Published on 8 December, 2012
भारतीय खेलों को झटके तो अकसर लगते ही रहते हैं पर इतना तगड़ा झटका शायद पहले कभी नहीं लगा जितना चार दिसम्बर को लगा। अगर हम इसे भारतीय खेलों का काला दिन कहें तो गलत नहीं होगा। चार दिसम्बर को अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक समिति ने भारतीय ओलंपिक संघ के चुनाव में सरकारी हस्तक्षेप को ओलंपिक चार्टर का उल्लंघन बताते हुए आईओए को ओलंपिक आंदोलन से निलंबित कर दिया। आईओसी के कार्यकारी बोर्ड की स्विटजरलैंड के लुसाने में शुरू हुई दो दिवसीय बैठक में आईओए को निलंबित करने का फैसला किया गया। आईओसी ने आईओए के चुनाव खेल संहिता के तहत कराने पर पहले ही नाराजगी व्यक्त करते हुए स्पष्ट कर दिया था कि वह कार्यकारी बोर्ड की बैठक में भारत के निलंबन का प्रस्ताव पेश करेगी और उसने आखिर अब आईओए को निलंबित कर ही दिया। इस निलंबन के फैसले का दूरगामी असर हो सकता है। इसका मतलब है कि भारत की सर्वोच्च खेल संस्था को आईओसी से किसी भी तरह की कोई मदद नहीं मिलेगी और इसके अधिकारी ओलंपिक बैठकों में हिस्सा लेने तथा खिलाड़ी ओलंपिक स्पर्धाओं में हिस्सा लेने से वंचित हो जाएंगे। भारतीय एथलीट अपने राष्ट्रध्वज के तहत ओलंपिक स्पर्धाओं में हिस्सा नहीं ले सकेंगे। दरअसल आईओसी ने आईओए को आगाह किया था कि उसके चुनाव सिर्प ओलंपिक चार्टर के मुताबिक हो सकते हैं और चुनावों में सरकारी खेल संहिता का इस्तेमाल करने पर उसे निलंबित किया जा सकता है। बावजूद इसके आईओए ने यह कहते हुए आगे कदम बढ़ाया कि वह दिल्ली हाई कोर्ट के फैसले से बंधे हुए हैं। खेल मंत्री जितेन्द्र सिंह, आईओए के कार्यवाहक अध्यक्ष विजय कुमार मल्होत्रा और आईओए चुनाव से पहले निर्विरोध चुने गए अभय सिंह चौटाला ने फैसले को दुर्भाग्यपूर्ण बताया है। सारा विवाद पांच दिसम्बर को होने वाले भारतीय ओलंपिक संघ के चुनावों को लेकर खड़ा हुआ है। खेल मंत्रालय के स्पोर्ट्स कोड के तहत हो रहे चुनावों को लेकर आईओसी ने कई बार चेतावनी देकर निलंबन की धमकी दी थी। आईओए ने हाई कोर्ट के आदेश की मजबूरी बताते हुए उम्मीद की कि मामला बातचीत के जरिए सुलझ जाए पर ऐसा हो नहीं सका। अब आगे तो यह हो सकता है कि भारतीय ओलंपिक एसोसिएशन आईओसी के इस निलंबन के फैसले के खिलाफ मध्यस्थता अदालत में चुनौती दे सकती है। आईओए चुनाव में महासचिव पद पर निर्विरोध निर्वाचित ललित भनोट 2010 के राष्ट्रमंडल खेल घोटाले के आरोपी हैं। वे 11 महीने जेल में भी रह चुके हैं। आईओसी को ऐसे दागदार व्यक्ति के संगठन में आने पर आपत्ति है। अब सवाल यह है कि इस समस्या से कैसे निपटा जाए? अगर आईओए खेल संहिता की बातों को सही समझती है तो उसे अपने संविधान में शामिल कर सकती है। ऐसा करने से ओलंपिक चार्टर का उल्लंघन नहीं होगा। यह निहायत अफसोस की बात है कि पिछले लंदन ओलंपिक्स में पहली बार भारत ने छह पदक जीतकर अपनी धाक जमानी शुरू की थी और अब उस पर पाबंदी लग गई है। वैसे सबसे पहले आईओसी से मान्यता वाले गेम्स में एशियाई खेलों का 2014 में आयोजन होना है और उस समय तक अपने हक में फैसला कराने के लिए भारत के पास पर्याप्त समय है। वैसे भी आईओसी की कार्यकारी बोर्ड की साल में चार बैठकें होती हैं और अगली बैठक अगले साल फरवरी माह में होगी और उस समय तक आईओए अपना पक्ष रखकर इस फैसले को बदलवा सकता है। अगर आईओए ओलंपिक चार्टर और भारतीय खेल संहिता को लेकर पैदा विवाद पर अपना पक्ष रखने में कामयाब हो जाता है तो भी ललित भनोट के चुनाव पर उठे सवालों का जवाब देना आसान नहीं होगा। ओलंपिक खेल संघ में गुटबाजी और बढ़ती राजनीति का ही यह दुष्परिणाम है। दरअसल ओलंपिक संघ को सरकारी के साथ-साथ राजनीतिक हस्तक्षेप से भी दूर रखने की जरूरत है।
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