Published on 21 December, 2012
अनिल नरेन्द्र
हिमालय के पूर्वी कारकोरम रेंज में स्थित सियाचिन दुनिया के सबसे ऊंचे युद्धस्थलों में से एक है। सियाचिन दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा हिमनद (ग्लेशियर) है। भारत-पाकिस्तान के बीच सामरिक रूप से महत्वपूर्ण है। लेकिन सियाचिन में तैनात फौजियों की जिन्दगी काफी मुश्किल है। कब मौत आ जाए कोई नहीं बता सकता। दुश्मन की गोलियों से कहीं ज्यादा मौसम की करवट जानलेवा साबित होती है। रविवार को भी ऐसा ही हुआ। रविवार को हिमस्खलन की चपेट में आकर हमारी सेना के छह बहादुर जवान बर्प में दबकर शहीद हो गए। एक जवान लापता है। मारे गए सैनिक फर्स्ट असम रेजीमेंट के थे। रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता ले. कर्नल जेएस बरार ने बताया कि यह हिमस्खलन सुबह सवा छह बजे के करीब सियाचिन के दक्षिण क्षेत्र में हनीफ सब-सेक्टर में हुआ। तड़के इसी इलाके में बर्फीला तूफान भी आया था। तूफान थमने के कुछ ही देर बाद हिमस्खलन शुरू हो गया और ये सैनिक उसी समय अपनी चौकी से दूसरी चौकी की तरफ जा रहे थे और इसकी चपेट में आ गए। खराब मौसम के कारण राहत कार्य में रुकावट आई और दोपहर बाद तक बर्प के नीचे दबे छह जवानों को मृत अवस्था में निकाला गया। एक सैनिक लापता है। सियाचिन में अगर मौत आ जाए तो चिता भी नसीब नहीं होती। रक्षा विशेषज्ञ मानते हैं कि सियाचिन के सामरिक महत्व को देखते हुए यहां भारतीय सेना का रहना जरूरी है। यहां से लद्दाख, लेह और चीन के कुछ हिस्सों पर नजर रखने में मदद मिलती है। 21 हजार फुट से अधिक समुद्र तल से सियाचिन की ऊंचाई है। 70 किलोमीटर लम्बी है सियाचिन की सीमा 0 से 40 डिग्री सेल्सियस नीचे रहता है तापमान। भारत प्रति वर्ष लगभग 1500 करोड़ रुपए खर्च करता है सियाचिन में रहने का। वहीं पाकिस्तान सियाचिन के दूसरे छोर जो थोड़ा नीचा है पर 500 करोड़ रुपए प्रति वर्ष खर्च करता है। पिछले 28 साल से भारत-पाक सियाचिन में जंग लड़ रहे हैं। भारत-पाक में सियाचिन से सेना हटाने के लिए कम से कम 12 दौर की वार्ता हो चुकी है पर पाकिस्तान के अड़ियल व्यवहार और स्टैंड की वजह से भारत अपना सामरिक एडवांटेज खोना नहीं चाहता। पाकिस्तान को भी सियाचिन में अपने सैनिकों की कुर्बानी देनी पड़ रही है। सात अप्रैल 2012 (इसी वर्ष) एक हिमस्खलन की चपेट में आए 135 पाक सैनिक मारे गए थे। सियाचिन विवाद को लेकर पाकिस्तान और भारत पर आरोप लगता है कि 1989 में दोनों देशों के बीच यह सहमति हुई थी कि भारत अपनी पुरानी स्थिति पर वापस लौटे पर पाकिस्तान मौजूदा पोजीशन को रेखांकित करने से मना करता आ रहा है और चाहता है कि भारत अपना सामरिक एडवांटेज समाप्त कर दे। सियाचिन का उत्तरी भाग कारकोरम भारत के पास है, पश्चिम का कुछ भाग पाकिस्तान के पास है और कुछ हिस्से पर चीन का कब्जा है। ले. जनरल शंकर प्रसाद का कहना है कि इन मुद्दों पर समझौता हो सकता है क्योंकि यहां पर सैनिक गतिविधियां बन्द करना दोनों के हित में है पर मुश्किल यह है कि दोनों देशों में आपसी भरोसे की कमी है, दोनों को डर लगता है कि कोई चौकी छोड़ी तो दूसरा उस पर कब्जा कर लेगा। दोनों देशों में सियाचिन की बर्प कितनी पिघलती है इसके लिए वक्त का इंतजार करना होगा।
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