोमर की मौत भीड़ की पिटाई से हुई या धुएं व लाठीचार्ज से मची भगदड़ से लगे सदमे से? दिल्ली पुलिस के आयुक्त नीरज कुमार कहते हैं कि पेट, छाती और गर्दन में चोट के निशान पाए गए हैं। वह रविवार को इंडिया गेट पर उपद्रव का शिकार हुए हैं। दूसरी ओर राम मनोहर लोहिया अस्पताल जहां सिपाही की मौत हुई वहां के चिकित्सक अधीक्षक डॉ. टीएस सिद्धू कहते हैं कि सदमे से सिपाही को हार्ट अटैक आया था। शरीर पर गम्भीर चोट के निशान नहीं थे। इस बीच 47 वर्षीय सिपाही तोमर के पोस्टमार्टम के बाद आई रिपोर्ट में उनकी मौत का एक कारण नहीं बताया गया। राम मनोहर लोहिया अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक डॉ. टीएस सिद्धू ने बताया कि जब तोमर को लाया गया था, उस समय वह मरणासन था और हमारे डाक्टर उसे होश में लाए, क्योंकि उसकी हालत बहुत खराब थी इसलिए हमने उसे गहन चिकित्सा कक्ष में स्थानांतरित कर दिया। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि उनकी मौत किसी पुंद चीज से सीने और गर्दन पर लगी चोटों के कारण दिल का दौरा पड़ने से हुई। पोस्टमार्टम की रिपोर्ट डॉ. सिद्धू के इस बयान के विपरीत है कि कुछ मामूली चोटों के अलावा तोमर को कोई बड़ी बाहरी चोट नहीं थी और न ही कोई गम्भीर अंदरूनी चोट थी। उधर तोमर के पुत्र आदित्य ने कहा कि मेरे पिता की मौत इंडिया गेट पर प्रदर्शनों के दौरान मची अफरातफरी के कारण हुई। प्रदर्शनकारियों ने उन्हें धक्का दिया, उन्हें कुचल दिया। उन्हें अंदरूनी चोटें आईं। उन्हें हृदय संबंधी कोई बीमारी नहीं थी। घटना में एक नया मोड़ तब आया जब घटना के दो चश्मदीद गवाहों ने दावा किया कि तोमर को चोट नहीं आई थी। पत्रकारिता के छात्र व चश्मदीद गवाह योगेन्द्र ने दावा किया ः `मैं अपनी एक महिला मित्र के साथ इंडिया गेट पर था जो घायल हो गई थी। मैंने देखा कि प्रदर्शनकारियों के पीछे एक पुलिसकर्मी भाग रहा है और वह अचानक गिर गया। इसके बाद नजदीक खड़ी पीसीआर वैन उसे अस्पताल ले गई। मैं भी उसी वाहन में गया था। मैंने उसे अस्पताल में देखा और उसके शरीर पर चोट का कोई निशान नहीं था। वह भीड़ द्वारा कुचला नहीं गया और न ही उसे कोई चोट लगी थी। सवाल यह उठता है कि कौन-सी बात से घटनाक्रम को सच माना जाए?' हालांकि इससे जाने वाले को फर्प नहीं पड़ेगा। कारण कोई भी रहा हो, वह अपनी ड्यूटी पर शहीद हुआ।

मोदी की चौथी पारी शुरू


 Published on 28 December, 2012
 अनिल नरेन्द्र
लगातार तीसरी बार जीत का परचम लहराकर बुधवार को नरेन्द्र मोदी खचाखच भरे अहमदाबाद के सरदार पटेल स्टेडियम में गुजरात के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने पहुंचे तो पूरी भाजपा ही नहीं वृहद राजग भी साथ खड़ा दिखा। शपथ लेने से पूर्व विनम्रता से उन्होंने विभिन्न धर्म के संत, मौलवी, महात्मा व ईसाई धर्मगुरुओं से आशीर्वाद लिया और अपनी मां हीरा बा के चरण स्पर्श किए। शपथ ग्रहण समारोह में यूं तो नेताओं का आना एक औपचारिकता होती है, मोदी के इस ग्रांड शो के राजनीतिक अर्थ भी निकाले जा सकते हैं। एक-दो नेताओं को छोड़ दिया जाए तो भाजपा के सभी दिग्गजों के साथ दूसरी पंक्ति के नेता वहां मौजूद थे। वहीं  राजग में जद (यू) को छोड़कर दूसरे सहयोगी ही नहीं पुराने सहयोगी भी साथ नजर आए। तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता और इनेलो के अध्यक्ष ओम प्रकाश चौटाला की मौजूदगी को खास रुचि से देखा जा रहा है। गौरतलब है कि हरियाणा में भाजपा ने जनहित कांग्रेस का हाथ थामा है। फिर भी चौटाला मोदी का जोश बढ़ाने पहुंचे थे। इतना ही नहीं सहयोगी दल शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे आए तो समारोह में मनसे प्रमुख राज ठाकरे भी मौजूद थे। भाजपा के सारे मुख्यमंत्री मौजूद थे। भाजपा से लाल कृष्ण आडवाणी, नितिन गडकरी, सुषमा स्वराज, अरुण जेटली, राजनाथ सिंह समेत शाहनवाज हुसैन, मुख्तार अब्बास नकवी इत्यादि सभी मौजूद थे। राजनीतिक दलों का जमावड़ा इसलिए खासा महत्व रखता है क्योंकि पिछले दिनों में मोदी के प्रधानमंत्री पद की दावेदारी की भी बात उठती रही है। आमतौर पर मोदी की छवि कठोर हिन्दुत्ववादी नेता की रही है ऐसे में किसी मुस्लिम विद्वान से मोदी की तारीफ हो नई बात जरूर है। दारुल उलूम देवबंद की मजलिसे शूरा के सदस्य पूर्व मोहतमिम मौलाना गुलाम मुहम्मद वस्तानवी ने कहा कि गुजरात में मुस्लिम समर्थन के कारण भाजपा को 20 सीटों पर जीत मिली है। गुजरात के सूरत में जन्मे और दीनी और आधुनिक शिक्षण संस्थाओं की लम्बी श्रृंखला चलाने वाले 61 साल के देवबंदी आलिम गुलाम मोहम्मद वस्तानवी ने कहा कि नरेन्द्र मोदी की जीत से गुजरात के मुसलमानों में कोई असुरक्षा का भाव नहीं पैदा हुआ है। गुजरात के मुसलमान पिछले दस सालों से सुकून के साथ जिंदगी बसर कर रहे हैं और अपने कारोबार चला रहे हैं। उन्होंने कहा कि एक दशक के दौरान गुजरात दंगामुक्त रहा है। इस दौरान मुसलमानों की हक तल्फी नहीं हुई है। इसका श्रेय नरेन्द्र मोदी को जाता है। मोदी को प्रधानमंत्री के रूप में प्रोजेक्ट किए जाने संबंधी सवाल को उन्होंने यह कहते हुए टाल दिया कि अभी इसका जवाब देने का वक्त नहीं आया है। उन्होंने कहा कि भाजपा में दिल्ली में इस पद के लिए कद्दावर नेताओं की लम्बी सूची है। हम श्री नरेन्द्र मोदी को गुजरात का तीसरी बार मुख्यमंत्री बनने पर बधाई देते हैं और उम्मीद करते हैं कि वह इस जीत के अहंकार में नहीं आएंगे और जनता की इसी प्रकार सेवा करते रहेंगे और विकास का रास्ता आगे बढ़ाते रहेंगे।



…and Mr. Shinde asks, what justice you want?

