Thursday, 20 December 2012

आरोप-प्रत्यारोप नहीं, ऐसी घटनाओं को रोका कैसे जाए?


 Published on 20 December, 2012
 अनिल नरेन्द्र
देश की राजधानी में एक बार फिर वहशीपन की सभी हदें पार कर दी हैं। करीब पांच दरिंदों ने चलती बस में एक पैरा मैडिकल (फिजियोथैरेपिस्ट) के साथ गैंगरेप किया। युवती और उसके मित्र युवक को लोहे की राडों से बेरहमी से पीटा। रविवार रात दिल्ली की सड़कों पर दौड़ती बस में दो घंटे तक यह दरिंदगी होती रही। नशे में धुत ये लोग बाद में युवती और युवक को चलती बस से ही फेंक कर फरार हो गए। युवती इस समय सफदरजंग अस्पताल में मौत से जूझ रही है। इस घटना ने सभी को झिझोड़ कर रख दिया है। आखिर यह सिलसिले थमेंगे भी या नहीं? इस साल आठ और केस इसी पकार के बलात्कार के सामने आ चुके हैं। जिंदगी और मौत से जूझ रही रेप पीड़िता अस्पताल में भर्ती होने के बाद से 5 बार बेहोश हो चुकी है। उसे रह-रहकर होश आ रहा है। उसके सिर में गहरी चोट आई है और 23 टांके लगाए जा चुके हैं। सफदरजंग अस्पताल में डाक्टरों का कहना है कि यहां आने के बाद उसकी तीन बार लाइफ सेविंग सर्जरी की जा चुकी है लेकिन हालत अब भी नाजुक बनी हुई है। पुलिस ने चार लोगों को गिरफ्तार कर मामले को सुलझा लेने का दावा किया। वारदात के दो आरोपी अभी भी फरार हैं। सफेद रंग की बस में पीले पर्दे और लाल सीट और बस पर यादव लिखा हुआ था। युवती के दोस्त द्वारा दी गई यह जानकारी वहशी दरिंदों को पकड़वाने में मददगार साबित हुई। पुलिस ने परिवहन कार्यालय से ऐसी बस के बारे में पता लगाने को कहा और परिवहन कार्यालय के पता बताने पर बस के मालिक तक पहुंची। बस के मालिक से बस ड्राइवर को फोन करवाया। मालिक ने ड्राइवर से पूछा कि वह कहां है। बताने पर पुलिस वहीं पहुंच गई और उसे गिरफ्तार कर लिया। चालक का नाम रामसिंह है। वह सेक्टर-तीन आरके पुरम में रविदास झुग्गी कैंप में रहता है। चालक ने पुलिस को बताया वह और उसके साथी शराब के नशे में थे वह बस खड़ी करने जा रहे थे तभी बस स्टॉप पर युवक-युवती को देखकर नीयत खराब हो गई। अब पुलिस को यह पता चला है कि गैंगरेप करने वाले आरोपी शातिर बदमाश भी हैं। गैंगरेप की घटना को अंजाम देने के पहले इन लोगों ने एक कारपेंटर को बस में बिठाया और फिर उससे हजारों की नकदी लूटकर आईआईटी फ्लाईओवर के पास फेंक दिया था। अब सवाल सबसे महत्वपूर्ण यह उठता है कि किया क्या जाए? दिल्ली की मुख्यमंत्री, पुलिस कमिश्नर व अन्य अधिकारियों से त्यागपत्र मांगने से समस्या का हल होने वाला नहीं। आखिर यह पुलिस के लिए सम्भव नहीं कि वह हर बस में हर सड़क पर मौजूद हो। पर इसका मतलब यह भी नहीं कि हम हाथ पर हाथ धरे बैठे रहें। अगर मेंरी बात का बुरा न माना जाए तो मैं कहूंगा कि आज जो स्थिति बनी है उसके लिए समाज, ज्यूडिशरी, वकील, रिश्तेदार सभी जिम्मेंदार हैं। हर वर्ग ने किसी न किसी तरीके से स्थिति बिगाड़ी है। अपराध करके यदि अधिकांश अपराधी बच निकलते हैं तो इसके लिए सिर्प पुलिस ही नहीं बल्कि जजों और सरकारी वकील भी जिम्मेंदार हैं। इनके कामकाज के तरीके की वजह से ही आज बहुत कम लोगों को सजा हो पाती है। इसके अलावा अदालतों से गवाहों का भरोसा उठ जाना और निचली अदालतों के आदेशों में सुपीम कोर्ट व हाईकोर्ट द्वारा नुक्ताचीनी करना भी एक पमुख वजह है। सुपीम कोर्ट