Friday 14 December 2012

हर फतवा सब पर लागू नहीं ः इस्लामी विद्वान


 Published on 14 December, 2012
 अनिल नरेन्द्र
बांह पर टैटू है तो नमाज जायज नहीं है, मुस्लिम महिला रिसेप्शनिस्ट नहीं हो सकती, मोबाइल फोन पर पवित्र कुरान की आयतें अपलोड नहीं की जा सकतीं ये कुछ ऐसे फतवे हैं जिनको लेकर हाल के दिनों में कई सवाल खड़े हुए हैं। शरीर पर गुदवाए जाने वाले टैटू को मुस्लिमों के लिए मुफ्ती-ए-कराम ने गैर शरई बताया है। उन्होंने कहा कि टैटू गुदवाने से शरीर की खाल पर खास स्याही (रंग) आ जाता है, जिस पर वजू का पानी भी असर नहीं करता। दारुल उलूम के फतवा विभाग से देश के ही एक व्यक्ति ने यह पश्न पूछा था कि क्या वह टैटू गुदवा कर नवाज अता कर सकता है। दारुल उलूम (देवबंद) ने एक अन्य फतवे में मुस्लिम महिलाओं को रिसेप्शनिस्ट के पद पर नियुक्त किए जाने के खिलाफ एक फतवा जारी करते हुए इसे अवैध तथा शरिया कानून के खिलाफ करार दिया। पाक स्थित एक कंपनी ने देवबंद से पूछा था कि क्या वह एक मुस्लिम महिला को रिसेप्शनिस्ट नियुक्त कर सकती है। इसके जवाब में 29 नवम्बर को यह फतवा जारी किया। बड़ा सवाल यह है कि क्या किसी संस्था या मुफ्ती की ओर से जारी किया गया फतवा क्या सभी मुसलमानों पर लागू होगा? पमुख मुस्लिम विद्वानों की मानें तो हर फतवा सभी पर लागू नहीं हो सकता क्योंकि यह संदर्भ और परिस्थिति विशेष पर निर्भर करता है। हालांकि मूल आस्था से जुड़े फतवों पर किसी मुसलमान के लिए अमल करना अनिवार्य है। जामिया मिलिया इस्लामिया के इस्लामी अध्ययन विभाग के पमुख पोफेसर अख्तरूल वासे का कहना है कि ज्यादातर फतवों के साथ परिस्थिति और संदर्भ जुड़ा होता है और ऐसे में वह सब लागू नहीं हो सकते। वासे ने कहाö सभी फतवे सब पर लागू नहीं होते, फतवा किसी सवाल का जवाब होता है। ऐसे में महत्वपूर्ण बात यह है कि सवाल किस परिस्थिति और संदर्भ में पूछा गया है। उदाहरण के तौर पर मुस्लिम महिला के रिसेप्शनिस्ट होने से जुड़ा फतवा सब पर लागू नहीं हो सकता। देश की पमुख इस्लामी शिक्षण संस्था दारुल उलूम देवबंद के फतवा विभाग दारुल इफ्ता की ओर से हाल ही में दिए गए कई फतवों की खासी चर्चा रही। मसलन, उसने कहा कि बांह पर टैटू होने और अलकोहल युक्त परफ्यूम का इस्तेमाल करके नवाज अता नहीं की जा सकती। इसके साथ ही उसने महिलाओं के रिसेप्शनिस्ट होने अथवा मोबाइल फोन में कुरान की आयतें डाउनलोड करने के खिलाफ भी फतवा दिया। दारुल उलूम की तरह सुन्नी मुसलमानों की एक अन्य संस्था बरेलबी मरकज भी कई बार ऐसे फतवे देती रहती है। कुछ महीने पहले उसने फतवा दिया था कि इस्लाम में कृत्रिम गर्भाधान (आरटिफिशियल इंसेमीनेशन) नाजायज है। इस्लामी मसलों पर कई अंतर्राष्ट्रीय शोधों से जुड़े रहे पोफेसर जुनैद हारिस का कहना है, यह स्पष्ट रूप से जान लेने की जरूरत है कि फतवा खुदा का हुक्म नहीं है जो पूरी तरह सही हो। अगर कोई फतवा अटपटा लगता है तो उसके बारे में किसी विद्वान से पता किया जा सकता है। एक फतवा सभी पर लागू नहीं हो सकता। उन्होंने कहा कि वक्त के साथ बहुत सारी चीजें बदली हैं।

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