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published From Delhi

अनिल नरेन्द्र

Union Minister of Home Affairs says, that why the public is now agitating and holding demonstrations, when most of their demands have already been met? Necessary action is being taken. Effective steps are being taken to amend laws.
Now, what justice they want? We would like to ask honorable Home Minister as to what justice he has provided? Whole country is demanding death sentence for the rapists. Have you clearly stated once that arrangements are being made to award death sentence to the rapists and persons guilty of inhuman treatment? No! But, you are trying to stifle the issue and silencing the voice of the masses. It is very sad that due to mishandling by your Ministry, a brave police constable had to give his life. A 47 year old Constable Subhash Chandra Tomar, who was seriously injured during the violent demonstrations against the gang rape on Sunday at India Gate, has expired. A very important evidence of mishandling the situation by the Government, is the dispute between Delhi Government and Delhi Police. The row between Delhi Police and Sheila Government over the gang rape of a student has taken a serious turn. Sheila Dixit has accused Delhi Police of applying pressure on the SDM, who had gone to record the statement of the victim, whereas Delhi Police Commissioner has alleged that the SDM has also been created problems in the past also. This matter is related to the SDM Usha Chaturvedi, who had recorded the statement of the victim. The SDM has accused Delhi Police of misbehavior by putting pressure on her for recording the statement of the victim according to the convenience of the Delhi Police. A lot of time was also wasted over the issue of video graphing the whole proceedings, because the Police was not allowing it. It would not, in any case, help the victim student in getting justice by debating over as to who is right Delhi Police, Delhi Government or Union Ministry of Home Affairs. The main issue today is same as it was on Sunday. When and what sentence will be given to the culprits? It is very sad that the Government has been treating all the agitations in the same way, as if this agitation has been instigated by Opposition’s vested interests and carried on by hired goons. The Government has treated the youth gathered at India Gate and other places, in the same way as it treats the hired agitators. In fact, the Government should have started dialogue with agitated students and tried to pacify them, but it was too confused to understand the mode to establish dialogue with the agitators. We feel that the Government failed to understand the nature of the agitation. The Government is thinking that this whole agitation is confined to a gang rape in Delhi, whereas this is live volcano that has been made to burst with this matter.
Anger has been simmering among people over the issue of rape. Women in the country, whether they are rich or poor, feel unsafe. This incident of Delhi has been turned into a symbol of the anger of masses. The Government wants to solve this problem by just suspending 7-8 Police personnel. The important question, here is, whether the Delhi Police is responsible for all that is happening in the country? Are Union Government, Delhi Government, State Governments, bureaucracy and judiciary not responsible for this state of affairs? Why a large section of Delhi Police responsible for the safety of common man, is deployed for the security of leaders and influential persons? Why the Police has been deployed for the security of those who themselves are tainted and whose background is criminal? At present, even Forensic Laboratories are short of man power, which leads to delay in criminal investigation. The issue of Fast Track Court has long been debated, but why any strong decision has not been taken in this regard so far? Judges are also not being appointed in accordance with the inflow of cases. All these are having negative impact on the law and order situation. Not the Police Commissioner, but
political leaders and bureaucracy are responsible for all these deficiencies. Will the Government come to senses when the poor girl is declared dead? She had been so badly thrashed that in case her life is saved, she will have to lead a hellish life.
During last 30 years, only three persons have been hanged for the heinous crime of rape and murder. The problems will not be solved by just making provision for death sentence. Beside harsh punishment, display of a strong will to act is also required in such matters. So long the masters of the masses occupying seats of power do not display strong will to act, nothing good will come out of the provision of death sentence. The youth anger being witnessed on the streets is the consequence of such indifference. Former President of India, Pratima Devi Singh Patil, who liberally granted number of amnesty to condemned culprits, forgot that there were seven such beasts of persons among the people who were benefitted by her pardons, who not only raped minor girls, but brutally murdered them. Mr. Shinde are you listening that all these mercy petitions were recommended by your Home Ministry. These seven are beasts, for whom the death sentence would have been insufficient in view of their heinous acts. Entire country is unanimous over severe punishment to the rapists. According to a newspaper, which conducted a survey, Chief Ministers of 11 States and leaders of the Government and the Opposition there, 143 MPs and Legislators were in the favour of death sentence. Even the Speaker of the Lok Sabha, Leaders of Opposition of both the Houses and a number of Union Ministers have also expressed their view in favour capital punishment. Then why the Central Government is not agreeing to call a special session of Parliament over the issue of provision of death sentence? If the Government is concerned about judges, then the Nagpur Bench of Bombay High Court rejected the petition of Vitthal Chopra of Buldhana (?) stating that incidents of rape and murder are increasing. The Bench of Justice Pratap Hardas and Arun Chowdhary said that death sentence should be awarded to the criminals responsible for serious crimes against women. So far as world reactions, first of all, we must ignore these and secondly, death sentence is prevalent in many countries. In Arab countries, severer than death punishment for such heinous crimes is awarded. In Iran, if such a matter comes to the Courts, sentence of whipping is given for general crimes and for severe crimes death sentence is awarded. Similar situation prevails in Iraq also. In Iraq, under Sharia laws, there is provision of harsher punishment of publicly stoning to death. In Philippines, death sentenced is given in rape cases. Most harsh law is prevalent in Saudi Arabia, where sentence ranging from whipping to hanging are given and the process of death sentence is so repulsive that an ordinary man cannot stand it. There is provision of capital punishment for rapists in Sri Lanka and Pakistan. In China, rapists are caned and strangulated. In America, rapists are applied electric shocks. And our Mrs. Shinde is asking what the public want? Not only this, Mr. Shinde has equated agitating students with Maoists!

Thursday, 27 December 2012

...और शिंदे साहब पूछते हैं, अब लोग कौन सा न्याय चाहते हैं?


