Sunday, 23 December 2012

भाजपा हारी, नरेन्द्र मोदी जीते...(2)


 Published on 23 December, 2012
 अनिल नरेन्द्र
हिमाचल प्रदेश के मतदाताओं ने जो परम्परा 1977 में आरम्भ की थी किसी भी पार्टी को लगातार दूसरी बार सरकार नहीं बनाने देंगे, उस पर वह कायम रहे और सत्तारूढ़ भाजपा को हराकर फिर कांग्रेस को सत्ता की डोर सम्भलवा दी। सत्तारूढ़ भाजपा 41 सीटों से 26 सीटों पर सिमट गई और कांग्रेस 23 से 36 सीटें जीती। काफी समय से विवादों और भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरी कांग्रेस के लिए हिमाचल के नतीजे काफी हद तक न केवल संतोषजनक ही रहे बल्कि नई अर्जी देने वाले साबित हो सकते हैं। उत्तराखंड की तर्ज पर हिमाचल में भी कांग्रेस और भाजपा के बीच टक्कर थी। एक्जिट पोल कांटे की टक्कर बता रहे थे, यह गलत साबित हुए। भाजपा जहां पंजाब को दोहराना चाहती थी वहीं कांग्रेस उत्तराखंड की नजीर सामने रखकर चल रही थी। ऐसे में हिमाचल की परम्परा और एंटी एनकम्बेंसी फैक्टर का सहारा लेते हुए कांग्रेस अपने लिए स्पष्ट बहुमत पाने में कामयाब रही। हिमाचल में कांग्रेस की जीत की एक वजह दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित भी रहीं। शीला जी न केवल हिमाचल क्रीनिंग कमेटी की चेयरमैन थीं बल्कि उन्हीं की वजह से कांग्रेस के पूर्व सीएम व वरिष्ठ नेता वीरभद्र सिंह की वापसी हुई। भ्रष्टाचार के आरोप लगने के बाद वीरभद्र सिंह ने केंद्रीय मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था। उसके बाद उन्हें साइड लाइन किया जा रहा था। बाद में उन्हें हिमाचल कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया और भावी मुख्यमंत्री के रूप में पेश किया गया, इसका लाभ कांग्रेस को हुआ। हिमाचल में भाजपा की हार काफी हद तक उसके अन्दर अंतर्पलह की वजह से भी हुई। टिकट बंटवारे में गुटबाजी के चलते सही टिकट वितरण नहीं हुआ। शांता कुमार और जेपी नड्डा, जैसे दिग्गज नेताओं को साइड  लाइन कर नाराज कर दिया गया। नड्डा के कहने पर तीन सीटें दी गईं और तीनों सीटें भाजपा ने जीत लीं। इससे साबित होता है कि गुटबाजी के चलते दिग्गज नेताओं के प्रभाव का सही इस्तेमाल नहीं किया गया। हिमाचल में चुनाव प्रचार करने की कमान खुद भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी ने सम्भाल रखी थी और वह प्रचार के लिए गए भी। जब खुद अध्यक्ष भष्टाचार के आरोपों से घिरा हो तो आप प्रतिद्वंद्वी (वीरभद्र सिंह) के भ्रष्टाचार के आरोप पर क्या कह सकते हैं? भाजपा के मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल शुरू से ही रक्षात्मक मुद्रा में चुनाव लड़े और उन्होंने अपने शासनकाल में विकास की बातें कीं, केंद्र सरकार द्वारा महंगाई के मुद्दे और वीरभद्र सिंह के भ्रष्टाचार पर ज्यादा फोकस रखा। हिमाचल में मतदाताओं में एक बहुत बड़ा वर्ग राज्य कर्मचारियों का है और यह धूमल सरकार के खिलाफ था। वैसे भी वीरभद्र सिंह की आज भी इन पर पकड़ बनी हुई है। हिमाचल में धूमल के सुपुत्र अनुराग ठाकुर की अलोकप्रियता भी एक मुद्दा बनी। हिमाचल में जनता ने धूमल को हराया है। यदि वह कांग्रेस को जिताती तो कांग्रेस 36 सीटों के योग पर न अटकती, यह बहुत ज्यादा होतीं। हिमाचल का परिणाम 2014 लोकसभा चुनाव में इतना महत्व नहीं रखता क्योंकि यहां से कुल चार सांसद आते हैं पर हवा बनाने में मदद जरूर करता है, इसीलिए मैं कहता हूं कि भाजपा हारी, नरेन्द्र मोदी जीते। गुजरात व हिमाचल के चुनाव नतीजों को वर्ष 2014 में होने वाले आम चुनावों से जोड़ना जल्दबाजी होगी। मोदी के लिए यह जीत पार्टी के लिए महत्वपूर्ण है। उनकी यह जीत प्रधानमंत्री पद की दावेदारी मजबूत करती है। लेकिन इस जीत से यह आंकलन कतई नहीं किया जा सकता कि 2014 में भाजपा सत्ता में आ रही है। अगले साल नौ राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं, जिनसे हो सकता है कि आम चुनावों की तस्वीर कुछ साफ हो। मोटे तौर पर अगर हमें गुजरात और हिमाचल का विश्लेषण करना हो तो आर्थिक समृद्धि वाले इन दोनों राज्यों में चुनावों में केंद्रीय मुद्दे मसलन महंगाई, भ्रष्टाचार, बड़े घोटाले हावी नहीं थे। गुजरात में मोदी और हिमाचल में वीरभद्र की पहचान भी चुनाव जीतने का प्रमुख कारण बनी। कुल मिलाकर दोनों ही राष्ट्रीय पार्टियां कांग्रेस और भाजपा इन दोनों राज्यों के परिणामों से खुश होंगी और अपनी-अपनी जीत बताएंगी।

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