Tuesday 4 December 2012

मामला रॉबर्ट वाड्रा को क्लीन चिट देने का


 Published on 4 December, 2012
 अनिल नरेन्द्र 
बहुचर्चित रॉबर्ट वाड्रा भूमि घोटाले कांड पर प्रधानमंत्री कार्यालय ने वाड्रा को क्लीन चिट दे दी है। इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खंडपीठ में चल रहे एक मुकदमे के सिलसिले में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के दामाद रॉबर्ट वाड्रा के खिलाफ अरविन्द केजरीवाल द्वारा लगाए गए आरोपों पर प्रधानमंत्री कार्यालय की तरफ से आपत्ति पत्र दाखिल किया गया। इस आपत्ति पत्र में कहा गया है कि वाड्रा पर लगे सभी आरोप बेबुनियाद ही नहीं बल्कि सुनी-सुनाई बातों पर आधारित हैं। साथ ही यह भी आपत्ति की गई है कि यह मामला रॉबर्ट वाड्रा एवं हरियाणा की डीएलएफ कम्पनी के बीच का है। ऐसे में प्रधानमंत्री कार्यालय द्वारा जांच का कोई औचित्य नहीं है। विदित हो कि नूतन ठाकुर की याचिका पर गत 11 अक्तूबर को इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने केंद्र सरकार को याचिका पर आपत्ति दाखिल करने के लिए तीन हफ्ते का समय दिया था। यह मामला वरिष्ठ न्यायमूर्ति उमानाथ सिंह व न्यायमूर्ति वीरेन्द्र कुमार दीक्षित की खंडपीठ के समक्ष चल रहा है। बहस इस बिन्दु पर हो रही है कि क्या यह याचिका सुनवाई लायक है या नहीं। केंद्र सरकार की तरफ से एडिशनल सॉलिसिटर जनरल मोहन पाराशन का तर्प था कि याचिका मीडिया रिपोर्ट पर आधारित है, ऐसे में अखबारी खबरों संबंधी तथ्यों वाली यह याचिका खारिज किए जाने योग्य है, क्योंकि यह सुने-सुनाए गए तथ्यों वाली है। इसके जवाब में प्रत्युत्तर दाखिल कर याची नूतन ठाकुर के अधिवक्ता अशोक पाण्डेय का कहना था कि जब इस मामले में दाखिल आपत्ति में पीएमओ दफ्तर इसे दो निजी लोगों के बीच का मामला कह रहा है फिर इसमें तेजी से पैरवी क्यों कर रहा है? नूतन ठाकुर ने अपनी याचिका में कहा है कि रॉबर्ट वाड्रा की कम्पनी और डीएलएफ की मिलीभगत से कुछ ही वर्षों में रॉबर्ट वाड्रा की सम्पत्ति 50 लाख से बढ़कर 500 करोड़ रुपए की हो गई। इसी तरह से आरोप आम आदमी पार्टी के अरविन्द केजरीवाल ने भी रॉबर्ट वाड्रा पर लगाए थे। इस मामले में प्रकाशित समाचारों के आधार पर जनहित याचिका तैयार कर मांग की गई कि मामले की जांच प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) की देखरेख में कराई जाएगी। याचिका में यह भी तर्प दिया गया कि याचिकाकर्ता ने इस मामले में 9 अक्तूबर को पीएमओ को प्रत्यावेदन दिया था जिसमें वाड्रा के खिलाफ आरोपों की जांच कराने का अनुरोध किया गया था। ऐसे में याची को यह रिट दायर करने का पूरा आधार बनता है। याची के वकील का कहना था कि मामले में `सत्य' को सामने लाने के लिए आरोपों की जांच के बाबत पीएमओ को निर्देश दिए जाने चाहिए। दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद न्यायमूर्ति उमानाथ सिंह व न्यायमूर्ति वीरेन्द्र कुमार दीक्षित की खंडपीठ ने अपना फैसला सुरक्षित कर लिया। इससे पहले मामले में एक और बात उभर कर सामने आई। प्रधानमंत्री कार्यालय और केंद्र सरकार की ओर से परस्पर विरोधी तर्प दिए गए। एक तरफ याचिका को तथ्यों के आधार पर गैर पोषणीय ठहराया गया, साथ ही कहा गया कि मामला हाई कोर्ट की लखनऊ बैंच के क्षेत्र से बाहर का है। प्रधानमंत्री कार्यालय ने कहा चूंकि मामला प्राइवेट पार्टियों का है इसलिए उसकी जांच नहीं कराई जा सकती। देखें, खंडपीठ क्या निर्णय सुनाती है।

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