 Published on 27 December, 2012
 अनिल नरेन्द्र
केन्द्राrय गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे कहते हैं कि अब गैंगरेप के खिलाफ जनता क्यों आंदोलन कर रही है, पदर्शन कर रही है। इन लोगों की ज्यादातर मांगें मानी जा चुकी हैं। जरूरी कार्रवाई की जा रही है। कानून में संशोधन के लिए ठोस कदम उठाए जा रहे हैं। अब लोग कौन सा न्याय चाहते हैं? हम माननीय गृहमंत्री से पूछना चाहते हैं कि आपने कौन सा न्याय कर दिया? सारा देश बलात्कारियों को मौत की सजा की मांग कर रहा है क्या आपने एक बार भी यह साफ कहा है कि छात्रा से बलात्कार और अमानवीय व्यवहार करने वालों को फांसी देने का पबंध किया जा रहा है? नहीं! आप तो असल मुद्दे को दबाने, जनता की आवाज को कुचलने का पयास कर रहे हैं। यह अत्यन्त दुख की बात है कि आपके मंत्रालय की मिसहैडलिंग की वजह से एक बहादुर पुलिस जवान की मौत हो गई। सामूहिक बलात्कार कांड के खिलाफ इंडिया गेट पर रविवार को हिंसक पदर्शन के दौरान बुरी तरह घायल दिल्ली पुलिस के 47 वर्षीय कांस्टेबल सुभाष चन्द्र तंवर की मृत्यु हो गई। इस सरकार की सारी स्थिति की मिसहैडलिंग का एक और बहुत बड़ा सबूत दिल्ली पुलिस बनाम दिल्ली सरकार विवाद है। छात्रा से गैंगरेप मामले को लेकर दिल्ली पुलिस और शीला सरकार के बीच ठन गई है। शीला ने आरोप लगाया है कि पीड़ित लड़की का बयान दर्ज करने गई एसडीएम पर दिल्ली पुलिस अफसरों ने दबाव बनाया। जबकि दिल्ली के पुलिस कमिश्नर का कहना है कि आरोप लगाने वाली एसडीएम पहले भी ऐसी दिक्कतें खड़ी कर चुकी हैं। दरअसल मामला गैंगरेप पीड़ित लड़की का बयान दर्ज करने वाली एसडीएम ऊषा चतुर्वेदी से जुड़ा हुआ है। एसडीएम ने आरोप लगाया कि पीड़िता का बयान दर्ज करने के दौरान दिल्ली पुलिस ने दबाव बना कर अपनी सुविधा के अनुसार बयान दर्ज करने पर मुझसे बुरा व्यवहार किया। वीडियोग्राफी कराने को लेकर भी काफी वक्त खराब हुआ, क्योंकि पुलिस ऐसा करने से रोक रही थी। दिल्ली पुलिस, दिल्ली सरकार और गृह मंत्रालय के बीच कौन सही कह रहा है इसमें छात्रा को न्याय दिलाने में कोई मदद नहीं मिलेगी। मुख्य मुद्दा तो आज भी वही है जो रविवार को था। दोषियों को दंड कब और क्या मिलेगा? अत्यन्त दुख का विषय है कि सरकार सभी आंदोलनों के साथ ऐसे ही व्यवहार करती आ रही है मानो वो विपक्षी दलों के स्वार्थ से पेरित और कुछ किराए के लोगों द्वारा किया गया आंदोलन हो। रविवार से लेकर अब तक सरकार ने इंडिया गेट व अन्य स्थानों पर युवकों से जिस तरह का व्यवहार किया वैसा आमतौर पर किराए के आंदोलनकारियों के साथ किया जाता है। चाहिए तो यह था कि सरकार को उत्तेजित छात्रों से संवाद स्थापित करना चाहिए था और उन्हें शांत करने का पयास करना चाहिए था। पर यह सरकार इतनी कन्फ्यूज चल रही है कि इसे ये समझ नहीं आ रहा कि यह आंदोलनकारियों से कैसे राफ्ता बनाए? हमारा तो यह मानना है कि सरकार ने आंदोलन के चरित्र को समझने में ही भूल की है। अभी भी आंदोलन में आधे से ज्यादा लोग ऐसे हैं जो किसी भी संगठन द्वारा लाए गए किराए के लोग नहीं हैं। सरकार ऐसा समझ रही है कि ये पूरा आंदोलन दिल्ली में हुए एक गैंगरेप के बारे में है। जबकि यह एक ज्वालामुखी है जो इस मामले से फटा है। कई सालों में लोगों के मन में बलात्कार को लेकर आकोश है। इस देश में महिलाएं चाहे वो गरीब हों या अमीर खुद को असुरक्षित समझती हैं। दिल्ली की घटना देश के रोष का पतीक बन गई है। सरकार इस समस्या को सात-आठ पुलिसकर्मियों को निलंबित करके सुलझा लेना चाहती है। सवाल यहां महत्वपूर्ण यह है कि क्या दिल्ली पुलिस ही देश में जो हो रहा है उसकी जिम्मेवार है? क्या केन्द्र सरकार, दिल्ली सरकार, राज्य सरकारें, नौकरशाह, ज्यूडिशरी जिम्मेदार नहीं? आम जनता की सुरक्षा के लिए गठित दिल्ली पुलिस का एक बड़ा हिस्सा राजनेताओं और असरदार लोगों की सुरक्षा में क्यों तैनात रहता है। खासकर उन लोगों की सुरक्षा में क्यों लगाई गई है जो खुद दागदार हैं और जिसके खुद के किमिनल बैकग्राउंड हैं? आज भी फोरेंसिक लैब में कई पदों की कमी है जिस पर अपराध अनुसंधान में देरी होती है। फास्ट ट्रैक कोर्ट का मसला भी वर्षों से चर्चा में था लेकिन इस पर कभी भी मजबूत फैसला पहले क्यों नहीं किया गया? अदालतों में भी जजों की नियुक्ति केसों के उचित अनुपात में नहीं होती। इस सब का असर कानून व्यवस्था पर पड़ रहा है। इन कमियों के लिए पुलिस आयुक्त नहीं सरकार में बैठे हुए राजनेता और अधिकारी जिम्मेदार हैं। क्या सरकार तब हिलेगी जब वह बेचारी अभागी लड़की को मृत घेषित किया जाएगा? उसको इतना मारा-पीटा गया है कि वह बेचारी बच भी गई तो उसकी जिंदगी नरकी हो जाएगी। पिछले 30 वर्षों में बलात्कार और हत्या के जघन्य मामलों में केवल तीन लोगों को फांसी पर लटकाया गया है। फांसी की सजा का पावधान देने भर से ही समस्या का समाधान नहीं होता। कड़ी सजा के साथ जरूरी है कि ऐसे मामलों में दृढ़ इच्छा शक्ति दिखाने की। जब तक सत्ता पतिष्ठान में बैठे जनता के आकाओं द्वारा इच्छाशक्ति नहीं दिखाई जाएगी फांसी की सजा क्या कर लेगी? सड़कों पर उमड़ रहा युवाओं का यह रोष सत्ता पतिष्ठान की इस लेट लीपापोती का ही परिणाम है। क्षमादान देने में रिकार्ड कायम करने वाली भारत की पूर्व राष्ट्रपति पतिभा देवी सिंह पाटिल तो दया याचिकाओं पर अपनी दरियादिली दिखाते समय यह भूल गईं कि जिन लोगों को वह फांसी की सजा से माफ कर रही हैं उनमें सात ऐसे दरिंदे हैं जिन्होंने नाबालिग बच्चियों के साथ न केवल रेप किया बल्कि उनकी बेरहमी से हत्या भी की। इन सभी दया याचिकाओं पर राष्ट्रपति के पास सिफारिश शिंदे साहब आपके गृह मंत्रालय की तरफ से हुई थी। ये सात वो दरिंदे हैं जिन के घृणित कृत्य की सजा फांसी भी कम मानी जाएगी। दुष्कर्मियों को सजा देने पर पूरा देश एकमत है। महाअभियान के जरिए एक अखबार ने राय जानी तो 11 राज्यों के मुख्यमंत्री यहां के पक्ष-विपक्ष के नेता, 143 सांसद, विधायक फांसी के पक्ष में हैं। यही नहीं लोकसभा अध्यक्ष दोनों सदनों में विपक्ष के नेता और कई केंद्रीय मंत्री भी रजामंदी जता रहे हैं। तो आखिर फांसी के पावधान पर केन्द्र सरकार विशेष सत्र बुलाने से क्यों दूर हट रही है? अगर सरकर जजों की बात करती है तो बाम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बैंच ने बहुठाणा निवासी विट्ठल चोपड़ा की याचिका यह कहते खारिज कर दी कि इस तरह की घटनाएं (रेप-हत्या) बढ़ रही हैं। जस्टिस पताप हरदास और अरुण चौधरी की बैंच ने कहा कि महिलाओं के खिलाफ गंभीर अपराधियों के लिए सजा-ए-मौत दी जानी चाहिए। रही बात दुनिया के रिएक्शन की। पहली बात तो हमें इसकी परवाह नहीं करनी चाहिए और दूसरी बात दुनिया के कई देशों में फांसी दी जा रही है। अरब देशों में तो इस तरह के जघन्य अपराध के लिए फांसी से भी कठोर दंड दिया जाता है। ईरान में अगर ऐसा मामला आता है तो वहां सामान्य मामलों में कोड़े मारने की सजा और जघन्यतम मामलों में मौत की सजा दी जाती है। कुछ ऐसी ही स्थिति इराक में भी है। इराक में शरिया कानून के आधार पर चौराहे पर पत्थर मारकर मौत की सजा का पावधान रहा है। फिलीपीन्स में भी बलात्कार की सजा मौत है। सउदी अरब में सबसे कड़ा कानून है वहां कोड़े मारने से लेकर सार्वजनिक रूप से फांसी तक की सजा का पावधान है और फांसी भी ऐसे दी जाती है कि अगर सामान्य आदमी पहली बार उस दृश्य को देखे तो बेहोश हो जाए। श्रीलंका और पाकिस्तान में भी रेप के जघन्यतम मामलों में मौत की सजा का पावधान है। चीन में तो बलात्कारियों को डंडे मारने की सजा व गला घोंटकर मारा जाता है। अमेरिका में भी बलात्कार की सजा में इलैक्ट्रिक शॉक दिया जाता है और हमारे शिंदे साहब पूछते हैं कि जनता अब क्या चाहती है? यही नहीं शिंदे साहब ने तो आंदोलनकारी छात्रों को माओवादी तक कह दिया?

Wednesday, 26 December 2012

सचिन के संन्यास के साथ समाप्त हो गया एक युग


 Published on 26 December, 2012
 अनिल नरेन्द्र
सचिन तेंदुलकर के रिटायरमेंट की चर्चा पिछले कुछ समय से चल रही थी, खासकर टेस्ट मैचों में उनके खराब फार्म को देखते हुए। अब जब उन्होंने वन डे से रिटायर होने का फैसला कर लिया है तो सबको आश्चर्य हो रहा है। हालांकि इसमें आश्चर्य होने की कोई खास वजह नहीं होनी चाहिए थी। भारत की वर्ल्ड कप जीत के बाद से सचिन बहुत कम वन डे खेल रहे थे, जो संकेत था कि वह इस फॉर्मेट से जल्द रिटायर होने का इरादा बना रहे हैं। वर्ल्ड कप जीत से सचिन की जिन्दगी की सबसे बड़ी तमन्ना पूरी हो गई थी और उन्हें यह अहसास भी हो गया था कि अगले वर्ल्ड कप में वह हिस्सा शायद न ले सकें। दरअसल सचिन के चहेते कभी अपने हीरो व भगवान का सिर झुकते नहीं देखना चाहते। पिछले कुछ समय से सचिन रन तो नहीं बना पा रहे थे, उल्टे जिस तरह से वह क्लीन बोल्ड हो रहे थे उससे उनके फैंस और चाहने वालों को भी लगने लगा था कि मास्टर ब्लास्टर को अब संन्यास ले लेना चाहिए। पिछले दिनों आस्ट्रेलिया के महान क्रिकेटर, कप्तान रिकी पोंटिंग की संन्यास की घोषणा का भी सचिन पर जरूर असर हुआ होगा। बहरहाल सचिन का वन डे क्रिकेट से संन्यास लेने का फैसला स्वागत योग्य है। क्रिकेट के इस महान खिलाड़ी के नाम लगभग हर रिकार्ड दर्ज है। वह अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में 100 शतक जमाने वाले अकेले खिलाड़ी हैं। उन्होंने अब तक 463 वन डे मैचों में सर्वाधिक 18426 रन बनाए हैं। क्रिकेट प्रशंसकों को लग रहा था कि पिछले साल विश्व कप जीतने का सपना साकार होने के बाद वह दिन दूर नहीं जब सचिन वन डे से संन्यास की घोषणा कर देंगे। अब जब उन्होंने फैसला कर लिया है तो सभी चाहते हैं कि वह टेस्ट क्रिकेट में कुछ धमाकेदार पारियां खेल कर अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट से भी पूरे सम्मान के साथ विदा हों। वैसे तो सचिन तेंदुलकर काफी सालों से वन डे मैच अपनी पसंद के हिसाब से खेल रहे थे। उन्होंने आखिरी वन डे मैच इस साल मार्च में एशिया कप के दौरान खेला था, जिसमें उन्होंने अपना सौवां शतक जमाया था। सचिन भारतीय क्रिकेट के सही मायनों में महानायक हैं और किसी महानायक पर जब आरोपों की बौछार हो या कीचड़ उछाला जाए तो अच्छा नहीं लगता। सचिन के बारे में कहा जाता रहा है कि वह अपनी आलोचनाओं का जवाब खुद न देकर अपने बल्ले से देते हैं और उन्होंने अपने 23 साल लम्बे कैरियर में ऐसा एक बार नहीं बल्कि कई बार किया। लेकिन इस बार लगता है कि उम्र का असर उन पर भारी पड़ने लगा था। वैसे सभी चाहते हैं कि वे जब क्रिकेट को अंतिम रूप से अलविदा कहें तो धमाकेदार पारी खेलें। संन्यास ऐसी चीज है, जिससे हर किसी को गुजरना पड़ता है। लेकिन रिटायरमेंट का टाइम सही हो तो आप आरोपों की बौछार से बच सकते हैं जैसे सुनील गावस्कर, रिकी पोंटिंग, एडम गिलक्रिस्ट ने किया। हम सभी चाहते हैं कि क्रिकेट के इस महानायक की विदाई पूरे सम्मान के साथ हो। आईपीएल फ्रेंचाइजी मुंबई इंडियन ने संन्यास ले चुके सचिन की 10 नम्बर की जर्सी को भी रिटायर करने की मुहिम चला दी है। ट्विटर पर सचिन के प्रशंसकों ने यह संदेश लिखा है कि नम्बर 10 सिर्प सचिन का है। जब सचिन हमारे लिए वन डे में इतना कुछ कर सकते हैं तो क्या हम उनका सम्मान 10 नम्बर की जर्सी को रिटायर करके नहीं कर सकते।


