Saturday 1 December 2012

जी न्यूज सम्पादकों की गिरफ्तारी ने खड़े किए कई सवाल


 Published on 1 December, 2012
 अनिल नरेन्द्र
 जी न्यूज के वरिष्ठ सम्पादक सुधीर चौधरी और जी बिजनेस के सम्पादक समीर आहलूवालिया की गिरफ्तारी के साथ ही कई सवाल खड़े हो गए हैं। क्या लोकतंत्र के दो स्तम्भ अपनी-अपनी हैसियत व अधिकारों का दुरुपयोग तो नहीं कर रहे हैं। दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच ने लम्बी पड़ताल के बाद ये गिरफ्तारियां की हैं। कारोबारी जिन्दल ग्रुप के चेयरमैन एवं कांग्रेसी सांसद नवीन जिन्दल ने आरोप लगाया था कि कोयला घोटाले की कवरेज दबाने के बदले इन सम्पादकों ने उनकी कम्पनी से 100 करोड़ रुपए की मांग की थी। इससे तंग आकर जिन्दल ने इस बातचीत का स्टिंग ऑपरेशन करवा लिया था। इस मामले की पड़ताल करने वाली पुलिस टीम का दावा है कि उसने सीडी की फोरेंसिक जांच करा ली है। दूसरी ओर जी न्यूज ने जिन्दल के इन आरोपों का खंडन किया है। जी न्यूज के सीईओ आलोक अग्रवाल ने आरोप लगाया कि संप्रग-2 सरकार अपनी गलतियों के चलते मीडिया को डरा-धमका रही है। अग्रवाल और जी समूह के वकील आरके हांडू ने गिरफ्तारी और उसके समय पर सवाल खड़ा करते हुए कहा कि जानबूझ कर छुट्टी वाले दिन से पहले गिरफ्तारी की गई ताकि नियमित जमानत नहीं मिल सके। हांडू ने कहा कि गिरफ्तारी उस धारा के तहत की गई है जो गैर जमानती अपराध पर लागू होती है न कि जमानती के लिए। आलोक अग्रवाल ने कहा कि देश की आजादी के बाद 65 साल में यह दूसरी बार है जब मीडिया पर पाबंदी लगाने की कोशिश की गई है। हाल ही में कांग्रेस के एक मंत्री ने इंडिया टुडे समूह को जमकर  गालियां दीं और अदालत में घसीटा है। सवाल यहां यह उठता है कि क्या कांग्रेस और मनमोहन सिंह सरकार अपने काले कारनामों को दबाने के लिए अब मीडिया को डरा-धमका रही है या फिर इलैक्ट्रॉनिक चैनलों से सौदा करके कोई ब्रेकिंग न्यूज पर रोक लगाना चाहती है? यह तो किसी से छिपा नहीं कि कुछ कांग्रेसियों को तो इतना गरूर है कि वह किसी और को तो कुछ समझते ही नहीं। यहां यह कहना भी उचित ही होगा कि कुछ इलैक्ट्रॉनिक चैनल वाले भी राजनीतिक दलों से सौदेबाजी करते हैं। हम तो यह भी देख रहे हैं कि जी न्यूज को दूसरे चैनल, प्रिंट मीडिया, नेशनल ब्राडकास्टिंग एसोसिएशन व प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया सपोर्ट नहीं कर रहे हैं। क्या इसका मतलब यह है कि जिन्दल के आरोपों में दम है? या फिर जी चैनल से इतनी नफरत व जलन है? प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया प्रमुख जस्टिस एम. काटजू ने तो यह मांग कर डाली कि मामले की जांच तक जी न्यूज का लाइसेंस रद्द कर दिया जाना चाहिए। क्योंकि इस प्रकरण से पत्रकारों की साख पर आंच आई है। इस शह-मात के खेल में फिलहाल पहला राउंड नवीन जिन्दल ने जीत लिया है। दिल्ली पुलिस ने सारी कार्रवाई सीएफएसएल की रिपोर्ट के आधार पर की है। यह दिल्ली है, जहां पत्रकार की हैसियत को कम करके आंकना सम्भव नहीं है। पुलिस को यह बात अच्छी तरह से पता है कि वह किसी चलताऊ, गुटका अखबार के सम्पादक के खिलाफ कार्रवाई नहीं कर रही है। वह एक समर्थ चैनल के खिलाफ कार्रवाई कर रही है जो अपने हित रक्षक सम्पादकों को बचाने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ेगा। वैसे भी जब संसद का सत्र चल रहा हो पुलिस इतने बड़े मीडिया समूह पर हाथ डालने से पहले 10 बार  सोचेगी। गिरफ्तार सम्पादकों को इस बात का संतोष जरूर होगा कि जी मालिकों ने उनका साथ नहीं छोड़ा और उनके बचाव में लगे हुए हैं। बचाव की बात से प्रश्न यहां यह भी उठता है कि जी न्यूज ने अपने बचाव में क्या सबूत पेश किए हैं? क्या जी ने जिन्दल के वरिष्ठ अधिकारियों से बातचीत को टेप नहीं किया? जी वाले दावा कर रहे हैं कि घंटों की बातचीत में कुछ मिनटों का ही टेप जिन्दल समूह ने पेश किया है। बाकी टेप कहां है? तीन-चार घंटों की हुई बातचीत में 12-14 मिनट का टेप निकाल कर पेश करने से पूरी कहानी साफ नहीं होती। फिर इतना भी तय है कि बातचीत सौदेबाजी की दोनों पक्षों के बीच हुई, इसके बावजूद पुलिस ने एकतरफा कार्रवाई क्यों की? फिर इतनी सख्त धाराएं लगाना क्या जरूरी था? यहां यह भी प्रश्न उचित है कि पैसे का कोई लेन-देन नहीं हुआ सिर्प बातें हुई हैं। इसमें कोई संदेह नहीं कि इस प्रकरण से पत्रकारों की साख पर आंच आई है लेकिन यह सवाल जरूर अहम है कि कोयला घोटाले के गुरू घंटालों के खिलाफ सरकार ने इतनी फुर्ती क्यों नहीं दिखाई? ऐसे में सरकार की नीयत पर सवाल उठना स्वाभाविक ही है।

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