Friday, 7 December 2012

वीआईपी मूवमेंट से परेशान जनता ः साल्वे का कहना सही है


 Published on 7 December, 2012
अनिल नरेन्द्र
वीआईपी मूवमेंट की वजह से ट्रैफिक जाम में घंटों फंसे रहना दिल्लीवासियों की मजबूरी बन गई है। आए दिन किसी न किसी वीआईपी मूवमेंट की वजह से कभी रोड बन्द रहती है तो कभी रास्ता डाइवर्ट होता है। अगर किसी वीआईपी को राष्ट्रपति भवन या प्रधानमंत्री निवास से रामलीला मैदान जाना हो तो सारा रास्ता (एक तरफ का) बन्द कर दिया जाता है। हद तो तब हो जाती है जब बहादुरशाह जफर मार्ग पर ढाबों, दुकानों को बन्द कर दिया जाता है। कभी-कभी तो गाड़ियों को पार्प भी नहीं करने दिया जाता। जबकि वीआईपी मोटर कैसकेड को सड़क के दूसरे छोर (सामने वाले) से जाना होता है। प्रेस वालों को अपने दफ्तर में ही पहुंचने में मुश्किलों का सामना करना पड़ता है और राजघाट तो प्रेस एरिया के पीछे से ही जाना पड़ता है और वहां आए दिन कोई न कोई विदेशी वीआईपी आता ही रहता है। यह संतोष की बात है कि सीनियर एडवोकेट हरीश साल्वे का मानना है कि पुलिस को लॉ एण्ड ऑर्डर मेनटेन करने का अधिकार जरूर है लेकिन इस नाम पर आम आदमी को परेशान नहीं किया जा सकता। पुलिस को यह अधिकार नहीं कि वह वीआईपी मूवमेंट के नाम पर आम आदमी के मूल अधिकारों में दखल दे। पुलिस कानून व्यवस्था को लागू कराए, लेकिन उसे यह अधिकार नहीं दिया गया है कि इसका किसी भी तरह से गलत इस्तेमाल किया जाए। साल्वे कहते हैं कि आम रास्ता सबके लिए होता है लेकिन हमारे देश में सॉफ्ट ऑप्शन होता है कि वीआईपी मूवमेंट के दौरान रास्ते को सबसे पहले बन्द कर दिया जाए। यह ठीक है कि पुलिस को अगर लगता है तो वह जरूरी होने पर ट्रैफिक को डाइवर्ट कर सकती है। लेकिन आम आदमी को कतई परेशान नहीं किया जा सकता। वीआईपी मूवमेंट के नाम पर आम आदमी के मूल अधिकार पर दखल कैसे हो सकता है? भारत लोकतांत्रिक देश है, लेकिन पुलिसिया कार्रवाई राजतंत्र का कल्चर दिखाती है। जिस तरह से वीआईपी मूवमेंट के नाम पर आए दिन ट्रैफिक में लोगों को फंसने से परेशान होना पड़ रहा है, इसे सहा नहीं जा सकता। जाम में फंसी गाड़ियों की वजह से पॉल्यूशन भी बढ़ रहा है और यह सब कहीं न कहीं हमारी लाइफ एण्ड लिबर्टी सहित दूसरे मूल अधिकारों में दखल है। साल्वे के मुताबिक अगर पुलिस कारगर कदम नहीं उठाती तो संविधान के आर्टिकल 14, 19 और 21 के उल्लंघन के मामले में सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया जाएगा। मैं अमेरिका, इंग्लैंड इत्यादि देशों में गया हूं। वहां कहीं भी इस तरह से सड़कें बन्द नहीं की जातीं और न ही सड़कों से पार्किंग को हटाने पर मजबूर किया जाता है। हां कुछ मिनटों के लिए उस सड़क पर ट्रैफिक रोक दिया जाता है जहां से वीआईपी मोटर कैसकेड आ रहा है। भारत में तो हद ही हो गई है। दिल्ली में एक साल में 100 से अधिक वीआईपी रूट लगते हैं। रूट लगाने का मतलब होता है कि उस रोड पर कम से कम दो घंटे पहले पुलिस फोर्स को तैनात कर देना, एनएसजी की तैनाती हो जाना और ट्रैफिक बन्द कर देना। उम्मीद है कि एसपीजी और दिल्ली पुलिस हरीश साल्वे की बातों पर ध्यान देकर सुधार करेगी और मामला सुप्रीम कोर्ट तक नहीं पहुंचेगा।

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