ब्लादिमीर पुतिन भारत आपका सम्मान करता है, स्वागत करता है


 Published on 26 December, 2012
 अनिल नरेन्द्र
रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन इन दिनों भारत यात्रा पर आए हुए हैं। सोमवार को भारत और रूस ने 42 सुखोई लड़ाकू विमानों और 71 मीडियम लिफ्ट हेलीकॉप्टरों के चार अरब डॉलर मूल्य के रक्षा सौदे पर हस्ताक्षर किए। इसके तहत रूस के आधुनिकतम सुखोई-30 एमकेआई युद्धक विमानों का भारत में उत्पादन होगा तथा रात में सैन्य कार्रवाई करने में सक्षम 71 सैनिक हेलीकॉप्टर रूस से खरीदे जाएंगे। रूसी राष्ट्रपति और भारतीय प्रधानमंत्री ने सोमवार को दोनों देशों की 13वीं शिखर बैठक में द्विपक्षीय संबंधों पर भी चर्चा की। इस दौरान दोनों देशों के बीच रणनीतिक व व्यापारिक संबंधों को और मजबूत करने के लिए करीब 10 समझौतों पर करार हुए। ब्लादिमीर पुतिन हमारे सम्मान के हकदार हैं। वर्ष 2000 में सत्ता सम्भालने के बाद उन्होंने भारत-रूस संबंधों को येल्तसिन युग से बाहर निकालकर एक नई दोस्ती की शुरुआत की। यह राष्ट्रपति पुतिन की पांचवीं भारत यात्रा है जिससे पता चलता है कि रूस भारत को कितना महत्व देता है। स्ट्रेटेजिक सेक्टर में रूस ने पिछले दशकों में सबसे अधिक आधुनिकतम विमान, टैंक, रॉकेट लांचर, कूज मिसाइलें, युद्धपोत आदि मुहैया करवाए जिससे भारत को अपनी सुरक्षा करने में मजबूती मिली। पुतिन और मनमोहन सिंह के बीच अब तक इतनी मुलाकातें हो चुकी हैं और दोनों नेताओं ने निजी तौर पर इतना गहरा दोस्ताना संबंध कायम कर लिया है कि द्विपक्षीय सहयोग की कोई चाहे कितनी भी जटिल समस्या क्यों न हो, वह उनके लिए एक टेढ़ी खीर कभी नहीं हो सकती। भारत और रूस के बीच संबंध अत्यंत मैत्रीपूर्ण हैं, मास्को में भारत के राजदूत अजय मल्होत्रा ने पुतिन की भारत यात्रा से पहले मास्को में कहा ः चाहे सरकारी स्तर पर हो या जन स्तर पर, दोनों देशों के बीच संबंध बहुत अच्छे हैं। सर्वविदित है कि भारत और रूस के बीच सैनिक-तकनीकी सहयोग दोनों देशों की रणनीतिक भागीदारी का एक महत्वपूर्ण स्तम्भ बन चुका है। व्यापारिक और आर्थिक सहयोग के क्षेत्र में दोनों देशों ने 2015 तक कुल वार्षिक आवर्त को 20 अरब डॉलर करने का लक्ष्य निर्धारित किया है। इस वर्ष के अन्त तक इसका लगभग 12 अरब डॉलर होने का अनुमान है। एक दिसम्बर 2012 से 30 नवम्बर 2013 तक रूस विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के समूह जी-20 की अध्यक्षता करेगा। जी-20 की अध्यक्षता करने के बाद रूस और प्रभावशाली बनकर उभरेगा। कुछ लोगों का तो यह कहना है कि इस समय पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था रूस के हाथ में है। रूस के विश्व व्यापार संगठन का अध्यक्ष बन जाने के बाद इस क्षेत्र में भारत-रूस सहयोग की नई सम्भावनाएं पैदा होंगी। दोनों देशों के कारोबारियों के बीच सम्पर्प और सहयोग बढ़ाने हेतु भारत ने हाल ही में वीजा नियमों को भी और सरल बना दिया है, जो व्यापार आवर्त की वृद्धि में काफी सहायक सिद्ध होगा। हम राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन की भारत  यात्रा का स्वागत करते हैं। रूस सदा से भारत का ऐसा मित्र रहा है जिस पर भारत आंख बन्द करके विश्वास कर सकता है। बेशक आज की तारीख में अमेरिका एक सुपर पॉवर है पर रूस का अपना ही महत्व है। पुतिन के नेतृत्व में रूस हर क्षेत्र में आगे बढ़ रहा है और जल्द विश्व में अपना खोया स्थान हासिल कर लेगा।

Rape cases can be settled within ten days, if Government, Police and Judiciary want

Anil Narendra
Protests, sit-ins and candle light marches by students and women in large numbers demanding stern action against the culprits, who raped a student in a running bus on last Sunday, continued even on the fifth day. Protests and demonstrations continued whole day at prominent places in New Delhi like Rajpath, Safdarjang Hospital, India Gate, Jantar Mantar, Prime Minister’s Office and Ministry of Home Affairs. All were singularly demanding exemplary and immediate sentence to the culprits. In fact, one of the reasons for the public to be so angry today is our system, which encourages such culprits. When the rape cases continue for ten years in the courts, how can such incidents be stopped? About ten thousand rape cases are under consideration in various Courts of the Capital and if we were to calculate number of such cases pending in the country, the number would run to lakhs. The Government is talking of constituting Fast Track Courts for such cases. If Police conducts investigate in such cases properly, then it can conclude the investigation within seven to ten days. Legal Experts are of the view that all depend upon the intention of the Police. If Police decides, it can complete the investigation and file charge sheet in the Court within seven to ten days. After filing of charge sheet, if daily hearing is resorted to then it should not take much time. But, the Police must take into consideration certain important points during investigation so that it remains foolproof. Senior Supreme Court Advocate, KTS Tulsi suggests that the Police must concentrate on scientific evidence in such cases. The bus involved in the incident has been confiscated. Accused have also been apprehended. Finger prints in the bus and blood samples and blood traces on rod etc used in the crime are being lifted and forensic report concerning these is yet to come. Forensic Laboratory has been asked to submit its report as soon as possible on priority basis. The Criminal Lawyer of Supreme Court, DB Goswami has said that in rape cases, statement of the girl is important. So far as the present case is concerned, statements of the girl and her friend are yet to be recorded. In addition to these, the statement of the doctor conducting medical tests will also be recorded. The statement of the Police personnel registering the FIR will also be obtained. In addition, statements of Investigating Officer and Officer conducting the forensic tests are also to be recorded. And, if the Police so desires, it can also make the person, who made the call to number 100 and the Police personnel who attended that call its witnesses. In addition to the medical reports of the girl and her friend, the medical reports of the accused persons will form important evidences. The Police may take 7 to 10 days in the process of selection of these witnesses and collecting evidences. After this, the Police may file the charge sheet. The charge sheet can be filed without the forensic reports and a supplementary charge sheet could be filed after the receipt of the report. It is good, if the girl is able to record her statement, otherwise all the scientific evidences and the statement of her friend will prove quite important. Since the friend himself is injured, his statement acquire more importance. Police should not prepare a long list of witnesses, but concentrate only on important statements. Trials should be carried on day-to-day basis. If feasible, the case should be heard by a woman judge. A woman lawyer should pursue the case. Avoid indecent questioning of the girl and only such questions should be concentrated upon that are necessary for conviction. Appeal process must also be considered in such cases. Either a time limit and process for appeal be decided or appeal ----petition should not be included, but all this depend on Police, Government, Court and Forensic and Science Labs. But the sad part of the story is that we are expecting a lot from the Government and public representatives, out of which a number of legislators and former legislators have themselves been arrested for rape charges. These people turn such serious charges to political issue and stall the case. We fail to understand that why people elect such serious accused leaders. Since UPA is in power, we expect much from the Congress President Sonia Gandhi that she would take initiative in this matter that may lead to such a system under which the rape cases are settled within 30 days from the beginning to sentencing the accused.

