Friday 7 December 2012

बेशक संख्या बल में सरकार जीती पर यह उसकी नैतिक हार है


 Published on 7 December, 2012 
अनिल नरेन्द्र
बेशक मनमोहन सिंह सरकार ने एफडीआई पर लोकसभा में संख्या बल के खेल में जीत दर्ज करा ली हो पर सही मायने में यूपीए सरकार की हार हुई। कहने को तो विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज की ओर से रखा यह प्रस्ताव कि सरकार मल्टी ब्रांड खुदरा व्यापार में 51 प्रतिशत विदेशी प्रत्यक्ष निवेश की अनुमति देने संबंधी अपने निर्णय को वापस ले 218 के मुकाबले 253 मतों से गिर गया पर दो दिन की बहस ने इतना साफ जरूर कर दिया कि यूपीए सरकार जीती पर संसद हारी। चर्चा में 18 पार्टियों के 22 सदस्यों ने भाग लिया, जबकि कुल 4 पार्टियों ने एफडीआई का समर्थन किया। यदि 14 पार्टियां जिन्होंने एफडीआई के विरोध में बोला, उनकी संख्या जोड़ी जाए तो यह संख्या 282 के आसपास बैठती है। जबकि जिन दलों ने इसके विरोध में अपने विचार रखे उनकी संख्या 224 के करीब बनती है। दो दिन की बहस में मेरी नजरों में हीरो तो भाजपा नेता विपक्ष सुषमा स्वराज रहीं। उन्होंने न केवल एफडीआई के नकारात्मक पहलू एक-एक कर गिनाए बल्कि सत्तापक्ष के स्पीकरों की दलीलों की हवा निकाल दी। यूपीए सरकार की लाज समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी ने वोटिंग के ठीक पहले सदन से वाकआउट करके बचाई। देखा जाए तो कायदेनुसार इन दोनों पार्टियों ने भी एक तरह से एफडीआई का विरोध ही किया। अगर समर्थन करना होता तो मतदान में प्रस्ताव के खिलाफ सत्तापक्ष के साथ वोट देते और इन दोनों दलों की ऐसा करने के पीछे क्या मजबूरी है सबको पता है। भाजपा के वरिष्ठ नेता डॉ. मुरली मनोहर जोशी ने टिप्पणी की कि यह सब जोड़तोड़ से मुमकिन हो पाया। यह एफडीआई की जीत नहीं बल्कि सीबीआई की जीत है। ममता ने कहा कि बहुमत के लिए जरूरी आंकड़े 271 के बजाय सदन की संख्या के आधार पर सरकार के पास समर्थन सिर्प 253 सदस्यों का था। फिर से साबित हुआ कि सरकार अल्पमत में है। सुषमा स्वराज का कहना था कि सरकार ने जोड़तोड़ से लोकसभा में संख्या जुटा ली है अब उसे जनता जवाब देगी। तकनीकी तौर पर भले ही जीत हासिल कर ली हो लेकिन नैतिक तौर पर यह सरकार की हार है। सीपीआई लीडर गुरुदास दासगुप्ता की प्रतिक्रिया थी ः वॉलमार्ट की बेहतरी के लिए सरकार देश को कुर्बान करने के लिए तैयार है। यह विदेशी कम्पनियों के लिए भारत को सबसे पसंदीदा जगह बनाने के संकेत हैं। एनसीपी नेता प्रफुल्ल पटेल का कहना था कि कोका कोला ने पार्ले के ब्रांड थम्स-अप का अधिग्रहण किया और इसे कोक से रिप्लेस करने की कोशिश की। लेकिन आज भी भारत में थम्स-अप कोक से ज्यादा मशहूर है। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने इसे सरकार के फैसले को मिली संसद की मंजूरी बताया। जबकि मनीष तिवारी ने कहा कि यह सुधारों की जीत है इससे अर्थव्यवस्था मजबूत होगी। लालू जी ने अपने चिरपरिचित अंदाज में कटाक्ष करते हुए कहा (भाजपा के नेता) वह विदेशी गाड़ियों में चलते हैं लेकिन एफडीआई का विरोध करते हैं। नेस्कैफे पीने वालो, पूछो आडवाणी जी से कि यह ट्विटर का इस्तेमाल क्यों करते हैं? अब सबकी नजरें राज्यसभा पर टिकी हैं। लोकसभा में तो जोड़तोड़ चल गया पर राज्यसभा में यह फॉर्मूला कामयाब रहेगा, इसमें संदेह है। राज्यसभा का गणित ऐसा है कि या तो सपा और बसपा सरकार के पक्ष में वोटिंग करेंगी या फिर एक वाकआउट करेगी और दूसरी सरकार के समर्थन में वोट डालेगी। अटकलें लगाई जा रही हैं कि बसपा (15 सदस्य) सरकार के पक्ष में वोट डाल सकती है और लोकसभा की तरह राज्यसभा में भी सरकार संख्या बल में विजयी रहेगी। एक लोकतंत्र में विपक्षी पार्टियां इससे ज्यादा कुछ कर भी नहीं सकतीं। विपक्ष को इस बात की दाद भी देनी पड़ेगी कि उसका कोई सदस्य टूटा नहीं। वाम दलों ने भी इस बात की परवाह नहीं की कि सांप्रदायिक भाजपा के साथ सरकार के खिलाफ वोट डाल रहे हैं। अब तो फैसला जनता को करना है। मनमोहन सरकार हर हालत में एफडीआई लाएगी। उसने तो अपना सब कुछ दांव पर लगा रखा है।

No comments:

Post a Comment