Published on 15 December, 2012
अनिल नरेन्द्र
भारतीय शास्त्राrय संगीत को पश्चिम समेत पूरी दुनिया में लोकपियता के नए आयाम देने वाले महान सितार वादक और कंपोजर पंडित रविशंकर नहीं रहे। सितार के इस सरताज का अमेरिका के सैन डियागो में बुधवार (भारतीय समय के अनुसार) को निधन हो गया। वह 92 वर्ष के थे। पंडित रविशंकर के सुरों के जादू का असर यह था कि द वीटल्स जार्ज हैरिसन और यहूदी मेनुहिन जैसे दिग्गज भी उनसे जबरदस्त पभावित थे। पश्चिम के मुल्कों में हर घर में पहचान बनाने वाले वह पहले भारतीय थे। पंडित रविशंकर एक संपूर्ण संगीतज्ञ थे इसलिए उन्होंने संगीत को किसी शैली, धारा या भौगोलिक सीमा के भीतर बांध कर नहीं रखा, सीखा व रचा। वे ताउम्र विभिन्न शैलियों को मुक्त भाव से मिलाते और एक जीवंत विश्व संगीत रचने की कोशिश करते रहे। पंडित रविशंकर ने मैहर घराने के उस्ताद अलाउद्दीन खां से बाकायदा हिन्दुस्तानी शास्त्राrय संगीत में सितार की शिक्षा ली थी, मगर जल्दी ही उन्होंने लोक संगीत और पाश्चात्य संगीत आदि को जोड़कर नए पयोग शुरू कर दिए। इससे उन्हें ऑल इंडिया रेडियो की नौकरी करते समय ज्यादा आसानी हुई। हालांकि उनके संगीत का सफर अपने भाई और सुपतिष्ठित नर्तक उदय शंकर के साथ शुरू हुआ था, जब दस साल की उम्र में उन्होंने विभिन्न देशों की यात्राओं पर जाना शुरू कर दिया। इस दौरान उन्होंने विभिन्न वाद्य तंत्र बजाना सीखा, साथ ही अनेक भाषाएं और विभिन्न देशों का संगीत भी सीखने का पयास किया। 18 साल की उम्र तक रविशंकर अपने अग्रज के साथ रहे। लेकिन नृत्यकला में वैश्विक पहचान बनाने की हुलस अचानक बदल गई और उन्होंने सितार के तारों को अपनी आत्मा की आवाज बनाने का निर्णय कर लिया। करियर और सक्सेस के पतिस्पर्धी दौर में इस निर्णय के पीछे की शिद्दत को समझना थोड़ा कठिन है। रविशंकर के लिए यह निर्णय महज अपने रास्ते, अपनी मंजिल पाने की धुन भर नहीं था। दरअसल नृत्य का साथ छोड़कर वादन क्षेत्र में आने का फैसला उनके अग्रज के पयोगों का नया विस्तार था। सितार और रविशंकर एक-दूसरे के पर्याय बन गए जिसे देख विश्व संगीत भी दंग रह गया। पंडित रविशंकर ने हिन्दुस्तानी शास्त्राrय संगीत में एकल और जुगल कार्यकमों के जरिए दुनियाभर में अपने संगीत का जादू बिखेरा, उसी तरह पाश्चात्य संगीतकारों के साथ मिलकर आरकेस्ट्रा के जरिए भी खुद शौहरत कमाई। हालांकि उनके शास्त्राrय संगीत समारोह में आरकेस्ट्रा के पयोग पर कई लोगों ने एतराज भी जताया मगर पंडित रविशंकर ने उसकी कभी परवाह नहीं की। उन्होंने देश-विदेश के अनेक पख्यात संगीतकारों के साथ जुगलबंदियां कीं। सरोद वादक अली अकबर खां, यहूदी मेनुहिन, जार्ज हैरिसन, जुबिन मेहता आदि के साथ उनके काम सबसे अधिक सराहे गए। सत्यजीत राय की फिल्मों, फिल्म काबुली वाला और रिचर्ड एटनबरो की गांधी में दिए उनके संगीत आज भी याद किए जाते हैं। गांधी फिल्म में मौलिक संगीत के लिए उन्हें ऑस्कर पुरस्कार से सम्मानित किया गया। कवि गुरु रविन्द्रनाथ टैगोर और पंडित रविशंकर तक भारत की यशस्वी सांस्कृतिक परम्परा एक ही बात बार-बार दोहराती है कि हमारी स्थानीयता वैश्विकता के खिलाफ नहीं, बल्कि उसकी पूरक है, उसकी संवाहक है। उनके जाने से संगीत जगत को गहरा आघात पहुंचा है। पंडित रविशंकर के निधन पर पतिष्ठित ग्रैमी पुरस्कार देने वाली रिकॉर्डिंग एकेडमी ने गुरुवार को ऐलान किया कि पंडित रविशंकर को मरणोपरान्त लाइफ टाइम एचीवमेंट ग्रैमी पुरस्कार दिया जाएगा। इसे 10 फरवरी को लॉस एंजिलिस में 55वें ग्रैमी पुरस्कार समारोह में दिया जाएगा। पंडित रविशंकर यह पतिष्ठित पुरस्कार पाने वाले पहले भारतीय होंगे।
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