Tuesday, 25 December 2012

क्या 2014 लोकसभा चुनाव मोदी बनाम राहुल होगा?


 Published on 25 December, 2012
 अनिल नरेन्द्र
क्या 2014 का लोकसभा चुनाव नरेन्द्र मोदी बनाम राहुल गांधी होगा? यह दावे से तो नहीं कहा जा सकता पर लग तो ऐसा ही रहा है। सब तरह के प्रयास करने के बाद भी गुजरात में नरेन्द्र मोदी को तीसरी बार जीत पर कांग्रेस भले ही कुछ कहे या न कहे लेकिन चुनावी नतीजों ने तो कांग्रेस नेतृत्व के सामने एक नई चुनौती की जमीन तैयार कर दी है। कांग्रेस ने गुजरात में मोदी बनाम राहुल लड़ाई के बचने की जो रणनीति बनाई थी वह काफी हद तक सफल भी रही। नरेन्द्र मोदी ने प्रयास किए कि कांग्रेस गुजरात चुनाव को मोदी बनाम राहुल बनाएं पर वह सफल नहीं हो सके। 2009 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की स्थिति सुधरने के बाद बीते वर्षों में उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, पंजाब, उत्तराखंड के चुनावों में कांग्रेस के प्रचार अभियान  की कमान राहुल गांधी के हाथ में थी। इसके बावजूद उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल और पंजाब में पार्टी वैसा कुछ नहीं कर सकी, जैसी उसे उम्मीद थी। राहुल क्राउड पुलर तो साबित हुए पर वोट पुलर नहीं हो पाए। इसमें इन राज्यों में कांग्रेस का संगठन, गुटबाजी, टिकटों के बंटवारे में गड़बड़ यह भी अन्य कारण रहे पर कांग्रेस को जो उम्मीद थी कि राहुल का करिश्मा इन सब कमियों को ढंक देगा वह सफल नहीं हो पाया। इस ट्रैक रिकार्ड के बावजूद कांग्रेस अगला लोकसभा चुनाव राहुल की अगुवाई में लड़ने के लिए उन्हें बड़ी जिम्मेदारी सौंपने का खाका तैयार कर चुकी है। राहुल के सबसे बड़े वफादार दिग्विजय सिंह ने तो कहना भी शुरू कर दिया है कि कांग्रेस 2014 का चुनाव उनके नेतृत्व में  लड़ेगी और राहुल कांग्रेस के भावी प्रधानमंत्री हैं। पार्टी के कई अन्य नेता व केंद्रीय मंत्री, मनमोहन सिंह के रहते ही 2014 चुनाव के बाद राहुल को प्रधानमंत्री बनाने का नारा अभी से लगा रहे हैं। रही बात खुद के बूते तीसरी बार चुनाव जीतकर गुजरात में भगवा फहराने वाले नरेन्द्र मोदी को अपनी मां के आशीर्वाद के अलावा भाजपा के बड़े नेताओं के एक हिस्से ने उन्हें प्रधानमंत्री पद के लिए प्रोजेक्ट करना शुरू कर दिया है। नरेन्द्र मोदी को सबसे ज्यादा दिक्कत राजग घटक दलों से होगी। समस्या ले-देकर राजग के जद (यू) जैसे घटकों की है। नीतीश फिलहाल तो मोदी की जीत पर चुप्पी साधे हुए हैं पर उनके सिपहसालार यह कहने से कतराते नहीं कि प्रधानमंत्री पद का फैसला चुनाव से पहले ही हो जाए। भाजपा, फिलहाल इससे बच रही है, लेकिन रास्ता निकालने में लगता है जुट गई है। यह सम्भव है कि भाजपा नेतृत्व अभी तो कई राज्यों में होने वाले चुनावों में मोदी को स्टार प्रचारक बनाए। पूरे देश में घूमने से पता चलेगा कि मोदी गुजरात के बाहर कितने लोकप्रिय हैं। कहा तो यह भी जा रहा है कि भाजपा के पास मोदी को राहुल का मुकाबला करने के लिए और भी उपाय हैं, लेकिन उन पर अंतिम फैसला होना बाकी है। इस समय दिल्ली में युवाओं का आक्रोश सातवें आसमान पर है। राहुल तो युवाओं के सामने आने की हिम्मत नहीं जुटा पाए अगर नरेन्द्र मोदी यह साहस करें और छात्रों को दिल्ली आकर सम्बोधित करें तो उनकी लोकप्रियता भी बढ़ेगी और भाजपा का भी इस बहाने थोड़ा भला हो जाएगा।

स्वतंत्र भारत के इतिहास में इतना विवश नेतृत्व पहले नहीं देखा


 Published on 25 December, 2012
 अनिल नरेन्द्र

 यह निहायत दुख का विषय है कि दिल्ली में नई पीढ़ी के साहस को जिस तरह लाठीचार्ज और आंसू गैस मारकर तोड़ने की कोशिश की गई उसकी जितनी भी भर्त्सना की जाए कम है। इस कार्रवाई ने सारे देश को दहला दिया है। गैंगरेप के खिलाफ युवाओं के उबले गुस्से को लाठीचार्ज, आंसू गैस और पानी की बौछार भी शांत नहीं कर पाई। सुबह से रात तक इंडिया गेट पर प्रदर्शनों का दौर जारी रहा। पहली बार विजय चौक पर इतने लोगों की भीड़ जुटी है जिसकी मांग सिर्प न्याय और सुरक्षा है। इनमें से कोई न तो किसी दल का है न ही किसी जात का और न ही एक जगह का। यह दमन सिर्प उन युवाओं को कुचलने का नहीं था। महिलाओं की गरिमा के पक्ष में उठ रही हर आवाज को दबाने का भी था। सारा राष्ट्र जब केंद्र सरकार से ऐसे जघन्य अपराधियों को मृत्युदंड देने संबंधी कानूनी संशोधन का इंतजार कर रहा था, तब न्यायिक आयोग बनाने जैसा अन्याय रात को सामने आया। कसाब को फांसी देने का श्रेय लेने वाले गृहमंत्री इतने दबाव के बाद भी कुछ न दे सके। `मृत्युदंड' शब्द कहने तक से बचते रहे। वास्तव में यह मनमोहन सरकार खुद भयभीत है। कोई कठोर फैसला ले सके, यह साहस इसमें नहीं है। इसीलिए किसी महिला को भरोसा नहीं कि कमजोर नेतृत्व उसकी रक्षा कर सकता है। महिला की गरिमा को इस तरह खंडित किया जाना जैसा रविवार को छात्रा के साथ किया गया हमारी नजरों में तो रेयरेस्ट ऑफ क्राइम है। इस पाश्विक अपराध को भी यह सरकार अलग-अलग श्रेणियों में डालना चाह रही है। हत्या पर तो पहले से ही मृत्युदंड है। यूं भी सरकार थोड़े ही किसी को फांसी सुना सकती है। यह तो कोर्ट पर निर्भर है। आपको तो सिर्प कानून में इसका प्रावधान करना है। प्रावधान लाने में आनाकानी क्यों? क्या सरकार को ऐसे अपराधियों की ज्यादा चिन्ता है? वह तो बहस तक से भी घबरा रही है। संसदीय समिति की बैठक भी एक हफ्ते बाद होगी। अदालतों के हाथ बंधे हुए हैं। अदालत वह सजा नहीं दे सकती जिसका कानून में प्रावधान नहीं है। गैंगरेप के लिए कानून में 10 साल और अधिकतम उम्र कैद की सजा का प्रावधान है। जज तक मानते हैं कि जिन मामलों में पीड़ित का जीवन मौत के बदतर बन गया हो, जैसा कि इस मामले में है, दोषियों को मौत की सजा मिलनी चाहिए। इसके लिए कानून में जरूरी संशोधन होने चाहिए। 1994 में दुष्कर्म व हत्या में धनंजय चटर्जी की फांसी पर मुहर लगाते समय सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि महिलाओं के प्रति बढ़ते हिंसक अपराध पर सजा के बारे में बड़ी विषमता है।  ज्यादातर को सजा नहीं होती। महाराष्ट्र के एक टीचर शिवाजी को दुष्कर्म और हत्या के जुर्म में मौत की सजा सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने फिर कहा कि अपराधी को उचित दंड देकर समाज की न्याय की पुकार का जवाब जाना चाहिए। कानून का उद्देश्य समाज की रक्षा और अपराधी को भयभीत कर अपराध से रोकना है। हमारी राय में राष्ट्रपति भी थोड़ा चूक गए। युवाओं से खुलकर मिल ही लेते, पीपुल्स प्रेसीडेंट बन जाते। अब्दुल कलाम से भी आगे। बड़ा अवसर तो कांग्रेस अध्यक्ष के भी पास था। सोनिया गांधी चाहतीं तो ऐतिहासिक फैसला ले, भारत भूमि को गौरवान्वित कर सकती थीं। गांधी परिवार के सदस्य क्या यह भूल गए कि जब दिल्ली के पहाड़गंज में भयंकर आग लगने पर राजीव गांधी स्वयं मौके पर पहुंच गए थे और लोगों की सहायता में जुट गए थे। अन्य गड़बड़ियों पर उन्होंने एक विदेश सचिव व एक मुख्यमंत्री को बर्खास्त कर दिया था। हमें तो ऐसा लगता है कि अब राजनीतिक सत्ता के बजाय नौकरशाहों का शासन है। पिछले पांच दिनों से लाखों युवा सड़कों पर उतरे हुए हैं। समय रहते उन्हें शांत करने के बजाय उन पर  लाठीचार्ज, आंसू गैस और पानी की बौछारें मारी जा रही हैं। इस बलात्कार कांड के अपराधियों की गिरफ्तारी और पांच पुलिसकर्मियों के निलम्बन मात्र से दिल्ली पुलिस, दिल्ली सरकार, प्रशासन, गृह मंत्रालय काबिल और दोषमुक्त नहीं हो सकते। सामान्य जनता की कुर्बानी लेने की जगह राजनीतिक दल अव्यवस्था और कानून में तत्काल बदलाव के लिए ठोस पहल क्यों नहीं कर रहे? राजधानी में बिगड़ी स्थितियां क्या सम्पूर्ण राजनीतिक व्यवस्था के लिए कलंक नहीं है? स्वतंत्र भारत के इतिहास में इतना विवश नेतृत्व पहले कभी नहीं देखा गया।