और हाईकोर्ट द्वारा विशेषाधिकार का इस्तेमाल कर छोटे-मोटे आदेशों में दखल से आज निचली अदालतें अपना विश्वास खो चुकी हैं। इसे जल्द रोकने की जरूरत है। अदालतों में गवाहों का उत्पीड़न होता है, उनके हितों का ध्यान नहीं रखा जाता। गवाहों को बार-बार अदालत में पेश होना पड़ता है और यदि मुकदमें पर किसी वजह से कोई गवाह पेश नहीं हो तो जज उनके खिलाफ वारंट जारी करते हैं। लेकिन आरोपी जब पेश नहीं होता तो वही जज कुछ नहीं करते। इतना ही नहीं जिरह के दौरान आरोपी या उसके वकील गवाह का चरित्र-हनन करने से भी बाज नहीं आते। सजा कम होने के पीछे जांच का गलत तरीका, अत्याधुनिक तरीके से साक्ष्य इकट्ठा नहीं करने, फोरेंसिक लैब के नमूने की जांच में देरी। कई बार छह-छह महीने तक जांच रिपोर्ट नहीं आती। इसका एक सही तरीका है फास्ट ट्रैक अदालत। शुरू से सजा तक सारी अदालती कार्रवाई छह महीने में पूरी हो जानी चाहिए। अदालत में केवल महिला वकील ही पेश हो। सजा होने के बाद अपीलों पर भी पाबंदी लगनी चाहिए। सजा होने के बाद अपीलों में मामला सालों लटक जाता है यह रोकना होगा। इसके साथ यह जरूरी है कि अपराधियों में कानून का भय पैदा किया जाए। इस तरह की घटनाएं कम होने के बजाए बढ़ती जा रही हैं। अगर यहां कानून का भय लोगों में हो तो शायद ऐसी घटनाओं पर थोड़ा अंकुश लग सके। बलात्कार के मामले में ज्यादातर अभियुक्त देर सवेर बरी हो जाते हैं। सजा की दर काफी कम है। सरकार को ऐसे लोगों को सजा दिलाने और सबक सिखाने के लिए कानून में तब्दीली करनी होगी। आज स्थिति यह बन गई है कि भय के कारण महिलाएं देर शाम या रात में घर से बाहर जरूरी काम होने पर भी निकलने से कतराने लगी हैं। महिलाओं की सुरक्षा का मामला काफी संवेदनशील है। इसमें पुलिस के साथ-साथ समाज को भी जागरूक होना पड़ेगा। तकनीक का इस्तेमाल बढ़ना चाहिए। सभी गाड़ियों खास कर बसों में जीपीएस लगवा सकते हैं। इससे गाड़ियों की लोकेशन तुरन्त पता चल सकेगी। मेंट्रो की तर्ज पर गाड़ियों में सीसीटीवी और अलार्म की व्यवस्था हो ताकि बटन दबाने पर सीधे पीसीआर को खबर मिल जाए, राजधानी के सभी बस स्टॉप, पमुख सड़कों, बाजारों और इमारतों में सीसीटीवी लगें। सभी इमारतों पर हाई रिजोल्यूशन कैमरे लगें। दिल्ली के सभी इलाकों में युवकों और अन्य नागरिकों की सिविल डिफेंस फौज तैयार की जाए। सरकार की भागीदारी योजना के अधीन हजारों की संख्या में इन युवकों को रात में सड़कों पर बसों और परिवहन की निगरानी के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। कुछ सुझाव महिलाओं के लिए भी हैं। अपने मोबाइल फोन में पुलिस हेल्पलाइन का नंबर सेव करके रखें। अपने साथ लाल मिर्ची पाउडर या स्पे रखें। आसपास की गतिविधियों पर नजर रखें। किसी पकार का संदेह होने पर तत्काल पुलिस को सूचना दें। रात में तिपहिया टैक्सी लेते समय सुनिश्चित कर लें कि उसमें पहले से कोई अन्य सवारी न बैठी हो। सुनसान या अंधेरी जगह से गुजरने में परहेज करें। अपरिचित के साथ ज्यादा घुलें-मिलें नहीं और न ही उनके द्वारा दिए खाद्य पदार्थ खाएं। यदि सम्भव हो तो रात में घर से अकेले निकलने से बचें। हो सके तो गाड़ी में बैठने से पहले उसका नंबर नोट करें और नंबर एसएमेंस के जरिए अपने रिश्तेदार को भेज दें।

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