Sunday, 2 December 2012

शहीद कैप्टन सौरभ कालिया को इंसाफ दिलाया जाए


 Published on 2 December, 2012
 अनिल नरेन्द्र
 यह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण बात है कि कारगिल युद्ध के शहीद सौरभ कालिया के पिता को अपने बेटे पर पाक सेना द्वारा किए गए अमानवीय जुल्म के खिलाफ कार्रवाई की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ा है। कारगिल युद्ध में शहीद कैप्टन सौरभ कालिया और उनके पांच साथियों के शव के साथ पाकिस्तानी सेना के अमानवीय व्यवहार का मामला वाकई दुखद व दुर्भाग्यपूर्ण था। कारगिल युद्ध समाप्त हुए तेरह साल हो गए हैं। इन तेरह सालों में किसी भी भारत सरकार ने इस मामले को उठाने का साहस नहीं दिखाया। इससे साफ है कि हमारे सरकारी तंत्र में सिर्प आम लोगों के ही नहीं बल्कि देश के लिए जान कुर्बान करने वाले वीरों के प्रति भी वह कितने असंवेदनशील हैं। शहीद कैप्टन सौरभ के पिता एनके कालिया महज इतना चाहते हैं कि पाक सेना द्वारा उनके बंदी बेटे को जिस तरह जिनेवा कन्वेंशन का उल्लंघन करते हुए बर्बर यातनाएं देकर मार डाला गया, इसे भारत सरकार अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में उठाए। कोई संवेदनशील सरकार होती तो वह ऐसा खुद व खुद करती है। लेकिन यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि एनके कालिया द्वारा बार-बार आग्रह किए जाने के बावजूद भारत सरकार द्वारा इस विषय में कुछ ठोस करने का साहस नहीं जुटाया गया। आश्चर्यहोता है कि अब तक किसी सरकार ने इस पर कोई कदम उठाने की कोई जरूरत क्यों नहीं महसूस की? उस एनडीए सरकार ने भी नहीं, जो कारगिल जीत को अपनी एक उपब्धि के रूप में पेश करती रही और न ही यूपीए सरकार ने। कारगिल में भारतीय सेना के अभियान को राष्ट्रीय गौरव की तरह प्रस्तुत तो किया जाता है पर जिनके बूते यह हासिल किया गया, उनके मान-सम्मान की चिन्ता किसी को नहीं है। अक्सर एक राष्ट्र की जीत अमूर्तन या नारे में  बदल कर रह जाती है। पिछले तेरह सालों में पाकिस्तान के साथ हमारे संबंध उतार-चढ़ाव से भरे रहे हैं। आतंकवाद और कई अन्य मुद्दों पर भारत सरकार ने उसके सामने कभी सख्त तो कभी नरम भाषा में अपना स्टैंड रखा है। उसने कई बार पाकिस्तान की जेलों में बन्द भारतीय कैदियों का मसला भी उठाया है। उसी तरह यह मुद्दा भी उठाया जा सकता था।। यह बात कारगिल युद्ध के समय भी कम चर्चा में नहीं रही थी कि वैसे पाक सैनिकों ने सौरभ कालिया और उनके साथियों को हिरासत में रखकर यातनाएं दीं और उनके शवों को बेहद विकृत स्थिति में भारत को सौंपा। लेकिन तब की एनडीए सरकार को शहीदों की कुर्बानी को चुनाव में भुनाना तो याद रहा लेकिन उनके साथ हुई पाशविकता के खिलाफ आवाज उठाना वह भूल गई। एनडीए के बाद बीते आठ सालों से यूपीए सत्ता में है लेकिन शहीद बेटे को इंसाफ दिलाने के लिए संघर्षरत एनके कालिया के लिए इस फेरबदल के बावजूद कुछ नहीं बदला। देश के वीर लड़ाकों के प्रति नेताओं और नौकरशाहों की बेरुखी की वजह से ही आज हमारी सेनाएं अफसरों की व्यापक कमी से जूझ रही हैं। बहरहाल पहले ही सौरभ के मामले में बहुत देरी हो चुकी है, बेहतर होगा कि अब सरकार बिना समय गंवाए पाकिस्तान के समक्ष यह मामला उठाए और जरूरत पड़ने पर अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में भी उठाए।

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