The leadership has never been so helpless after Independence

Anil Narendra
The way, the courage of the new generation was sought to be broken by lathicharge and tear gas shelling, must be forcefully condemned. It is very sad state of affairs. This action has terrified the whole country. The seething anger among the youth of the country over the gang rape could not be pacified with the lathicharge, tear gas and water cannons. This is for the first time that such a huge crowd has gathered at the Vijay Chowk to demand justice and security. This crowd did not belong to any political party or any particular caste or any particular place. This was not only the repression of those youth, but it was also about silencing all the voices being raised for the dignity of women. When whole of the country was patiently waiting for legal amendments providing death sentence to heinous criminals, suddenly the injustice to constitute a Judicial Commission came to the fore in the night. The Home Minister, who had been taking credit about the execution of death sentence to Ajmal Kasab, was under such a pressure that he failed to deliver. He even avoided the mention of the word ‘death sentence’. In fact, the Manmohan Government, itself is frightened. It lacks the courage to take any hard decision. That is why no woman has faith in the weak government about its ability to provide them safety. Dignity of woman must not be destroyed as was done with a girl student on Sunday and we consider it as the rarest of rare crime. On the contrary, the government is trying to categorize such heinous crimes into different categories. There is already a provision of death penalty on murder. Moreover, it is not in the jurisdiction of the Government to pronounce death sentence to anybody, this depends on the Judiciary. You have just to make provision in the law to this effect. Why there is hesitation in bringing such a provision? Is the Government more worried about such criminals? The Government is even trying to evade discussion on the subject. The Parliamentary Committee will meet after a week. The hands of court are tied. The Court cannot pronounce such a sentence for which there is no provision in the law. In gang rape cases, there is a provision for an imprisonment for ten years and at the most life imprisonment. Even the judges agree that in cases, where the life of the rape victim has become worse than the death, as is being witnessed in the present case, the culprits must be sentenced to death. And, for this there must be suitable amendments in the laws. Holding up the death sentence to Dhananjaya Chatterjee for rape and murder in 1994, the Supreme Court had said that there was no unanimity on sentencing in cases of increasing violent crimes against women. Most of such criminals escape sentencing. The Supreme Court again said while delivering death sentence to a teacher from Maharashtra, Shivaji for rape and murder, that by rightly sentencing the culprit, the Society’s call for justice must be answered. The objective of the law is to provide security to the society, on one hand and stopping crimes by creating fears among the criminals, on the other. We think, the President has also made a slight error. Had he met the youth publicly, he would have become people’s President. Even the Congress President had a great opportunity. Had Sonia Gandhi desired, she could have taken a historical decision that would have glorified India. Did the members of Gandhi family forget that Rajiv Gandhi himself had reached the spot in Paharganj, where fearsome fire had broken out and he had started helping people? He had even terminated a foreign Secretary and a Chief Minister for other scandals. We feel that Bureaucracy is ruling these days instead of political leadership. Lakhs of youth are on the street for last five days. Instead of pacifying them, they are being subjected to lathicharge, tear gas shell and water cannons. Delhi Police, Delhi Government, Administration and Union Ministry of Home Affairs cannot be absolved of the blames by just apprehending the culprits of this crime and by suspending five Police personnel. Why the political parties, instead of making the common man to sacrifice, are not taking effective initiatives to effect immediate change to changing the prevalent disorder and the laws? Are the worsened situations in the Capital not a disgrace for whole of the political system? Such a helpless leadership has never been witnessed in the history of independent India.

Sunday, 23 December 2012

अगर सरकार, पुलिस, अदालत चाहे तो बलात्कार मामले 10 दिन में निपटाए जा सकते हैं


 Published on 23 December, 2012
 अनिल नरेन्द्र
राजधानी में गत रविवार रात चलती बस में बलात्कार करने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग को लेकर शुक्रवार (पांचवां दिन) को भी बड़ी संख्या में छात्राओं और महिलाओं ने प्रदर्शन-धरना, कैंडिल मार्च जारी रखे। नई दिल्ली में राजपथ, सफदरजंग अस्पताल, इंडिया गेट, जंतर-मंतर, प्रधानमंत्री कार्यालय और गृह मंत्रालय जैसी प्रमुख जगहों पर दिनभर प्रदर्शनों की श्रृंखला जारी रही। सभी की एक ही मांग थी कि दोषियों को जल्द कड़ी से कड़ी सजा दी जाए। दरअसल आज अगर जनता इतनी उत्तेजित है तो इसलिए भी क्योंकि दुष्कर्मियों का मनोबल बढ़ाने की एक वजह हमारा सिस्टम भी है। दुष्कर्म के मामले 10-10 सालों तक अदालतों में चलेंगे तो ऐसे में इस तरह की घटनाओं पर कैसे विराम लग सकता है? दिल्ली की अलग-अलग अदालतों में बलात्कार के 10 हजार से भी अधिक मामले इस समय विचाराधीन हैं और अगर पूरे देश का हिसाब लगाया जाए तो यह संख्या लाखों में होगी। सरकार फास्ट ट्रैक कोर्ट बनाने की बात तो कर रही है। पुलिस अगर सही तरीके से छानबीन करे तो ऐसे मामलों में 7 से 10 दिन में छानबीन पूरी कर सकती है। कानूनी जानकार बताते हैं कि सब कुछ पुलिस की इच्छाशक्ति पर निर्भर है। पुलिस चाहे तो 7 से 10  दिन में छानबीन पूरी करके चार्जशीट दाखिल कर सकती है। चार्जशीट के  बाद ट्रायल रोजाना किया जाए तो ज्यादा वक्त नहीं लगना चाहिए। लेकिन पुलिस को छानबीन के दौरान कुछ अहम बिन्दुओं पर जरूर ध्यान रखना होगा ताकि छानबीन में कोई कमी न रहे। सुप्रीम कोर्ट के सीनियर वकील केटीएस तुलसी ने बताया कि  पुलिस को इस तरह के मामले में साइंटिफिक एविडेंस पर ध्यान देना होगा। बस बरामद की जा चुकी है। आरोपी गिरफ्तार हो चुके हैं। बस से फिंगर प्रिंट लेकर  ब्लड सैम्पल और वारदात में इस्तेमाल रॉड इत्यादि पर लगे खून के निशान के सैम्पल उठाए जा रहे हैं और इन तमाम सैम्पल की फोरेंसिक रिपोर्ट आनी है। प्राथमिकता के आधार पर फोरेंसिक लैब से कहा गया है कि वह रिपोर्ट जल्द दे। सुप्रीम कोर्ट के क्रिमिनल लॉयर डीबी गोस्वामी ने बताया कि रेप के केसों में लड़की का बयान अहम होता है। जहां तक मौजूदा मामले का सवाल है तो इस मामले में लड़की का बयान व लड़की के दोस्त का बयान दर्ज किया जाना है। साथ ही लड़की का मेडिकल टेस्ट करने वाले डाक्टर का बयान लिया जाएगा। जिस पुलिसकर्मी ने एफआईआर दर्ज की है उसका बयान  लिया जाएगा। इसके अलावा जांच अधिकारी का बयान और फोरेंसिक जांच करने वाले अधिकारी का बयान कलमबद्ध किया जाना है। इसके अलावा पुलिस अगर चाहे तो 100 नम्बर डायल करने वाले शख्स और कॉल अटैंड करने वाले पुलिसकर्मी को भी गवाह बना सकती है। लड़की, उसके दोस्त, दोनों की मेडिकल रिपोर्ट, आरोपियों की मेडिकल रिपोर्ट के साथ फोरेंसिक रिपोर्ट अहम सबूत है। इन गवाहों के चयन और सबूतों को इकट्ठा करने में पुलिस को 7 से 10 दिन का समय लग सकता है। इसके बाद पुलिस चार्जशीट दाखिल करे। चार्जशीट फोरेंसिक रिपोर्ट के बिना भी दाखिल हो सकती है और रिपोर्ट आने पर सप्लीमेंट्री चार्जशीट दाखिल की जा सकती है। अगर लड़की बयान देने लायक हो जाए तो अच्छी बात है अन्यथा तमाम साइंटिफिक एविडेंस और उसके दोस्त के बयान काफी अहम हैं। चूंकि दोस्त खुद भी जख्मी है ऐसे में वह ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाता है। पुलिस को चाहिए कि वह गवाहों की लम्बी लिस्ट न बनाए और केवल महत्वपूर्ण बयानों पर ज्यादा ध्यान केंद्रित करे। डे टू डे ट्रायल होना चाहिए। सम्भव हो तो केवल महिला जज ही मुकदमा देखें। महिला वकील ही पेश हों।  लड़की से बेहूदा सवालों से बचा जाए केवल उन सवालों पर ध्यान केंद्रित किया जाए जो कनविक्शन के लिए जरूरी है। ऐसे केसों में अपील की प्रक्रिया पर भी विचार करना होगा। या तो इसकी समय अवधि और प्रक्रिय तय की जाए या फिर अपील मंसीडर्ड पेटीशन न रखी जाए पर यह सब कुछ पुलिस, सरकार, अदालत व फोरेंसिक एवं साइंटिफिक लैबों पर निर्भर होगा। दुखद पहलू एक यह भी है कि हम उस सरकार व जनप्रतिनिधियों से उम्मीद लगाए बैठे हैं जिनमें से कई विधायक, पूर्व विधायक व सांसद खुद दुष्कर्म के आरोप में गिरफ्तार हो चुके हैं। यह लोग ऐसे गम्भीर आरोपों को भी राजनीतिक मुद्दा बनाकर मामले को आगे बढ़ने से रोक देते हैं। जनता भी ऐसे गम्भीर आरोपी नेताओं को बार-बार क्यों चुनती है, हमारी समझ से तो बाहर है। चूंकि यूपीए सत्ता में है हम कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से बहुत उम्मीद रखते हैं कि वह इस मामले में पहल करके ऐसी व्यवस्था बनवा दें ताकि बलात्कार मामलों का निपटारा शुरू से सजा तक 30 दिन में खत्म हो जाए।

