Published on 30 December, 2012
दिल्ली गैंगरेप की अभागी छात्रा ने 13 दिन जिन्दगी-मौत की लड़ाई लड़ने के बाद शनिवार सुबह अपने प्राण त्याग दिए। सिंगापुर के विश्व प्रसिद्ध एलिजाबेथ अस्पताल में डाक्टरों के तमाम प्रयासों के बावजूद उस बेचारी को बचाया नहीं जा सका। शुक्रवार से ही उसकी तबीयत बिगड़नी शुरू हो गई थी। शुक्रवार रात को उसके महत्वपूर्ण अंगों के निक्रिय होने के संकेत मिलने लगे थे। माउंट एलिजाबेथ अस्पताल के मुख्य कार्यकारी अध्यक्ष केल्विन लोह ने एक बयान में कहा कि रात को नौ बजे (भारतीय समयानुसार शाम साढ़े छह बजे) मरीज की स्थिति और बिगड़ गई है, उसके महत्वपूर्ण अंगों के निक्रिय होने से वह निहायत क्रिटिकल स्टेज में है। कटु सत्य तो यह है कि उस बेचारी के बचने की कोई उम्मीद नहीं थी। टेक्निकल दृष्टि से उस बेचारी की मृत्यु तो सफदरजंग अस्पताल में ही हो गई थी। यह सारा ड्रामा तो सरकार ने रिएक्शन कंट्रोल करने हेतु रचा। अब जब उस छात्रा की मृत्यु हो गई है, उसे एकाएक सिंगापुर भेजने का सरकार का फैसला भी सवालों के घेरे में आ जाएगा। खुद डाक्टरों ने सरकार के इस फैसले पर अंगुली उठानी शुरू कर दी है। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार सफदरजंग अस्पताल में भर्ती 23 वर्षीय गैंगरेप पीड़िता को इलाज के लिए सिंगापुर भेजने के पीछे मेडिकल कारण कम और राजनीतिक कारण ज्यादा नजर आ रहे हैं। अखबार के अनुसार जब सामूहिक दुष्कर्म की शिकार पीड़िता को सिंगापुर शिफ्ट करने का फैसला लिया गया तो इलाज कर रहे डाक्टरों से बस इतना पूछा गया कि क्या पीड़िता सिंगापुर जाने की स्थिति में है? सरकार ने इलाज कर रहे डाक्टरों की विशेषज्ञ टीम से यह नहीं पूछा कि सिंगापुर शिफ्ट किया जाए या नहीं? या फिर सिंगापुर में वह इलाज होगा जो भारत में नहीं हो सकता। डाक्टरों की एक्सपर्ट टीम में एम्स, गोबिंद बल्लभ पंत हॉस्पिटल और सफदरजंग हॉस्पिटल के डाक्टर शामिल थे। डाक्टरों ने आरोप लगाया कि सरकार फैसला ले चुकी थी कि पीड़िता को सिंगापुर भेजा जाए। डाक्टरों का दावा है कि हम पिछले 11 दिनों से मरीज को बेहतर चिकित्सा दे रहे थे। रिपोर्ट के अनुसार पीड़िता को सिंगापुर भेजने का निर्णय डाक्टरों का नहीं था बल्कि सरकार की तरफ से लिया गया फैसला था। दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल ने तो आंत का ट्रांसप्लांट का ऑफर तक दिया था। भारत में डाक्टरों की प्रसिद्धि विश्वभर में मशहूर है। हजारों विदेशी भारत में अपना इलाज करवाने के लिए आते हैं। सिंगापुर शिफ्ट करने का फैसला राजनीतिक था। सरकार बुरी तरह से डर गई थी कि अगर पीड़िता ने सफदरजंग अस्पताल में दम तोड़ा तो पब्लिक रिएक्शन कंट्रोल करना मुश्किल हो जाएगा। रिएक्शन तो अब भी होगा। हां, एक फर्प जरूर आ गया है कि अब जब छात्रा की मौत हो चुकी है इस निकम्मी, निक्रिय, इंसेंसटिव सरकार के पास अब आरोपियों को फांसी पर न लटकाने का कोई बहाना नहीं बचा। हम पीड़िता के परिवार को बस इतना कहना चाहते हैं कि आज आपके दुख में सारा देश शरीक है और हम प्रार्थना करते हैं कि मृत छात्रा की आत्मा को शांति मिले।
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