Saturday 22 December 2012

जापान में लिबरल डेमोकेटिक पार्टी की सत्ता में वापसी


 Published on 22 December, 2012
 अनिल नरेन्द्र
जापान के भावी प्रधानमंत्री शिनजो अबे ने कहा है कि चीन के साथ विवादित सेनकाकू द्वीप के मामले में कोई समझौता नहीं किया जाएगा। उनकी लिबरल डेमोकेटिक पार्टी (एलडीपी) को रविवार को हुए चुनाव में जीत हासिल हुई है। चीन ने भी अबे की जीत को लेकर अपने लिए चेतावनी बताया है। प्रेस कांफ्रेंस में अबे ने कहा कि सेनकाकू द्वीप जापान का प्राकृतिक क्षेत्र है। अंतर्राष्ट्रीय कानून के मुताबिक द्वीप पर जापान का नियंत्रण है। इसे लेकर समझौते की कोई गुंजाइश नहीं है। इस द्वीप को चीन में दियाओउ कहा जाता है। उधर चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता डाना यूनयिंग ने कहा कि हम इस बात को लेकर बहुत चिंतित हैं कि जापन किस दिशा में जाएगा? इस समय क्षेत्रीय विवाद के ठीक तरह से निपटारे की जरूरत है। चीन से जापानी तनाव के बीच रविवार को करीब पांच दशक तक लगातार जापान में राज कर चुकी लिबरल डेमोकेटिक पार्टी तीन साल बाद फिर सत्ता में लौट आई है। आम चुनाव में उसे संसद के निचले सदन की चार सौ अस्सी में से दो सौ चौरानवें सीटें हासिल हुई हैं। उसकी सहयोगी न्यू कोमीतो पार्टी को मिली सीटें जोड़ लें तो यह आंकड़ा दो-तिहाई बहुमत तक पहुंच जाता है। एलडीपी को मिली सफलता की बड़ी वजह यही रही कि लोग योशिहीको नोडा की सरकार और उनकी डेमोकेटिक पार्टी ऑफ जापान से निराश हो चुके थे। डीजीपी ने तीन साल पहले सत्ता सम्भाली तो उसमें दो बड़े वादे किए थे। एक यह कि वह राजनीति और कार्पोरेट के भ्रष्ट गठजोड़ को ध्वस्त कर देगी। दूसरे मंदी से जूझ रही देश की अर्थव्यवस्था को पटरी पर ले आएगी। लेकिन ये वादे हवाई साबित हुए। सत्ताधारी दल में कलह और उसके कई नेताओं पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों ने पार्टी की साख को संकट में डाल दिया। फिर अर्थव्यवस्था में भी कोई उल्लेखनीय सुधार दिखने को नहीं मिला, लोगों का मोहभंग हुआ और एलडीपी को इसका फायदा मिला। डीपीजे महज सत्तावन सीटों पर सिमट गई। बहरहाल, पूर्व प्रधानमंत्री शिनजो अबे को एक बार फिर सत्ता की बागडोर सम्भालने का रास्ता साफ हो गया है। जापान के सबसे मुखर राष्ट्रवादियों में गिने जाने वाले शिनजो अबे ने चुनाव प्रचार के दौरान सारा फोकस अर्थव्यवस्था में तेजी लाने और सेनकाकू द्वीप पर जापान के स्वामित्व को बरकरार रखने पर रखा। इस द्वीप को लेकर चीन से जापान की तकरार चल रही है और दोनों देशों के रिश्तों में इतनी खटास आ चुकी है जितनी पहले कभी नहीं थी। अर्थव्यवस्था को मंदी से उबारने के लिए अबे को कुछ कठिन फैसले करने पड़ सकते हैं, जैसे निर्यात को सम्भालने के लिए जापानी मुद्रा का कुछ अवमूल्यन करना। लेकिन आर्थिक चुनौतियों से पार पाना उनके लिए आसान नहीं होगा। जापान की आबादी में बुजुर्गों का अनुपात बढ़ता जा रहा है और उसी के साथ पेंशन की मार भी। चीन से जापान में आए तनावपूर्ण माहौल को अबे कैसे डील करते हैं यह भी एक चुनौती होगी। पिछले कार्यकाल में शिनजो का रुख भारत के साथ नजदीकी बढ़ाने का था। इसलिए उनकी जीत पर भारत में संतोषजनक प्रतिक्रिया हुई है। अगर चीन और जापान के रिश्तों में और गिरावट आती है तो भारत किस ओर झुकेगा?

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