भाजपा हारी, नरेन्द्र मोदी जीते...(2)


 Published on 23 December, 2012
 अनिल नरेन्द्र
हिमाचल प्रदेश के मतदाताओं ने जो परम्परा 1977 में आरम्भ की थी किसी भी पार्टी को लगातार दूसरी बार सरकार नहीं बनाने देंगे, उस पर वह कायम रहे और सत्तारूढ़ भाजपा को हराकर फिर कांग्रेस को सत्ता की डोर सम्भलवा दी। सत्तारूढ़ भाजपा 41 सीटों से 26 सीटों पर सिमट गई और कांग्रेस 23 से 36 सीटें जीती। काफी समय से विवादों और भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरी कांग्रेस के लिए हिमाचल के नतीजे काफी हद तक न केवल संतोषजनक ही रहे बल्कि नई अर्जी देने वाले साबित हो सकते हैं। उत्तराखंड की तर्ज पर हिमाचल में भी कांग्रेस और भाजपा के बीच टक्कर थी। एक्जिट पोल कांटे की टक्कर बता रहे थे, यह गलत साबित हुए। भाजपा जहां पंजाब को दोहराना चाहती थी वहीं कांग्रेस उत्तराखंड की नजीर सामने रखकर चल रही थी। ऐसे में हिमाचल की परम्परा और एंटी एनकम्बेंसी फैक्टर का सहारा लेते हुए कांग्रेस अपने लिए स्पष्ट बहुमत पाने में कामयाब रही। हिमाचल में कांग्रेस की जीत की एक वजह दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित भी रहीं। शीला जी न केवल हिमाचल क्रीनिंग कमेटी की चेयरमैन थीं बल्कि उन्हीं की वजह से कांग्रेस के पूर्व सीएम व वरिष्ठ नेता वीरभद्र सिंह की वापसी हुई। भ्रष्टाचार के आरोप लगने के बाद वीरभद्र सिंह ने केंद्रीय मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था। उसके बाद उन्हें साइड लाइन किया जा रहा था। बाद में उन्हें हिमाचल कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया और भावी मुख्यमंत्री के रूप में पेश किया गया, इसका लाभ कांग्रेस को हुआ। हिमाचल में भाजपा की हार काफी हद तक उसके अन्दर अंतर्पलह की वजह से भी हुई। टिकट बंटवारे में गुटबाजी के चलते सही टिकट वितरण नहीं हुआ। शांता कुमार और जेपी नड्डा, जैसे दिग्गज नेताओं को साइड  लाइन कर नाराज कर दिया गया। नड्डा के कहने पर तीन सीटें दी गईं और तीनों सीटें भाजपा ने जीत लीं। इससे साबित होता है कि गुटबाजी के चलते दिग्गज नेताओं के प्रभाव का सही इस्तेमाल नहीं किया गया। हिमाचल में चुनाव प्रचार करने की कमान खुद भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी ने सम्भाल रखी थी और वह प्रचार के लिए गए भी। जब खुद अध्यक्ष भष्टाचार के आरोपों से घिरा हो तो आप प्रतिद्वंद्वी (वीरभद्र सिंह) के भ्रष्टाचार के आरोप पर क्या कह सकते हैं? भाजपा के मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल शुरू से ही रक्षात्मक मुद्रा में चुनाव लड़े और उन्होंने अपने शासनकाल में विकास की बातें कीं, केंद्र सरकार द्वारा महंगाई के मुद्दे और वीरभद्र सिंह के भ्रष्टाचार पर ज्यादा फोकस रखा। हिमाचल में मतदाताओं में एक बहुत बड़ा वर्ग राज्य कर्मचारियों का है और यह धूमल सरकार के खिलाफ था। वैसे भी वीरभद्र सिंह की आज भी इन पर पकड़ बनी हुई है। हिमाचल में धूमल के सुपुत्र अनुराग ठाकुर की अलोकप्रियता भी एक मुद्दा बनी। हिमाचल में जनता ने धूमल को हराया है। यदि वह कांग्रेस को जिताती तो कांग्रेस 36 सीटों के योग पर न अटकती, यह बहुत ज्यादा होतीं। हिमाचल का परिणाम 2014 लोकसभा चुनाव में इतना महत्व नहीं रखता क्योंकि यहां से कुल चार सांसद आते हैं पर हवा बनाने में मदद जरूर करता है, इसीलिए मैं कहता हूं कि भाजपा हारी, नरेन्द्र मोदी जीते। गुजरात व हिमाचल के चुनाव नतीजों को वर्ष 2014 में होने वाले आम चुनावों से जोड़ना जल्दबाजी होगी। मोदी के लिए यह जीत पार्टी के लिए महत्वपूर्ण है। उनकी यह जीत प्रधानमंत्री पद की दावेदारी मजबूत करती है। लेकिन इस जीत से यह आंकलन कतई नहीं किया जा सकता कि 2014 में भाजपा सत्ता में आ रही है। अगले साल नौ राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं, जिनसे हो सकता है कि आम चुनावों की तस्वीर कुछ साफ हो। मोटे तौर पर अगर हमें गुजरात और हिमाचल का विश्लेषण करना हो तो आर्थिक समृद्धि वाले इन दोनों राज्यों में चुनावों में केंद्रीय मुद्दे मसलन महंगाई, भ्रष्टाचार, बड़े घोटाले हावी नहीं थे। गुजरात में मोदी और हिमाचल में वीरभद्र की पहचान भी चुनाव जीतने का प्रमुख कारण बनी। कुल मिलाकर दोनों ही राष्ट्रीय पार्टियां कांग्रेस और भाजपा इन दोनों राज्यों के परिणामों से खुश होंगी और अपनी-अपनी जीत बताएंगी।

Saturday, 22 December 2012

जापान में लिबरल डेमोकेटिक पार्टी की सत्ता में वापसी


 Published on 22 December, 2012
 अनिल नरेन्द्र
जापान के भावी प्रधानमंत्री शिनजो अबे ने कहा है कि चीन के साथ विवादित सेनकाकू द्वीप के मामले में कोई समझौता नहीं किया जाएगा। उनकी लिबरल डेमोकेटिक पार्टी (एलडीपी) को रविवार को हुए चुनाव में जीत हासिल हुई है। चीन ने भी अबे की जीत को लेकर अपने लिए चेतावनी बताया है। प्रेस कांफ्रेंस में अबे ने कहा कि सेनकाकू द्वीप जापान का प्राकृतिक क्षेत्र है। अंतर्राष्ट्रीय कानून के मुताबिक द्वीप पर जापान का नियंत्रण है। इसे लेकर समझौते की कोई गुंजाइश नहीं है। इस द्वीप को चीन में दियाओउ कहा जाता है। उधर चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता डाना यूनयिंग ने कहा कि हम इस बात को लेकर बहुत चिंतित हैं कि जापन किस दिशा में जाएगा? इस समय क्षेत्रीय विवाद के ठीक तरह से निपटारे की जरूरत है। चीन से जापानी तनाव के बीच रविवार को करीब पांच दशक तक लगातार जापान में राज कर चुकी लिबरल डेमोकेटिक पार्टी तीन साल बाद फिर सत्ता में लौट आई है। आम चुनाव में उसे संसद के निचले सदन की चार सौ अस्सी में से दो सौ चौरानवें सीटें हासिल हुई हैं। उसकी सहयोगी न्यू कोमीतो पार्टी को मिली सीटें जोड़ लें तो यह आंकड़ा दो-तिहाई बहुमत तक पहुंच जाता है। एलडीपी को मिली सफलता की बड़ी वजह यही रही कि लोग योशिहीको नोडा की सरकार और उनकी डेमोकेटिक पार्टी ऑफ जापान से निराश हो चुके थे। डीजीपी ने तीन साल पहले सत्ता सम्भाली तो उसमें दो बड़े वादे किए थे। एक यह कि वह राजनीति और कार्पोरेट के भ्रष्ट गठजोड़ को ध्वस्त कर देगी। दूसरे मंदी से जूझ रही देश की अर्थव्यवस्था को पटरी पर ले आएगी। लेकिन ये वादे हवाई साबित हुए। सत्ताधारी दल में कलह और उसके कई नेताओं पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों ने पार्टी की साख को संकट में डाल दिया। फिर अर्थव्यवस्था में भी कोई उल्लेखनीय सुधार दिखने को नहीं मिला, लोगों का मोहभंग हुआ और एलडीपी को इसका फायदा मिला। डीपीजे महज सत्तावन सीटों पर सिमट गई। बहरहाल, पूर्व प्रधानमंत्री शिनजो अबे को एक बार फिर सत्ता की बागडोर सम्भालने का रास्ता साफ हो गया है। जापान के सबसे मुखर राष्ट्रवादियों में गिने जाने वाले शिनजो अबे ने चुनाव प्रचार के दौरान सारा फोकस अर्थव्यवस्था में तेजी लाने और सेनकाकू द्वीप पर जापान के स्वामित्व को बरकरार रखने पर रखा। इस द्वीप को लेकर चीन से जापान की तकरार चल रही है और दोनों देशों के रिश्तों में इतनी खटास आ चुकी है जितनी पहले कभी नहीं थी। अर्थव्यवस्था को मंदी से उबारने के लिए अबे को कुछ कठिन फैसले करने पड़ सकते हैं, जैसे निर्यात को सम्भालने के लिए जापानी मुद्रा का कुछ अवमूल्यन करना। लेकिन आर्थिक चुनौतियों से पार पाना उनके लिए आसान नहीं होगा। जापान की आबादी में बुजुर्गों का अनुपात बढ़ता जा रहा है और उसी के साथ पेंशन की मार भी। चीन से जापान में आए तनावपूर्ण माहौल को अबे कैसे डील करते हैं यह भी एक चुनौती होगी। पिछले कार्यकाल में शिनजो का रुख भारत के साथ नजदीकी बढ़ाने का था। इसलिए उनकी जीत पर भारत में संतोषजनक प्रतिक्रिया हुई है। अगर चीन और जापान के रिश्तों में और गिरावट आती है तो भारत किस ओर झुकेगा?

भाजपा हारी, नरेन्द्र मोदी जीते...


 Published on 22 December, 2012
अनिल नरेन्द्र
लोकसभा चुनाव का सेमीफाइनल माने जा रहे गुजरात विधानसभा चुनाव मुकाबले में नरेन्द्र मोदी हीरो बनकर उभरे हैं। बेशक गुजरात विधानसभा चुनाव में 2007 के मुकाबले में भाजपा को 2 सीटें कम  मिली हों पर इससे नरेन्द्र मोदी की छवि को कोई नुकसान नहीं होने वाला। श्री नरेन्द्र मोदी के राजनीतिक जीवन में यह सबसे कड़ा मुकाबला था। वह सारी दुनिया के सूडो  सैक्यूलिस्ट से तो लड़ ही रहे थे पर इस बार उनकी लड़ाई अन्दर से भी थी। केशुभाई पटेल, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ, कांग्रेस सभी ने मिलकर मोदी को ठिकाने लगाने का जो प्लान बनाया वह औंधे मुंह गिरा और मोदी ने सबको पछाड़कर साबित कर दिया कि हिन्दुत्व और विकास यह दोनों साथ-साथ चल सकते हैं। मोदी पर सबसे बड़ा आरोप हिन्दू कट्टरवादी होने का लगता था और अल्पसंख्यक विरोधी। इस चुनाव ने इसे भी गलत साबित कर दिया। आलम यह रहा कि धर्मनिरपेक्षता की पैरोकार कांग्रेस को ज्यादातर मुस्लिम बहुल सीटों पर भी मात खानी पड़ी। गुजरात विधानसभा की लगभग डेढ़ दर्जन सीटें मुस्लिम बहुल हैं, जहां मुस्लिम आबादी 12 से 20 फीसद तक है। कांग्रेस के दिग्गज नेता अहमद पटेल के गृह जनपद भरुच की पांचों सीटें भाजपा ने जीत लीं। अल्पसंख्यकों का विश्वास जीतने के लिए मोदी ने राज्य में सद्भावना उपवास के साथ कई यात्राएं की थीं। विकास को मुद्दा बनाते हुए उन्हें साथ चलने का न्यौता दिया था। हालांकि उन्होंने किसी मुस्लिम को चुनाव में टिकट नहीं दिया। कांग्रेस ने चार अल्पसंख्यकों को टिकट दिया दो जीते। गुजरात के मुसलमानों ने मोदी का ट्रेक रिकार्ड भी देखा। गोधरा कांड को छोड़ दें तो गुजरात में कभी सांप्रदायिक दंगा नहीं हुआ। न ही किसी छात्रा का इस तरह से गैंगरेप हुआ जैसा देश की राजधानी दिल्ली में हुआ। गुजरात के मुस्लिम देश के अन्य राज्यों के मुकाबले सबसे ज्यादा आर्थिक दृष्टि से सम्पन्न हैं। उन्होंने कहा होगा कि ठीक है नरेन्द्र मोदी बेशक हिटलर हों, तानाशाह हों पर हम उनकी छत्रछाया में सुरक्षित तो हैं, हम अपने परिवार का पालन-पोषण अच्छे से कर सकते हैं। मोदी की जीत में महिलाओं का विशेष योगदान रहा है। मोदी के शासनकाल में 13 फीसद महिलाओं के मतदान दर में वृद्धि हुई है। युवाओं को मोदी इसलिए भा गए क्योंकि उन्हें ऐसा शासक चाहिए जो दबंग हो दब्बू नहीं। कांग्रेस को लगा था कि केशुभाई पटेल के चुनाव में कूदने से लड़ाई त्रिकोणीय हो जाएगी और भाजपा का वोट शेयर घटेगा। वोट शेयर तो घटा है पर लड़ाई से मोदी का कोई ज्यादा नुकसान नहीं हुआ। उन्हें दो सीटें कम मिलीं। मोदी ने अन्य पिछड़ी जातियों पर खास फोकस किया। दक्षिण गुजरात की जनजातियों के लिए कुछ असरदार अधिकारियों के माध्यम से विकास परियोजनाओं को लागू कराकर पहले से ही पैठ बना ली। कांग्रेस ने अपने पिछले चुनाव से सबक सीखे हैं। उदाहरण के तौर पर इस बार राहुल गांधी को आगे नहीं किया। बिहार और उत्तर प्रदेश के कटु अनुभव से सीख ली और लड़ाई मोदी बनाम राहुल नहीं होने दी। पर टिकट बंटवारा दिल्ली से राहुल मंडली ने किया और नरहरि अमीन, रावल और सागर रायक्का जैसे दिग्गजों को टिकट न देकर नाराज कर लिया और यह अपने समर्थकों के साथ मिलकर कांग्रेस उम्मीदवारों को ही हरवाने में जुट गए। कांग्रेस बार-बार एक गलती दोहराती आ रही है। इस बार भी कांग्रेस अपनी पार्टी  के किसी ऐसे नेता को प्रोजैक्ट नहीं कर सकी जो मुख्यमंत्री पद के लिए विश्वसनीय हो और जनता को स्वीकार्य हो। दूसरी तरफ भाजपा के घोषित उम्मीदवार न सिर्प ताकतवर थे बल्कि भावी प्रधानमंत्री के रूप में प्रचारित थे। कांग्रेस ने न तो सुरक्षा मामले में और न ही आर्थिक विकास पर मतदाताओं में मोदी के खिलाफ माहौल बनाने में आक्रामक रुख अख्तियार किया। लगता है कि गुजरात में तमाम रणनीति बनाने के बावजूद कांग्रेस हार मानकर चल रही थी। वह इस कहावत पर ज्यादा ध्यान दे रही कि हारा हुआ वोट प्रतिशत गिनता है जीता हुआ विजयी सीटें गिनता है। हमारी राय में अगर एक लाइन में इस चुनाव का निष्कर्ष निकाला जाए तो हम कहेंगे कि भाजपा हारी नरेन्द्र मोदी जीते।